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किसानों को स्वयंरोजगार की दिशा दिखा रहे डॉ. शरद भारसाकले

  • आत्मनिर्भरता की ओर बढते शानदार कदम

  • अमृता हैचरिज के जरिये शून्य से शिखर तक का सफर किया तय

  • सैकडों किसानों को पोल्ट्रीफार्म के जरिये पूरक व्यवसाय से जोडा

अमरावती/प्रतिनिधि दि.९ – कहते है कि, यदि किसी व्यक्ति में जिद, लगन, समर्पण व परिश्रम का सही संतुलन हो और वह सही दिशा में प्रयास करे, तो सफलता उसके कदम चूमती है. साथ ही इन बातोें के जरिये व्यक्ति शून्य से भी अपनी अलग दूनिया तैयार कर सकता है. यह बात डॉ. शरद भारसाकले पर पूरी तरह से सही साबित होती है. जिन्होंने दर्यापुर तहसील के बेलोरा जैसे छोटे गांव से निकलकर ‘अमृता हैचरिज’ के जरिये स्वयंरोजगार एवं आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में एक क्रांति कर दिखायी. साथ ही आज वे 220 किसानों के साथ-साथ हजारों युवाओं को रोजगार भी प्रदान कर रहे है.
दर्यापुर तहसील अंतर्गत बेलोरा गांव निवासी डॉ. शरद भारसाकले ने पशु वैद्यकीय चिकित्सा पदवी हासिल की है. साथ ही उनके पिता नारायणराव भारसाकले के पास सात एकड असिंचित जमीन थी. जहां पर पानी की सुविधा नहीं रहने के चलते वे पारंपारिक ढंग से खेती-किसानी किया करते थे. वर्ष 1990 में डॉ. शरद भारसाकले ने नागपुर से पशु वैद्यकीय पदवी एवं वर्ष 2006 में पदव्युत्तर पदवी उत्तीण की, और पढाई करते समय ही उन्हें इस क्षेत्र में उपलब्ध रहनेवाले व्यापक अवसरों की बात ध्यान में आयी. जिसके चलते उनके मन में यह धारणा बनी कि, विदर्भ क्षेत्र में पोल्ट्री व्यवसाय फायदेमंद साबित हो सकता है. ऐसे में उन्होंने इस व्यवसाय की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी प्राप्त करने हेतु खोपोली में एक निजी पोल्ट्री व्यवसायिक के यहां नौकरी की. उस समय उन्हें मात्र 1500 रूपये प्रतिमाह मेहनताना मिला करता था, लेकिन उन पैसों की तुलना में दो वर्ष के दौरान हासिल हुआ अनुभव उनके लिए काफी अधिक उपयोगी साबित हुआ. इसके बाद उन्होंने वर्ष 1995 तक एक अन्य व्यवसायी के यहां नौकरी की और करीब दो वर्ष तक अमरावती में भी एक कुक्कुट पालक व्यवसायीक के यहां काम किया.

अनुभव के आधार पर उठाया बडा कदम

पोल्ट्री व्यवसाय में नौकरी करते हुए विभिन्न अनुभव प्राप्त करने के बाद डॉ. शरद भारसाकले ने स्वयंरोजगार शुरू करने का निर्णय लिया और वर्ष 1998 में पक्षी खाद्य तैयार करने का काम शुरू किया. जिसके लिए घर से कुछ पैसा लेने के साथ ही कुछ पैसों का इंतजाम बैंक से भी किया गया. उस समय इस प्रकल्प में 20 टन पशुखाद्य निर्मिती की क्षमता थी. लेकिन उस वक्त विदर्भ में पोल्ट्री फार्म की संख्या काफी गिनी-चुनी थी. ऐसे में उन्होंने अपने द्वारा उत्पादित पशुखाद्य हेतु ग्राहक खोजने के लिए विभिन्न शहरों के पोल्ट्री व्यवसायियों से मुलाकात करना शुरू किया और उन्हेें अपनी कंपनी में तैयार होनेवाले पशुखाद्य की जानकारी दी. जिसके बाद धीरे-धीरे उनके ग्राहकों की क्षमता बढने लगी और आज उनके प्रकल्प में प्रतिमाह 2 हजार टन पशु खाद्य की निर्मिती होती है. साथ ही डॉ. शरद भारसाकले द्वारा उत्पादित किये जानेवाले ‘बिग बॉस’ नामक पशुखाद्य की बिक्री विदर्भ व महाराष्ट्र सहित छत्तीसगढ व मध्यप्रदेश राज्य के पोल्ट्री व्यवसायियों को की जाती है.

