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मौकापरस्त और सत्ता के लालची हैं डॉ. सुनील देशमुख

 भाजपा शहराध्यक्ष किरण पातुरकर का स्पष्ट कथन

  •  कहा : वैचारिक सिध्दांत और संस्कारों से इतना ही प्यार था, तो वे भाजपा में क्यों आये

  •  अगर पिछला चुनाव जीत जाते, क्या तब भी ‘घर वापसी’ करते

अमरावती/प्रतिनिधि दि.18 – अपने कांग्रेसी संस्कारों और वैचारिक सिध्दातों का हवाला देते हुए सात साल भाजपा में रहने के बाद दुबारा कांग्रेस में लौटनेवाले डॉ. सुनील देशमुख वस्तुत: मौकापरस्त और सत्ता के लालची है. अपनी इसी प्रवृत्ति के चलते उन्होंने किसी समय भाजपा में प्रवेश किया था और आज जब राज्य में कांग्रेस का सहभाग रहनेवाले गठबंधन की सरकार है, तो वे भाजपा छोडकर कांग्रेस में चले गये है. इस आशय का प्रतिपादन भाजपा शहराध्यक्ष किरण पातुरकर द्वारा किया गया है.
बता दें कि, कल 19 जून को पूर्व विधायक डॉ. सुनील देशमुख अधिकारिक तौर पर कांग्रेस में प्रवेश करने जा रहे है. जिसे लेकर उन्होंने गत रोज ही अमरावती मंडल को दिये गये साक्षात्कार में यह बात स्वीकार की थी. इस पर प्रतिक्रिया हेतु संपर्क किये जाने के बाद भाजपा शहराध्यक्ष किरण पातुरकर ने अपने आवास पर दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए उपरोक्त प्रतिपादन किया.

  • न उनके आने से फायदा हुआ, न जाने से नुकसान होगा

इस समय पूछे गये एक सवाल के जवाब में भाजपा शहराध्यक्ष किरण पातुरकर ने कहा कि, डॉ. सुनील देशमुख के भाजपा में आने से पार्टी को कोई विशेष फायदा नहीं हुआ. 2014 के चुनाव के समय जबर्दस्त मोदी लहर थी. उस समय पार्टी किसी को भी टिकट देती, तो वह चुनकर आता. ऐसे में 2014 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत भाजपा की जीत थी, ना कि डॉ. सुनील देशमुख की. वहीं वर्ष 2019 के चुनाव में डॉ. सुनील देशमुख द्वारा की गई कुछ व्यक्तिगत गलतियों की वजह से हमें हार का सामना करना पडा. लेकिन बावजूद इसके पार्टी ने उनके सम्मान और कद में कोई कटौती नहीं की. किरण पातुरकर के मुताबिक विधायक पद की टिकट देने के साथ ही भाजपा ने डॉ. देशमुख को प्रदेश उपाध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद भी दिया था, लेकिन उन्होंने संगठन विस्तार में कोई भुमिका नहीं निभायी. ऐसे में हमें न तो उनके आने से कोई फायदा हुआ है और न ही अब उनके जाने से कोई नुकसान होगा.

  • हमारे द्वारा दिये गये सम्मान का अपमान किया उन्होंने

किरण पातुरकर के मुताबिक डॉ. सुनील देशमुख खुद यह स्वीकार कर रहे है कि, भाजपा में सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं ने उन्हें यथोचित सम्मान दिया, लेकिन इसके बावजूद वे अपनी वैचारिक प्रतिबध्दता व सिध्दांतों की वजह से भाजपा में कभी सहज नहीं रहे और इसी असहजता की वजह से वे विगत एक वर्ष से कांग्रेस नेताओं के संपर्क में थे और कांग्रेस में जाने का प्रयास कर रहे थे. इसे लेकर कई तरह की चर्चाएं हम लोगों (भाजपा नेताओं) के कानों तक भी पहुंच रही थी. किंतु इसके बावजूद हमने उनका सम्मान कायम रखा और विगत एक वर्ष के दौरान भी उन्हेें पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल किया, लेकिन अंत में डॉ. देशमुख ने अपनी सत्तालोभी प्रवृत्ति का परिचय देते हुए हमारे द्वारा दिये गये सम्मान का अपमान ही किया.

  • गिनती के लोगों को लेकर आये थे डॉ. देशमुख

वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में प्रवेश करते समय डॉ. सुनील देशमुख अपने साथ कई कांग्रेसियों को भी भाजपा में लेकर आये थे, जो अब निश्चित तौर पर उनके साथ कांग्रेस में वापिस चले जायेंगे. जिनमें कई नगरसेवकों का भी समावेश रहेगा. क्या इससे आप की पार्टी को नुकसान नहीं होगा, इस सवाल पर किरण पातुरकर ने कहा कि, अव्वल तो डॉ. देशमुख अपने साथ बहुत अधिक लोगों को लेकर आये नहीं थे और जिन्हें लेकर आये थे, उनमें किसी आम कार्यकर्ता का समावेश नहीं था. बल्कि ये वो लोग थे, जिन्हें पद अथवा टिकट चाहिए था. उसमें से कुछ लोग अब भाजपा में ही रम गये है और निश्चित रूप से हमारे ही साथ बने रहेंगे, जिन्हें पहले की तरह पूरा सम्मान मिलता रहेगा. साथ ही कुछ लोग डॉ. देशमुख के साथ वापिस जा भी सकते है. जिसका पार्टी पर कोई विशेष असर नहीं पडेगा, क्योंकि उनके स्थान पर पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं को मौका मिलेगा.

