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डॉ. राजेंद्र प्रसाद को गलत तरीके से किया गया है निलंबित

खुद को जांच से बचाने के लिए दो प्राध्यापिकाओं ने लगाया था गलत आरोप

* रसायनशास्त्र विभाग की दो अन्य प्राध्यापिकाओेंं ने पत्रवार्ता में बताया पूरा मामला
अमरावती/दि.7 – स्थानीय संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ के रसायनशास्त्र विभाग प्रमुख डॉ. राजेंद्र प्रसाद और इसी विभाग की दो महिला प्राध्यापिकाओं ने लैंगिक व मानसिक प्रताडना करने के झूठे आरोप लगाए थे और इन आरोपों को विशाखा समिति ने भी खारिज कर दिया था. लेकिन इसके बावजूद भी विद्यापीठ प्रशासन ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को नियमबाह्य तरीके से विभाग प्रमुख के पद से हटा दिया और निलंबित भी कर दिया. यह पूरी तरह से गलत व अन्यायकारी कार्रवाई है. इस आशय की जानकारी आज यहां बुलाई गई पत्रवार्ता में डॉ. वंदना बडवाईक व शिखा लालवानी ने दी है.
संगाबा अमरावती विद्यापीठ के रसायनशास्त्र विभाग में प्राध्यापिका रहने वाली डॉ. वंदना बडवाइक व प्राध्यापिका सहित शोधछात्रा रहने वाली शिखा लालवानी ने इस पूरे मामले को लेकर बुलाई गई पत्रवार्ता में बताया कि, रसायनशास्त्र विभाग में प्राध्यपिका रहने वाली डॉ. जागृति बारब्दे व डॉ. मनीषा कोडापे ने संशोधन कार्य में अपने चौर्यकर्म के उजागर हो जाने के बाद अपने खिलाफ होने वाली जांच को रोकने हेतु विभाग प्रमुख के खिलाफ षडयंत्र रचा. दिसंबर 2022 में इन दोनों प्राध्यापिकाओं को प्रोसेफर पद पर पदोन्नति हेतु अपात्र पाया गया था. उस समय संशोधन कार्य की जांच करने वाली समिति ने सदस्य के तौर पर विभाग प्रमुख डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी सदस्य थे. जिन्होंने डॉ. बारब्दे के संशोधन पेपर में पहले एक बार प्रकाशित हो चुके संशोधन कार्य को दोबारा प्रकाशित किए जाने की गडबडी पकडी थी. साथ ही डॉ. कोडापे ने वर्ष 2015 में किसी अन्य के प्रकाशित पेटेंट को दिसंबर 2021 में जस का तस अपने नाम पर प्रकाशित किया था. यह दोनों मामले अपने आप में बेहद गंभीर थे. जिसके लिए उनके खिलाफ युजीसी के नियमानुसार कार्रवाई करने हेतु नियोजित रहने वाले विभागीय शैक्षणिक इन्टीगे्रटेड पैनल (डीएआईपी) के अध्यक्ष भीे डॉ. राजेंद्र प्रसाद ही थे. ऐसे में उनके रहते इस मामले में कोई तडजोड नहीं होने की संभावना को देखते हुए अपने खिलाफ होने वाली संभावित कार्रवाई से बचने हेतु डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पद से हटाने की योजना दोनों महिला प्राध्यपिकाओं द्वारा बनाई गई थी तथा डॉ. राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ लैंगिक व मानसिक प्रताडना की झूठा आरोप लगाकर उन्हें विभाग प्रमुख पद से हटाये जाने की मांग की. इसके बाद इस मामले की जांच करने हेतु विद्यापीठ की 8 सदस्यीय वैधानिक अंतर्गत शिकायत समिति (आईसीसी व विशाखा समिति) ने रसायनशास्त्र विभाग में अचानक उपस्थित रहकर शिकायतकर्ताओं द्वारा पेश किए गए सभी सबूतों तथा ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की सघन जांच हुई. साथ ही विभाग की अंशदायी प्राध्यापिकाओेंं, छात्राओं व महिला कर्मचारियों से भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यवहार को लेकर पूछताछ की. जिसमें किसी ने भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद को लेकर कोई शिकायत नहीं रहने की बात कही. विशेष उल्लेखनीय है कि, इस समिति में 7 महिलाओं व 1 पुरुष का समावेश था. जिसके बाद विशाखा समिति ने दोनों महिला प्राध्यापिकाओेंं द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ की गई शिकायत को खारिज कर दिया.
यही से सारा खेल शुरु होने की जानकारी देते हुए डॉ. वंदना बडवाइक व शिखा लालवानी ने बताया कि, इसी दौरान 19 अक्तूबर 2023 को डीएआईपी के चेअरमैन रहने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने डॉ. जागृति बारब्दे से संशोधन चौर्यकर्म के संदर्भ में स्पष्टीकरण मांगा, तो डॉ बारब्दे के पैरों तले से जमीन सरक गई और उन्हें बचाने के लिए नूटा संगठन के पदाधिकारी डॉ. मोना चिमोटे व डॉ. प्रवीण रघुवंश आगे आए. क्योंकि डॉ. बारब्दे व डॉ. कोडापे नूटा संगठन के साथ विद्यापीठ की सिनेट के भी सदस्य है और इन सभी ने मिलकर विद्यापीठ बाह्य राजनीतिक संगठनों के 30 व 31 अक्तूबर को विद्यापीठ पर मोर्चें लाते हुए विद्यापीठ प्रशासन पर दबाव बनाया. वही 26 अक्तूबरको ही विशाखा समिति की रिपोर्ट में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को निर्दोष बताए जाने के बावजूद विद्यापीठ प्रशासन ने मोर्चे लाने वाले संगठनों व सिनेट सदस्यों को इसकी जानकारी से अवगत नहीं कराया.
इसके अलावा डॉ. राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कोई कारण नहीं रहने के चलते डीएआईपी की रिपोर्ट व सिफारिश देने से पहले ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद को विभाग प्रमुख पद से हटाने का षडयंत्र रचा गया. जिसके तहत 30 अक्तूबर को तीन सदस्यीय गैर कानूनी समिति के एकतरफा निर्णय को ग्राह्य मानकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद को विभाग प्रमुख पद से हटा दिया गया और फिर उन्हें निलंबित कर दिया गया. यह सीधे-सीधे गैरकानूनी व नियमबाह्य तथा अन्यायकारी कार्रवाई है.

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