 ‘अमृता हैचरिज’ से हुई रोजगार क्रांति

पशुखाद्य निर्मिती के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता हासिल करने के बाद डॉ. शरद भारसाकले ने आत्मनिर्भरता व स्वयंरोजगार के क्षेत्र में एक और कदम आगे बढाया. जिसके तहत ‘अमृता हैचरिज एन्ड फुडस्’ नामक पोल्ट्री फार्म शुरू करते हुए डॉ. शरद भारसाकले ने ब्रॉयलर पक्षियों के हैचरी व ब्रिडर फार्म की शुरूआत की. यहां पर करीब 21 दिनों में अंडों से पक्षियों के बच्चे बाहर आते है और इस प्रकल्प में प्रतिमाह करीब 5 लाख पिल्लों की उत्पादन क्षमता है. इस हेतु डॉ. शरद भारसाकले ने विदर्भ क्षेत्र के करीब 220 किसानों के साथ पोल्ट्री व्यवसाय से संबंधित लिखीत करार किया है. जिसके तहत डॉ. शरद के ब्रिडर फॉर्म में पक्षियों की पैदावार होती है, और करार करनेवाले किसानोें को ये पिल्ले पालने हेतु दिये जाते है. इसके बाद में जब इन पक्षियों का वजन दो से ढाई किलो हो जाता है, तो डॉ. शरद उनसे यह पक्षी वापिस ले लेते है और इनकी बिक्री व्यापारियों को की जाती है. पक्षी संगोपन में होनेवाला बिजली व मजदूरी का खर्च किसानों को करना होता है. साथ ही पोल्ट्री शेड भी किसानों को अपने खर्च से ही तैयार करना पडता है. इसके अलावा पशु खाद्य व लसीकरण की सहायता ‘अमृता हैचरिज’ द्वारा की जाती है. जिसके तहत पक्षियों को संसर्गजन्य रोगों से बचाने की तमाम सतर्कता ‘अमृता हैचरिज’ द्वारा ली जाती है. साथ ही समय-समय पर व जरूरत के अनुसार ‘अमृता हैचरिज’ उद्योग के प्रतिनिधि पोल्ट्री संचालकों के पोल्ट्री फार्म को भेट देते है. डॉ. शरद के मुताबिक पांच हजार पक्षियों की एक बैच के पीछे पोल्ट्री संचालक को करीब 50 हजार रूपये का फायदा होता है. पोल्ट्री उद्योग में पक्षियों की मृत्यु का प्रमाण छह प्रतिशत ग्राह्य माना जाता है. यदि किसी पोल्ट्री उत्पादक के यहां यह प्रमाण कम रहता है, तो उन्हें इसके लिए बोनस भी दिया जाता है.

जल्द होगा व्यवसाय का और अधिक विस्तार

डॉ. शरद ने पक्षियों की ब्रिडर फार्म निर्मिती के लिए पोल्ट्री व्यवसाय की एक प्रसिध्द कंपनी की सहायता लेते हुए भातकुली तहसील के शिपगांव में ब्रिडर फार्म शुरू किया है. साथ ही भातकुली तहसील के बहादरपूर में अंडा उत्पादन का प्रकल्प साकार किया गया है. जहां पर प्रतिमाह साढे चार लाख अंडे उत्पादित करने की क्षमता है. यह प्रकल्प बहुत जल्द कार्यान्वित हो जायेगा. इसके अलावा अमरावती जिले में अन्य दो स्थानों पर भी व्यवसाय शुरू करने की तैयारी शुरू की गई है.

