-
सरकार को दिया जवाब पेश करने दो सप्ताह का समय
-
चुनावी प्रक्रिया आगे टल सकती है
अमरावती/प्रतिनिधि दि.27 – इस समय स्थानीय दि. अमरावती जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के नये संचालक मंडल का चयन करने हेतु सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण के मार्गदर्शन में चुनावी तैयारियां शुरू कर दी गई है. जिसके तहत विगत 13 अगस्त को बैंक की अंतिम मतदाता सूची घोषित की गई एवं अभी हाल ही में निर्वाचन निर्णय अधिकारी की नियुक्ति भी की गई. ऐसे में पूरी उम्मीद थी कि, अगले माह जिला मध्यवर्ती बैंक के चुनाव कराये जा सकते है. किंतु मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में दायर एक याचिका पर अदालत द्वारा स्थगनादेश दिये जाने के चलते अब यह चुनाव एक बार फिर अधर में लटकता दिखाई दे रहा है.
बता दें कि, बैंक में पहले 23 संचालक हुआ करते थे तथा बैंक की आमसभा में भी 23 संचालकों हेतु चुनाव कराये जाने का प्रस्ताव पारित कर इसे मान्यता हेतु सहकारी संस्था निबंधक कार्यालय के पास भेजा गया था. किंतु निबंधक कार्यालय ने आमसभा के प्रस्ताव की अनदेखी करते हुए संचालकोें के निर्वाचन क्षेत्र का यह कहते हुए नये सीरे से परिसिमन किया कि, वर्ष 2013 के दौरान संविधान में हुए 97 वे संशोधन की वजह से किसी के सहकारी संस्था में 21 से अधिक संचालक नहीं हो सकते. अत: यह चुनाव 21 संचालकों के लिए ही कराया जाये. जिसके बाद चार संचालकों के निर्वाचन क्षेत्र को आपस में मिलाकर दो निर्वाचन क्षेत्र बनाये गये और इस नई व्यवस्था के साथ 21 संचालक पदों हेतु चुनाव करवाये जाने की तैयारी शुरू की गई. किंतु वर्ष 2013 में केंद्र सरकार द्वारा संविधान में किये गये 97 वे संशोधन को गुजरात निवासी राजेश शाह नामक व्यक्ति द्वारा गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी और हाईकोर्ट की संविधान पीठ ने इस संशोधन को रद्द करने का आदेश दिया था. उस समय बैंक के संचालक मंडल में शामिल नितीन हिवसे ने अहमदाबाद जाकर राजेश शाह से मुलाकात की थी. अब इस पूरे मामले की जानकारी व दस्तावेज हासिल करते हुए मुंबई हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की. जिसके आधार पर मुंबई हाईकोर्ट ने 2015 में स्टे ऑर्डर जारी करते हुए अधिकतक 21 सदस्य संख्या के नियम को शिथिल किया. यानी जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक में संचालकों की संख्या कम करने की जरूरत ही नहीं बची.
किंतु बावजूद इसके सहकारी संस्था निबंधक कार्यालय द्वारा वर्ष 2015 में मुंंबई हाईकोर्ट की ओर से जारी आदेश की अनदेखी की जाती रही. साथ ही साथ बैंक की आमसभा द्वारा भेजे गये प्रस्ताव को भी मान्य नहीं किया गया. इस बीच नितीन हिवसे सहकार विभाग के अडियल रवैये को लेकर सहकार मंत्रालय में भी अपील में गये. जहां पर उन्होंने बताया कि, जिला निबंधक द्वारा धारा 14 (2) के तहत खुद को प्राप्त अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए बैंक को कोई नोटीस दिये बिना आमसभा की ओर से भेजे गये 23 सदस्यीय संचालक मंडल संबंधी प्रस्ताव को खारिज किया गया है. किंतु उन्हें वहां से भी कोई न्याय नहीं मिला था.
इसी बीच गुजरात हाईकोर्ट द्वारा दिये गये फैसले के खिलाफ गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी. जहां पर लंबे समय से तारीख-दर-तारीख सुनवाई हो रही थी और विगत जुलाई माह में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने 136 पन्नों के फैसले में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए संविधान में हुए 97 वे संशोधन को रद्द कर दिया. जिसके तुरंत बाद जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के कुछ संचालक भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और खुद को राहत दिये जाने की मांग की. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पहले मुंबई हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के 136 पन्नों का आधार लेते हुए मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में याचिका दाखिल की गई थी. जिस पर हुई सुनवाई के बाद नागपुर हाईकोर्ट ने निबंधक कार्यालय की ओर से लगाये गये अधिकतम 21 संचालकोंवाले प्रतिबंध पर स्थगनादेश जारी करते हुए सरकार को इस संदर्भ में अपना जवाब पेश करने हेतु दो सप्ताह का समय दिया है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि, अब बैंक की आमसभा की ओर से जॉइंट रजिस्ट्रार को भेजे गये प्रस्ताव के मुताबिक 23 सदस्यीय संचालक मंडल के लिए चुनाव करवाये जा सकते है और किसी भी निवर्तमान संचालक का निर्वाचन क्षेत्र नहीं घटेगा. वहीं दूसरी ओर अब सभी की निगाहें इस बात की तरफ लगी है कि, सरकार की ओर से इस मामले में क्या पक्ष रखा जाता है. किंतु यह पूरी तरह से तय है कि, फिलहाल चल रही बैंक के संचालक मंडल के चुनाव की तैयारियां अब खटाई में पड गई है और जब तक हाईकोर्ट में 21 व 23 का मसला पूरी तरह से सुलझ नहीं जाता, तब तक चुनाव को लेकर संभ्रम बना रहेगा.
-
निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या घटाना पूरी तरह असंवैधानिक
इस मामले के संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल को जानकारी देते हुए बैंक निवर्तमान संचालक नितीन हिवसे ने बताया कि, जब केंद्र सरकार द्वारा संविधान में किये गये 97 वे संशोधन को मुंबई व गुजरात हाईकोर्ट सहित खुद सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया है, तो अधिकतम 21 संचालक मंडल की अनिवार्यतावाली शर्त भी अपने आप खत्म हो गई थी. किंतु इसके बावजूद सहकारी संस्था निबंधक कार्यालय द्वारा अडियल रवैय्या अपनाया गया, जो कि पूरी तरह से असंवैधानिक है. यह बात अब नागपुर हाईकोर्ट द्वारा दिये गये स्थगनादेश से पूरी तरह साफ हो गई है.