ठाकरे गुट के जिला पदाधिकारियों की हुई मुंबई में उद्धव के साथ बैठक
लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने किया मार्गदर्शन
* स्थानीय स्तर पर कांग्रेस व राकांपा के साथ तालमेल रखने के दिए गए निर्देश
* अगला चुनाव मविआ के रुप में ही लडने की बात की गई स्पष्ट
* सीटों के बंटवारे की जानकारी देने के साथ ही संभावित प्रत्याशियों के नाम टटोले गए
अमरावती/दि.18 – शिवसेना उबाठा पार्टी के जिला पदाधिकारियों की बैठक गत रोज मुंबई में पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ हुई. इस बैठक में पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी द्बारा बनाई जा रही रणनीति के संदर्भ में जानकारी देने के साथ ही यह स्पष्ट किया कि, अगला चुनाव शिवसेना द्बारा कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर महाविकास आघाडी के तौर पर ही लडा जाएगा. ऐसे में पार्टी के जिला व शहर पदाधिकारियों को चाहिए कि, वे स्थानीय स्तर पर कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों के साथ आपसी तालमेल रखते हुए काम करें. इसके अलावा इस बैठक में मविआ में शामिल घटक दलों के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे हेतु तय किए गए फार्मूले की जानकारी देते हुए अमरावती संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी बनाए जाने हेतु संभावित नामों को भी टटोला गया और पार्टी पदाधिकारियों से संभावित नामों को लेकर सुझाव मांगने के साथ ही उनके विचार भी जाने गए.
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक शिवसेना उबाठा के जिला पदाधिकारियों को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने यह भी निर्देश दिए कि, हाल ही में राज्य में जारी सत्ता संघर्ष को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्बारा दिए गए फैसले की जानकारी को आम जनता तक पहुंचाया जाए. साथ ही आगामी चुनाव की तैयारी में पूरी ताकत के साथ भिडा जाए, क्योंकि मौजूदा हालात को देखते हुए कभी भी चुनाव होने की संभावना है. ऐसे में आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए अभी से ही घटक दलों के साथ आपसी समन्वय रखते हुए चुनाव की तैयारियां की जानी चाहिए.
* बूब व अभ्यंकर के नाम पर बंटे दिखे पदाधिकारी
जिस समय पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के सामने पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों द्बारा अमरावती संसदीय सीट से पार्टी के संभावित प्रत्याशी के नाम पर विचार मंथन किया जा रहा है. तब 2 नामों को लेकर जिले के पदाधिकारी पार्टी नेतृत्व के सामने ही दो गुटों में बंटे दिखाई दिए. इस समय जहां जिला प्रमुख सुनील खराटे व पूर्व जिला प्रमुख सुधीर सूर्यवंशी के गुट ने राज्य एससी-एसटी आयोग के पूर्व अध्यक्ष ज. मो. अभ्यंकर तथा दूसरे गुट ने शिवसेना के कट्टर समर्थक व पूराने समर्पित कार्यकर्ता रहने वाले दिनेश बूब के नाम आगे रखे. ऐसे में कहा जा सकता है कि, ठाकरे गुट वाली सेना के पास अब अमरावती संसदीय सीट से चुनाव लडने की रेस में दो दावेदार है. परंतु इस मुद्दे को लेकर पार्टी पदाधिकारी में एक तरह से दो फाड वाली स्थिति दिखाई दी. इसके तहत जिस गुट ने ज. मो. अभ्यंकर का नाम आगे किया, उस गुट का कहना रहा कि, भले ही दिनेश बूब शिवसेना में है, लेकिन वे बहुत दिनों से निष्क्रिय हैं और उनकी लोकसभा चुनाव को लेकर जिले में कोई तैयारी नहीं है. वहीं दूसरी ओर दिनेश बूब का नाम आगे करने वाले गुट का कहना रहा कि, ज. मो. अभ्यंकर की अमरावती जिले में कोई राजनीतिक पहचान ही नहीं है. ऐसे में एक नये चेहरे पर दाव लगाना पार्टी के लिए भारी पड सकता है.