 डॉ. शरद से सीखनेलायक कुछ बातें

– पशु वैद्यकीय शिक्षा के बाद नौकरी की बजाय खुद उद्योजक बनने का फैसला किया.
– दर्जेदार पशु खाद्य निर्मिती का व्यवसाय शुरू किया.
– पशुखाद्य की समूचे देश के बाजारों में आपूर्ति शुरू की.
– ‘अमृता हैचरिज’ में प्रतिमाह करीब 5 लाख चूजो का उत्पादन.
– किसानों के साथ करार खेती और उन्हें चूजो की आपूर्ति.
– चूजो के बडे होने के बाद किसानोें को योग्य भुगतान.
– दरों के कम-अधिक होने का किसानों को भी फायदा.

 व्यवसाय में पारदर्शकता

‘अमृता हैचरिज’ में किसान को चूजे दिये जाने की तारीख के बाद से सभी बातों का संगणकीकृत रिकॉर्ड रखा जाता है. जिसमें बैच क्रमांक, पक्षी आपूर्ति, पक्षी मृत्यु, पक्षी बिक्री, पशु खाद्य की जरूरत, प्रति पक्षी उपयोग में लाया गया पशु खाद्य आदि की जानकारी दर्ज की जाती है. पक्षी पालन हेतु डेढ माह का बैच कालावधी खत्म होने के बाद हिसाब के समय किसान को कंप्यूटराईज्ड बैलेन्स सीट दी जाती है. जिसमें खर्च के साथ ही बोनस व कटौती की सभी जानकारी दर्ज रहती है. इस जरिये पूरा व्यवहार पारदर्शक ढंग से पूर्ण किया जाता है.

अल्प भूधारक किसानों की आर्थिक उन्नति पर विशेष ध्यान

यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, जहां एक ओर अधिकांश कंपनियां बडे व आर्थिक रूप से संपन्न किसानों पर अपना ध्यान केंद्रीत करती है, लेकिन डॉ.शरद भारसाकले ने अपने क्षेत्र के अल्पभूधारक किसानों की आर्थिक उन्नति को महत्व देते हुए 1 हजार, ढाई हजार व पांच हजार पक्षियों के पालन का विशेष मॉडल बनाया. साथ ही इस व्यवसाय के जरिये किसानों को प्रतिमाह 15 से 30 हजार रूपये की आय कैसे हो सकती है, इस हेतु आवश्यक नियोजन किया. इस समय एक हजार पक्षियों का संगोपन करनेवाले करीब 15 किसान है. जिन्हें अपनी खेती-किसानी के साथ इस पूरक व्यवसाय के जरिये अच्छीखासी आय होती है. साथ ही इस व्यवसाय से जुडे सभी किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है.

किसानों ने बताये अपने अनुभव

मेरे पास तीन एकड खेत है. जिसमें संतरे का बगीचा रहने के साथ ही हम कपास की फसल लेते है. मैने दो लाख रूपये का खर्च करते हुए कुक्कुट पालन हेतु शेड बनाया. जिसे अचलपुर पंचायत समिती द्वारा 1 लाख 12 हजार रूपये का अनुदान भी मिला. पश्चात वर्ष 2017 में डॉ. भारसाकले से संपर्क साधते हुए एक हजार पक्षियों का करार व्यवस्थापन करना शुरू किया. जिससे मुझे प्रतिमाह 13 से 19 हजार रूपये की आय होती है. हर डेढ-दो माह में निश्चित रकम मिलने की वजह से हम जैसे छोटे किसानों के लिए यह व्यवसाय किसी एटीएम की तरह है.
– चंदर येवले
परसापुर, तह. अचलपुर, जि. अमरावती.