  • … तो उन्हें 2014 का चुनाव भी निर्दलीय ही लडना था

गत रोज डॉ. सुनील देशमुख द्वारा अपने वैचारिक सिध्दांतों व संस्कारों के चलते कांग्रेस में वापिस जाने की बात कही गई थी. जिसका मखौल उडाते हुए किरण पातुरकर ने कहा कि, वे खुद भाजपा में 36 साल से काम कर रहे है और अब तक चार बार पार्टी के समक्ष टिकट के लिए दावेदारी कर चुके है. किंतु पार्टी ने हर बार उनकी टिकट काटी, लेकिन इससे नाराज होकर उन्होंने कभी भाजपा नहीं छोडी. वहीं डॉ. सुनील देशमुख ने वर्ष 2009 में एक बार अपना टिकट कटने पर पार्टी से बगावत की. साथ ही वर्ष 2014 के चुनाव के समय वे कांग्रेस से निष्कासित थे. इस वजह से उन्होंने मोदी लहर को भांपते हुए भाजपा में प्रवेश किया. यदि उनमें वाकई वैचारिक सिध्दांत और कांग्रेसी संस्कार होते, तो वे अव्वल तो कांग्रेस नहीं छोडते और यदि अपने स्वाभाविक दावे के तहत उन्होंने बगावत भी की, तो 2009 के चुनाव की तरह 2014 का चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ही लडते, लेकिन भाजपा में प्रवेश नहीं करते, पर चूंकि उनके लिए वैचारिक सिध्दांत व संस्कार कोई मायने नहीं रखते और सत्ता ही उनके लिए सबकुछ है. इस वजह से डॉ. देशमुख ने वर्ष 2014 के चुनाव से ऐन पहले भाजपा का दामन थामा. इस समय किरण पातुरकर ने यह सवाल भी उपस्थित किया कि, अगर 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडनेवाले डॉ. देशमुख जीत जाते और यदि आज राज्य में भाजपा के नेतृत्ववाली ही सरकार होती, क्या तब भी उनकी अंतरात्मा वैचारिक सिध्दांतों व संस्कारों के नाम पर ऐसे ही जागती और वे अपना विधायक पद और सत्ता का सुख छोडकर कांग्रेस में वापसी करते.

  • कुछ गलतियां हमारे नेतृत्व की भी है

वर्ष 2014 के दौरान जबर्दस्त मोदी लहर थी और आपका कोई भी कार्यकर्ता चुनाव जीत सकता था, लेकिन इसके बावजूद आपने कभी कट्टर कांग्रेसी रहे डॉ. देशमुख को पार्टी में शामिल करते हुए उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया, जबकि तत्कालीन हालात के चलते डॉ. देशमुख ने भाजपा का दामन मजबूरी में थामा था. इस विषय पर किरण पातुरकर ने कहा कि, अव्वल तो यह मसला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता और इसका निर्णय पार्टी में वरिष्ठ स्तर पर होता है, लेकिन यह स्वीकार करने में कोई संकोच नही है कि, विगत कुछ वर्षों के दौरान अन्य दलों के नेताओ को पार्टी में शामिल करने को लेकर वरिष्ठ स्तर पर कुछ हद तक चूक जरूर हुई है. जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना भी पडा है, क्योंकि ऐसे बाहरी लोगों को मौका दिये जाने की वजह से पार्टी के समर्पित व निष्ठावान कार्यकर्ता खुद को ठगा हुआ महसूस करते है.

  • शहराध्यक्ष होने के नाते मुझे अब तक जानकारी नहीं थी

क्या डॉ. सुनील देशमुख ने आपको भाजपा छोडने के बारे में अधिकारिक रूप से सुचित किया है, इस सवाल पर किरण पातुरकर ने कहा कि, चूंकि वे (पातुरकर) भाजपा शहराध्यक्ष है, ऐसे में डॉ. देशमुख की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वे उन्हें इस बारे में सुचित करते. किंतु उन्होंने ऐसा करने की जरूरत भी नहीं समझी. हालांकि खुद उन्हें भी यह अंदाजा था कि, एक समय डॉ. देशमुख कांग्रेस में वापिस चले जायेंगे. बावजूद इसके उन्होंने अपनी पार्टी की ओर से मिले निर्देशों का पालन किया और डॉ. सुनील देशमुख का हर कदम पर साथ भी दिया. लेकिन अंत में डॉ. देशमुख ने अपनी फितरत दिखा ही दी.

  • अगले मनपा चुनाव के बाद हमारी ही सत्ता और हमारा ही महापौर

इस समय बातचीत के दौरान किरण पातुरकर ने कहा कि, इस वक्त अमरावती मनपा में भाजपा के कुल 45 सदस्य है. जिसमें से डॉ. देशमुख के पीछे जानेवाले इक्का-दुक्का सदस्य ही होंगे. ऐसे में मनपा के आगामी चुनाव में भी भाजपा के सभी सदस्य विजयी होकर मनपा में अपनी दमदार एंट्री दर्ज करायेंगे और एक बार फिर मनपा में भाजपा की ही सत्ता होगी. साथ ही स्पष्ट बहुमत के साथ महापौर भी भाजपा का ही होगा. जिसके लिए अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई है और इन तैयारियों पर डॉ. सुनील देशमुख के जाने से कोई फर्क नहीं पडेगा.

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