* ठाकरे गुट के कोटे में सीट आएगी या नहीं, यह भी बडा सवाल
यद्यपि शिवसेना उबाठा द्बारा अभी से ही आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर अपनी तैयारियां शुुरु करते हुए संभावित प्रत्याशियों के नाम टटोले जा रहे है. यानि एक तरह से यह मानकर चला जा रहा है कि, महाविकास आघाडी के तहत अमरावती संसदीय सीट ठाकरे गुट को मिलने वाली है. लेकिन हकीकत यह है कि, फिलहाल ऐसे होने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही. याद दिला दें कि, भाजपा सेना युती के दौरान अमरावती संसदीय सीट सेना के कोटे में हुआ करती थी और यहां से सेना प्रत्याशी के तौर पर आनंदराव अडसूल ने दो बार चुनाव जीता. वहीं इस सीट पर वर्ष 2014 में कांग्रेस राकांपा आघाडी के तहत नवनीत राणा ने राकांपा प्रत्याशी के रुप में चुनाव लडा था. साथ ही वर्ष 2019 का चुनाव निर्दलिय प्रत्याशी के तौर पर लडने वाली नवनीत राणा को कांग्रेस व राकांपा ने सेना प्रत्याशी अडसूल के खिलाफ अपना समर्थन दिया था और नवनीत राणा ने 36 हजार वोटों से तत्कालीन सांसद आनंदराव अडसूल को पराजीत किया था. ऐसे में अब अमरावती संसदीय सीट पर शिवसेना उबाठा के साथ-साथ महाविकास आघाडी में शामिल कांग्रेस व राकांपा की ओर से भी अपना दावा ठोका जा सकता है. जिसमें से राकांपा के पास तो फिलहाल एससी संवर्ग हेतु आरक्षित इस सीट से चुनाव लडने के लिए कोई प्रत्याशी नहीं है. लेकिन कांग्रेस इस सीट पर दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र के अपने विधायक बलवंत वानखडे को जरुर प्रत्याशी बना सकते है. जिसके काफी हद तक सशक्त आसार भी नजर आ रहे है. वहीं दूसरी ओर ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, महाराष्ट्र की 48 संसदीय सीटों के लिए महाविकास आघाडी में शामिल कांग्रेस, राकांपा व शिवसेना के बीच 16-16 सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय हो चुका है. जिसमें से कुछ सीटें छोटे घटक दलों के लिए भी छोडनी पड सकती है. चूंकि पिछली बार भाजपा सेना युती के तहत सेना के हिस्से में 22 सीटें आयी थी. जिसमें से सेना ने 18 सीटे जीती थी. वहीं अबकी बार ठाकरे गुट वाली सेना के हिस्से में 16 सीटे ही आने वाली है. ऐसे में साफ है कि, पिछली बार की तुलना में इस बार ठाकरे गुट के हिस्से में 6 सीटे कम होने वाली है. जिसकी वजह से यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि, ठाकरे गुट द्बारा किन 6 सीटों से अपना दावा छोडा जाता है. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, मुंबई, मराठवाडा व खानदेश की ओर ठाकरे गुट का जोर ज्यादा रहेगा. ऐसे में संभवत: अमरावती संसदीय सीट को ठाकरे गुट द्बारा मविआ में शामिल कांग्रेस व राकांपा के लिए छोड दिया जाएगा. ऐसी स्थिति में संभावित प्रत्याशियों के नामों को लेकर चल रही सिरफुटव्वल का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा.
* भाजपा-शिंदे गुट की ओर से कोई चुनौती ही नहीं
– दोनों दल दे सकते हैं नवनीत राणा को समर्थन
वहीं दूसरी ओर शिवसेना में हुई बगावत के बाद अस्तित्व में आए शिंदे गुट का आज एक वर्ष बाद भी अमरावती संसदीय क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय अस्तित्व नहीं है. ऐसे में शिंदे गुट के पास लोकसभा चुनाव के लिए सशक्त प्रत्याशी रहने का सवाल ही नहीं उठता. साथ ही शिंदे गुट के साथ गटबंधन रखने वाली भाजपा के पास भी एससी संवर्ग हेतु आरक्षित अमरावती संसदीय सीट से चुनाव लडने के लिए कोई सशक्त प्रत्याशी नहीं है. संभवत: यहीं वजह है कि, विगत लंबे समय से भाजपा और सांसद नवनीत राणा के बीच आपसी गलबहियां चल रही है. उधर दो बार कांग्रेस व राकांपा के समर्थन से चुनाव लडने के साथ ही दूसरी बार भाजपा व सेना की युती के प्रत्याशी को हराने वाली सांसद नवनीत राणा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस व राकांपा से दूर होती चली गई. साथ ही अब उनके और उद्धव ठाकरे के बीच पैदा हुई दुश्मनी भी सबके सामने है. ऐसे में अगले चुनाव में सांसद नवनीत राणा की दावेदारी का महाविकास आघाडी के तीनों घटक दलों द्बारा पूरी ताकत लगाकर विरोध किया जाएगा, ताकि पूरा हिसाब-किताब बराबर किया जा सके. ऐसे में सांसद नवनीत राणा को भी अपनी चुनाव नैय्या पार करने के लिए मजबूत पतवार की जरुरत पडेगी. यहीं वजह है कि, सांसद नवनीत राणा ने भी भाजपा का दामन मजबूती से थाम रखा है. ऐसे में साफ है कि, अगले चुनाव में भाजपा के साथ ही शिंदे गुट द्बारा सांसद नवनीत राणा की दावेदारी का समर्थन किया जाएगा. लेकिन यहां पर यह देखना दिलचस्प होगा कि, सांसद नवनीत राणा भाजपा के टिकट और चुनावी चिन्ह पर चुनाव लडती है, या फिर अपने दूसरे चुनाव की तरह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरते हुए भाजपा व शिंदे गुट का समर्थन लेती हैं. यदि सांसद नवनीत राणा अगला चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लडने का निर्णय लेती है, तो यह देखना और भी दिलचस्प होगा कि, क्यों किसी भी भारी प्रत्याशी का समर्थन नहीं करने से संबंधित अपने नियम के साथ भाजपा के द्बारा समझौता किया जाता है. क्योेंकि भाजपा में अब तक यह परिपाटी चली आ रही है कि, जिस प्रत्याशी का समर्थन करना है, पहले उसे उसके समर्थकों सहित पार्टी में प्रवेश दिलाया जाए और फिर पार्टी के टिकट व चुनाव चिन्ह पर उसे अधिकृत प्रत्याशी के रुप में खडा किया जाए. ऐसे में अब यह देखना रोचक होगा कि, क्या नवनीत राणा द्बारा चुनाव लडने के लिए भाजपा में प्रवेश किया जाता है, या फिर नवनीत राणा के लिए भाजपा द्बारा अपने नियमों के साथ समझौता किया जाता है.