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हाईकोर्ट के फैसले पर अलग-अलग रायशुमारी

राणा मामले को लेकर स्थानीय नेताओं ने दी राय

अमरावती/दि.9 – गत रोज मुंबई हाईकोर्ट द्वारा जिले की सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र व जातिवैधता प्रमाणपत्र को लेकर दिये गये फैसले की वजह से अमरावती जिले में लगभग राजनीतिक हडकंप मच गया. इसे लेकर जहां एक ओर शिवसेना की ओर से जल्लोष मनाया गया, वहीं युवा स्वाभिमान पार्टी में मायूसी का आलम देखा गया. साथ ही अलग-अलग नेताओं ने इसे लेकर अपनी अलग-अलग राय दी है.

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पहले पिता और फिर दादा के नाम पर बनवाया प्रमाणपत्र

शिवसेना के पूर्व सांसद तथा याचिकाकर्ता आनंदराव अडसूल ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि, यह केवल फर्जी जाति प्रमाणपत्र का मामला नहीं है, बल्कि इसकी आड में कई फर्जीवाडे किये गये है. अडसूल के मुताबिक वर्ष 2014 में राकांपा के टिकट पर अमरावती सीट से चुनाव लडने के लिए नवनीत राणा ने एक स्कुल से अपने पिताजी के नाम पर लिविंग सर्टिफिकेट लिया था. जिसके आधार पर जाति प्रमाणपत्र बनवाया गया था. जबकि लिविंग सर्टिफिकेट जारी करनेवाला स्कुल ही अस्तित्व में नहीं था. जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और हाईकोर्ट ने वर्ष 2015 में उनके जाति प्रमाणपत्र को अवैध करार दिया था. इसके बाद वर्ष 2017 में नवनीत राणा ने अपने दादाजी के नाम पर सर्टिफिकेट तैयार कराया और उसके आधार पर नया जाति प्रमाणपत्र बनाते हुए वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव लडा. लेकिन अब अदालत में दुबारा यह साबित हो गया है कि, उनका जाति प्रमाणपत्र फर्जी है. यह भारतीय संविधान के खिलाफ गंभीर अपराध है, क्योंकि नवनीत राणा ने पिछडावर्गीय के आरक्षण का उल्लंघन कर सर्वोच्च संवैधानिक सदन का पद हथियाया था. जिसके लिए राणा को जेल भी जाना पड सकता है. वहीं अमरावती सीट पर उपचुनाव के संदर्भ में निर्वाचन आयोग के पास आवेदन किया जायेगा.

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झूठ कभी न कभी उजागर होना ही है

हमारे देश में न्यायदेवता द्वारा सभी को समसमान न्याय दिया जाता है. भले ही इस मामले में सात-आठ वर्ष का समय लगा, पर अंतत: इन्साफ हुआ. वैसे भी झूठ कभी न कभी तो उजागर हो ही जाता है. ऐसे में अब जरूरी है कि, भविष्य में ऐसी कोई पुनरावृत्ति न हो और पिछडावर्गीयों का हक ना मारा जाये, इस हेतु पुख्ता कदम उठाया जायें
– राजेश वानखडे
जिला प्रमुख, शिवसेना

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कानून के दायर से कोई नहीं छूट सकता

हमारे देश का कानून काफी प्रगल्भ है और अलग-अलग समय पर विद्वान न्यायमूर्तियों ने इंदिरा गांधी, लालबहादूर शास्त्री जैसे कई बडे व कद्दावर नेताओं को भी अदालती कटघरे में खडे होने पर मजबूर किया. महाराष्ट्र में ताजा उदाहरण छगन भुजबल का कहा जा सकता है. जहां तक अमरावती जिले के सांसद पद हेतु फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर चुनाव लडने का मसला है, तो यह अपने आप में काफी गंभीर मामला है. क्योंकि प्रमाणपत्र तो झूठा है ही, इसके अलावा संबंधितों द्वारा और भी कई गडबडियां की गई है. जिनकी जांच होना बाकी है.
– दिनेश बूब
पार्षद व जिला प्रमुख, शिवसेना

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अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नजर

लंबी सुनवाई पश्चात हाईकोर्ट द्वारा जो फैसला लिया गया है, उसका सभी ने सम्मान करना चाहिए. साथ ही यदि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी कायम रखा जाता है, तो जिले की राजनीति एक झटके में हमेशा के लिए बदल जायेगी. यह पूरी तरह से निश्चित है.
– किरण पातुरकर
भाजपा शहराध्यक्ष

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देर हुई पर अंधेर नहीं

जैसे भगवान के घर में देर है, पर अंधेर नहीं, वैसे ही न्यायदेवता के घर में भी इस मामले को लेकर कुछ देर हुई. पर अंतत: इन्साफ हुआ और सारा सच सभी लोगों के सामने आ गया. आगे क्या होगा, यह सभी को पता है. अत: उस पर कुछ भी कहने से कोई फायदा नहीं है. कानून अपना काम करेगा.
– संजय खोडके
राकांपा प्रदेश उपाध्यक्ष

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जो कुछ सच है, सबके सामने आया

जो कुछ भी सच है, उसे हाईकोर्ट के फैसले ने सबके सामने लाकर रख दिया है. इससे आम लोगों का न्याय व्यवस्था पर निश्चित रूप से विश्वास मजबूत होगा. हालांकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जायेगा और सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही अंतिम होगा. ऐसा हम सभी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए.
– पप्पू पाटील
जिलाध्यक्ष, मनसे

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