हम तीन भाईयों की संयुक्त रूप से तीन एकड खेती है. करीब 25 वर्ष पूर्व अतिरिक्त आय के लिए एक हजार पक्षियों की पोल्ट्री शुरू की थी. लेकिन बर्ड फ्ल्यू काल के दौरान दाम घट जाने की वजह से 50 हजार रूपये का नुकसान हुआ और यह व्यवसाय बंद करना पडा. बाद में डॉ. भारसाकले से 1 हजार पक्षियों का मॉडल समझा और 1 हजार पक्षियों का व्यवस्थापन शुरू किया. पिछली बार 3181 किलो वजन मिला. जिससे 31 हजार 250 रूपये प्राप्त हुए. बाद में 38 दिनों में प्रति पक्षी दो किलो से अधिक वजन मिला. मौसम के अनुरूप वजन बढने की कालावधी कम-अधिक होती है. सामान्यत: इसमें 10 से 15 हजार रूपये की आय निश्चित तौर पर मिलती है.
– सलीम शेख
पोल्ट्री व्यवसायी, तलेगांव, जि. अमरावती.

किसानों का आर्थिक स्वावलंबन सबसे जरूरी

केवल शिक्षा या पदवी रहने की वजह से कोई व्यवसाय सफल नहीं होता, बल्कि सामने आनेवाली हर एक समस्या और दिक्कत का सामना करने की मनोवृत्ति होनी चाहिए. इस समय हमारे किसान कई तरह की समस्याओं और दिक्कतोें का सामना कर रहे है. साथ ही पारंपारिक कृषि व्यवसाय का अपना एक सीमित दायरा है. ऐसे में किसानों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनने हेतु अन्य पूरक व्यवसायों की तरफ बढना ही होगा. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने किसानोें के लिए कुक्कुट पालन के क्षेत्र में विशेष मॉडल तैयार किये, जो आज पूरी तरह से सफल है. साथ ही अमृता हैचरिज के जरिये आज किसानोें सहित कई बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल रहा है. इस बात की हमें बेहद खुशी है. अमृता हैचरिज लोगों को रोजगार यानी नौकरी देने की बजाय उन्हें स्वयंरोजगार देते हुए आत्मनिर्भर बनाने की संकल्पना को लेकर आगे बढ रहा है. जिसके सार्थक परिणाम दिखाई दे रहे है.
– डॉ. शरद भारसाकले
संचालक, अमृता हैचरिज

विदेशों में जाकर किया अध्ययन

इस समय विदेशों में बडे अत्याधूनिक तरीके से पोल्ट्री व्यवसाय किया जा रहा है. वहीं भारत में अब तक कई सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. ऐसे में अपने व्यवसाय को वैश्विक गुणवत्ता के अनुरूप बनाने हेतु डॉ. शरद भारसाकले ने अब तक ऑस्ट्रिया, इजराईल, दुबई व थाईलैंड जैसे कई देशों का दौरा किया है. जहां पर उन्होंने पोल्ट्री व्यवसाय से संबंधित बारीकियों का अध्ययन करते हुए तमाम जानकारियां हासिल की है और अपने अमृता हैचरिज में उन्होंने वैश्विक मानकोें को लागू करने का भी काम किया. यहीं वजह है कि, अमृता हैचरिज में पक्षियों को खिलाये जानेवाले खाद्य की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है. साथ ही यहां पर स्वच्छता व साफसफाई का भी विशेष ख्याल रखा जाता है.

समूचे विदर्भ में है 250 फार्म, मेलघाट पर विशेष ध्यान

इस समय समूचे विदर्भ क्षेत्र में अमृता हैचरिज के 250 से अधिक पोल्ट्री फार्म है. जिसमें से सर्वाधिक 80 पोल्ट्री फार्म कुपोषण व बेरोजगारी की समस्या से जूझनेवाले आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र की धारणी तहसील में है. जहां पर करीब 80 किसान परिवार इस पोल्ट्री फार्म से जूडकर रोजगार हासिल कर रहे है. साथ ही अमृता हैचरिज की फैक्टरी व आउटलेट के जरिये सैंकडों लोग रोजगार प्राप्त कर रहे है.

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