* अंधेरे में दिखाई देगा नयनाभिराम दृश्य
* खगोल प्रेमियों के लिए सुवर्णसंधी
अमरावती/दि.9- अभी हाल ही में दीपावली का उत्सव संपन्न हुआ. जब नागरिकों द्वारा की जानेवाली आतिशबाजी के चलते आसमान में रंग-बिरंगी रौशनी का नजारा दिखाई दिया, लेकिन अब 17 नवंबर से लगातार चार दिनों तक आसमान में प्राकृतिक दीपावली व आतिशबाजी का नजारा दिखाई देगा, जब 17 से 20 नवंबर के दौरान सिंह राशि समूह से बडे पैमाने पर उल्का वर्षा होगी और इस उल्का वर्षा के चलते रात के अंधेरे में आसपास में प्रकाश रेखाएं चमकती दिखाई देगी.
बता दें कि, खगोल शास्त्र में इस उल्का वर्षा को लिओनेटस् कहा जाता है. अमूमन अंधेरी रात में आसमान का निरीक्षण करते समय कभी-कभी अचानक ही कोई प्रकाशरेखा चमकती दिखाई देती, जिसे आम बोलचाल की भाषा में तारा टूटना कहा जाता है. जबकि हकीकत यह है कि, यह एक खगोलिय घटना है. जिसे उल्का वर्षा कहा जाता है और तारा कभी भी टूटता नहीं है. बल्कि अंतरिक्ष से धरती की ओर आनेवाली उल्काएं हमारे वायूमंडल में प्रवेश करते समय तेज घर्षण की वजह से जल उठती है और नष्ट हो जाती है. ऐसे ही आगामी 17, 18 व 19 नवंबर को तडके बडे पैमाने पर उल्का वर्षा होने की संभावना रहेगी. जब सिंह राशि से उल्का वर्षा होगी और अंधेरे आसमान में प्रकाश रेखाओं का विलोभनीय दृश्य दिखाई देगा.
उक्ताशय की जानकारी देते हुए मराठी विज्ञान परिषद के विभागीय अध्यक्ष प्रवीण गुल्हाने तथा खगोल अभ्यासक विजय गिरूलकर ने खगोलशास्त्र में जिज्ञासा रखनेवाले लोगों ने इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाना चाहिए.
* प्रति घंटे 60 से अधिक उल्काएं आती है नीचे
धूम केतु जब सूर्य की प्रदक्षिणा पूरी कर वापिस जाता है, तो पूच्छल तारे का रूप ले लेता है और अपने पीछे कई अवशेषों को छोड जाता है. प्रत्येक घंटे में 60 व उससे अधिक उल्काएं यदि आकाश के किसी हिस्से से गिरती है, तो उसे उल्कापात या उल्का वर्षा कहा जाता है. कई बार गतिमान उल्काएं पृथ्वी के वातावरण को पार करते हुए घन अवस्था में ही पृथ्वी पर आती है. जिसे अशनी कहा जाता है. खगोल शास्त्र में अशनी का स्थान काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इनके जरिये बाह्य अंतरिक्ष की वस्तुओें के नमूने प्राप्त होते है.
* उल्का वर्षा का अंधश्रध्दा से कोई संबंध नहीं
उल्का वर्षा को लेकर कई लोगोें में कई तरह की अधश्रध्दा होती है. किंतु ऐसी किसी भी अंधश्रध्दा का खगोल शास्त्र में कोई आधार नहीं है. सिंह तारका सूमह से होनेवाली उल्का वर्षा टेम्पल टटल नामक धूम केतू के अवशेषों की वजह से होती है. यह धूम केतू प्रत्येक 33 वर्षों में सूर्य की प्रदक्षिणा पूरी करता है और अपने पीछे सिंह राशि में बडे पैमाने पर अवशेष छोड जाता है, जो पृथ्वी का परिभ्रमण करने के साथ ही पृथ्वी के नजदिक आने पर पृथ्वी के वायू मंडल की ओर आकर्षित होकर गिरती है. जिसे उल्का वर्षा कहा जाता है.