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सन 1980 में महज दो वर्ष के भीतर हुए थे विधानसभा चुनाव

आजादी के बाद पहली बार मध्यावधि व सर्वाधिक राजनीतिक उथलपुथल

* जिले की 9 में से 8 सीटों पर जीती थी इंदिरा कांग्रेस
* अचलपुर सीट पर भाकपा के सुदाम देशमुख हुए थे विजयी
* पहली बार भाजपा ने लिया था विधानसभा चुनाव में हिस्सा
* 4 सीटों पर दिए थे प्रत्याशी, चारों हारे
अमरावती/दि. 18 – महाराष्ट्र में सन 1978 में विधानसभा चुनाव होने के महज दो वर्ष बाद ही राजनीतिक हालात ऐसे बन गए थे. जिनकी वजह से पांचवी विधानसभा को भंग करते हुए छठवीं विधानसभा हेतु चुनाव कराए गए. जिसके चलते वर्ष 1978 में चुने गए सभी विधायकों का कार्यकाल बेहद अत्यल्प रहा और इसमें से कई विधायक सन 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में चुने भी नहीं जा सके. बल्कि कईयों के राजनीतिक सफर पर एक तरह से पूर्णविराम भी लग गया. वहीं बदले हुए राजनीतिक हालात में कई नए चेहरों का राजनीतिक सफर शुरु हुआ और उसमें से कई विधायको ने आगे चलकर राजनीतिक क्षेत्र में लंबी दूरी तय की. जिनमें राम मेघे व सुदामकाका देशमुख जैसे राजनेताओं का नाम प्रमुख तौर पर लिया जा सकता है. उस चुनाव में अमरावती जिले के 9 विधानसभा क्षेत्रो में से 8 सीटों पर इंदिरा कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की थी. वहीं अचलपुर सीट पर विदर्भ कम्युनिस्ट मोर्चा की ओर से भाकपा के सुदाम देशमुख विजयी हुए थे.

* जिले को मिले थे दो मंत्रिपद, तीसरा पद चूका था
साथ ही इस चुनाव की यह खासियत भी रही कि, इससे पहले दर्यापुर से दो बार व मेलघाट से एक बार ऐसे कुल तीन बार विधायक रह चुकी कोकिला जगन्नाथ गावंडे पाटिल ने सन 1980 में इंकां प्रत्याशी के तौर पर मोर्शी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लडा और जीता. उसके चलते सन 1952 से राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय रहनेवाली कोकिलाबाई गावंडे चौथी बार विधानसभा में पहुंची. इसके अलावा तिवसा व वलगांव निर्वाचन क्षेत्र से चंद्रकांत ठाकुर व भाऊ साबले लगातार दूसरी बार विधायक निर्वाचित हुए. वहीं चांदुर रेलवे से पहली बार चुनाव जीतनेवाले यशवंतराव शेरेकर को मंत्रिपद मिला. जबकि बडनेरा से निर्वाचित राम मेघे ने कैबिनेट मंत्री पद मिलने की जिद करते हुए खुद को मिल रहा राज्यमंत्री का पद भी छोड दिया था. क्योंकि, विधानसभा में पहुंचने से पहले राम मेघे दो बार विधान परिषद के सदस्य रह चुके थे और वरिष्ठता के आधार पर कैबिनेट मंत्री का पद चाह रहे थे. इसके अलावा अमरावती से दूसरी बार विधायक निर्वाचित होनेवाले सुरेंद्र भुयार को भी मंत्रिपद मिला था.

* जिले की इन चार सीटों पर खडे हुए थे भाजपा के प्रत्याशी
इस चुनाव की एक खासियत यह भी रही कि, इस चुनाव में पहली बार भारतीय जनसंघ ने भारतीय जनता पार्टी के नाम से हिस्सा लिया और भाजपा ने जिले की 4 सीटों पर अपने प्रत्याशी खडे किए. हालांकि चारों प्रत्याशियों को हार का सामना करना पडा. जिनमें वर्ष 1957 में कांग्रेस की ओर से विधायक रह चुकी वीर वामनराव जोशी की सुपुत्री मालती जोशी का भी समावेश था. जिन्होंने आगे चलकर कांग्रेस छोडकर जनसंघ में प्रवेश ले लिया था और सन 1980 में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर अमरावती विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडा था. इसके अलावा चांदुर रेलवे सीट से अरुण अडसड, मेलघाट सीट से हिरालाल सरगे व बडनेरा सीट से रियाज अहमद युसूफ ने भाजपा प्रत्याशी के रुप में चुनाव लडा था. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पडा था.

