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जिला बैंक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष चुनाव की इनसाइड स्टोरी

अति आत्मविश्वास ले डूबा कांगे्रस को, आखरी क्षणों तक बच्चू ने रखा मुगालते में

* दिल्ली जाने से पहले ही व्यूह रचना कर डाली थी
अमरावती/दि.25– जिले के दो युवा राजनीतिज्ञ कब बाजी पलट देते हैं, उनके खासमखास को भी इसकी भनक नहीं लगती. इनमें एक बडनेरावासी है तो दूसरे अचलपुरवासी. जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक में लगभग डेढ साल पहले विधायक ओमप्रकाश उर्फ बच्चू कडू संचालक बने. कडू ने सोेमवार के चुनाव में अध्यक्ष पद काबिज कर अपने आप को जिले का धुरंधर साबित किया है. जिससे सहकारिता क्षेत्र हिल उठा है. अलग-अलग धडों में सोमवार दोपहर से ही शुरु चर्चा अब तक जारी है. नेताओं की अपनी-अपनी विचारधारा के हिसाब से प्रतिक्रिया आ रही है. कांग्रेस को यह अध्यक्ष, उपाध्यक्ष का चुनाव जीतने का इतना आत्मविश्वास था कि उसने जश्न की तैयारी कर ली थी. ढोल ताशे और आतिशबाजी, फूल हार, गुच्छे आ गए थे. सूत्रों ने अमरावती मंडल को बताया कि, बच्चू कडू ने ढेपे के साथ मिलकर अंतिम क्षणों तक प्रतिस्पर्धी को मुगालते में रखा. यह भी कहा जा रहा कि कांग्रेस का अति आत्मविश्वास उसकी लुटिया डूबो गया. हालांकि राजनीतिक हलको में जिला बैंक चुनाव की बहुत अधिक चर्चा नहीं हो रही और चीरीमिरी के दावे भी सभी खारिज कर रहे हैं. किंतु सहकारिता में गुटो-गुटो में हो रही चर्चा से यही बात सामने आ रही है कि कांग्रेस की गुटो में बिखरी सहकारिता की राजनीति का कडू ने फायदा उठाया.
* सीनियर्स की अनदेखी भारी पडी
जानकारो की माने तो कडू ने एनडीए की बैठक निमित्त गत 17 जुलाई को दिल्ली रवाना होने से पहले ही जिला बैंक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष चुनाव की व्यूह रचना बना ली थी. उन्होंने प्रतिस्पर्धी के पांच संचालक अपनी तरफ कर लिए थे. बेशक अभिजीत ढेपे की भूमिका अहम रही. कडू ने ढेपे के साथ डील की. उन्हें उपाध्यक्ष पद इस शर्त के साथ दिया कि वे ठाकरे को इस ओर लाए. कहते हैं कि पर्दे के पीछे एसके का भी रोल इस चुनाव में रहा. यह भी चर्चा अब सुनने मिल रही है कि फसल मंडी की राजनीति में कांग्रेस नेता यशोमति ठाकुर व्दारा कुछ सीनियर्स की अनदेखी का भी जिला बैंक चुनाव में असर पडा.
* विड्राल फार्म भरने का ड्रामा
कडू ने अध्यक्ष पद के लिए ढेपे के साथ नामांकन दाखिल किया. उन्होंने विड्राल फार्म भरने का भी ड्रामा किया. विड्राल के लिए चुनाव अधिकारी कुंभार ने नियमानुसार 15 मीनट का वक्त दिया था. जबकि सभा में कडू ने खडे होकर अपने नामांकन विड्राल की घोषणा कर दी थी. यह सब प्रतिस्पर्धी को धोखे में रखने की चाल थी. सूत्रों की माने तो विड्राल फार्म भरा जरुर गया था, किंतु उन पर दोनों ने ही दस्तखत नहीं किए थे. डीडीआर ने कडू व्दारा विड्राल लेने की घोषणा पर तुरंत कहा था कि अब समय खत्म हो गया है. जिससे चर्चा यही हो रही है कि ऐसी क्या राजनीति घूमी कि बाजी पलट गई. कांग्रेस के हाथ से फिसलकर कडू-ढेपे जोडी ने तख्त प्राप्त कर लिया.
* किसका कितना रोल
सहकारिता की सियासत में वोटों की राजनीति करने वाले नेताओं का रोल अहम नहीं रहता. हमें जो पता चला है उसके अनुसार जिला बैंक चुनाव में न तो खोडके की भूमिका रही, न प्रवीण पोटे की. यशोमति ठाकुर का रोल भी अपने समर्थक हरीभाउ मोहोड को उपाध्यक्ष बनवाने तक सीमित था. अध्यक्ष पद पर प्रत्याशी कांगे्रस जिलाध्यक्ष बबलू देशमुख ने तय किया था. सहकारिता क्षेत्र में बडी पराजय के बावजूद कांग्रेस की कल रात तक कोई बैठक नहीं हुई. अलग-अलग गुटो में जरुर चर्चा होने के समाचार मिल रहे हैं. कहते तो यही है कि कडू ने इस बिखराव का ही लाभ लिया.
* चीरीमिरी नहीं, राजी नाराजी
हमें जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसान कडू ने खुद के दमखम पर यह बाजी मारी है. इसमें चीरीमिरी का रोल नहीं है. बल्कि राजी नाराजी ने इस चुनाव मेें भूमिका निभाने का दावा कर सहकार क्षेत्र के जानकार यह भी कह रहे हैं कि नेताओं की बेवजह दखलंदाजी का परिणाम हुआ है. जगताप का नाम तय होने से पहले स्थिति यह थी कि परिवर्तन पैनल के 8 में से 2 वोट फूट जाते. कल जो मुकाबला 10-11 का हुआ वह 15-6 का होता. सहकारिता क्षेत्र में चुनाव के नतीजे को लेकर बहुत ज्यादा अचरज नहीं देखा जा रहा बल्कि तीन दिनों से यही चर्चा सुनने में मिल रही थी कि कुछ अनोखा होने वाला है. एक बात यह भी उभरकर सामने आई की ऐसे चुनाव में पैनल के प्रति निष्ठा, ईमानदारी हमेशा कायम नहीं रहती. यह पक्ष एक दूसरे के बने रहेंगे, इसका भरोसा नहीं रहता.

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