* चुनाव को लेकर मतदाताओं में दिखी थी जबरदस्त उदासीनता
– मतदान का प्रतिशत घटने से हुआ था बडा राजनीतिक उलटफेर
यहां विशेष उल्लेखनीय है कि, सन 1975 से 1977 के दौरान लागू रहे आपातकाल तथा इसके बाद अगले पांच वर्षो के दौरान एक के बाद एक हुए लोकसभा व विधानसभा के चुनाव और मध्यावधी चुनाव के साथ-साथ सत्ता और कुर्सी हेतु होनेवाली उठापटक को देखते हुए आम जनता का राजनीति व राजनेताओं से काफी हद तक मोहभंग हो चूका था. जिसके परिणामस्वरुप सन 1978 के विधानसभा चुनाव में बढ-चढकर हिस्सा लेनेवाले मतदाताओं ने सन 1980 में हुए विधानसभा चुनाव से लगभग मुंह फेर लिया था. जिसके चलते सन 1980 के विधानसभा चुनाव में बमुश्कील 50 से 51 फीसद मतदान हुआ था. साथ ही चुनावी अखाडे में रहनेवाले प्रत्याशियों की संख्या बढी थी. ऐसे में मतो का विभाजन होकर सारे राजनीतिक समीकरनो में जबरदस्त उलटफेर दिखाई दिया था. यही वजह रही कि, सन 1978 के चुनाव में एकतरफा वोट और बंपर लीड हासिल करनेवाले कुछ विधायक 80 के चुनाव में जैसे-जैसे अपनी सीट बचा पाए वहीं कुछ विधायकों को शर्मनाक हार का सामना भी करना पडा. जिनमें बडनेरा के मंगलदास यादव का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. जो सन 78 के चुनाव में भारी बहुमत से विजयी हुए थे. लेकिन सन 80 के चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे.

* आपातकाल के बाद चार माह लगा था राष्ट्रपति शासन
– इंदिरा गांधी ने केंद्र की सत्ता में आते ही बर्खास्त किया था 9 राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों को
बता दे कि, सन 1975 से 77 तक पूरे देश में आपातकाल लागू रहने के बाद जहां महाराष्ट्र में सन 1978 में विधानसभा के चुनाव हुए. वहीं दूसरी ओर सन 1979 में संसदीय आम चुनाव कराए गए. जिसके बाद केंद्र में एक बार फिर इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई और सत्ता में वापसी करते ही इंदिरा गांधी ने देश के 9 राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों को बर्खास्त कर दिया. जिनमें महाराष्ट्र का भी समावेश था. जहां पर करीब चार माह यानी 8 जून 1979 तक राष्ट्रपति शासन चलता रहा और इसी बीच महाराष्ट्र में विधानसभा के मध्यावधी चुनाव घोषित कर दिए गए. जिसके तहत महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों हेतु 21 मई 1980 को चुनाव कराया गया. जिसमें इंदिरा कांग्रेस ने सर्वाधिक 186 सीटें जीती. वहीं पिछले चुनाव में सर्वाधिक सीटें जीतनेवाली जनता पार्टी के इस बार केवल 17 विधायक ही चुने गए और रेड्डी कांग्रेस के 47 विधायक चुने गए थे. वहीं भाजपा के 14, शेकाप के 9, कम्युनिस्ट पार्टी के 4 विधायकों सहित 10 निर्दलीय विधायक भी चुने गए थे.

* पांच साल में तीन मुख्यमंत्री व तीन राज्यपाल
आपातकाल के बाद देश सहित राज्य में राजनीतिक हालात किस कदर अस्थिर थे, उसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि, 1980 से 1985 तक पांच वर्ष के दौरान महाराष्ट्र में तीन बार मुख्यमंत्री बदले गए और इन पांच वर्षो के दौरान तीन बार राज्यपालों की नियुक्ति भी हुई. आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री पद ए. आर. अंतुले को सौंपा था. जिन्होंने 9 जून 1980 को सीएम पद की शपथ ली थी. हालांकि उस समय वे विधान मंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे और उन्होंने आगे चलकर नवंबर 1980 में विधानसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की थी. लेकिन आगे चलकर राज्य में उजागर हुए सिमेंट घोटाले की वजह से अंतुले को 20 जनवरी 1982 में इस्तिफा देना पडा और वे दो वर्ष ही कुर्सी पर रह पाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में 16 वर्ष तक चली सुनवाई के बाद सिमेंट घोटाला मामले से अंतुले निर्दोष बरी हुए. परंतु तब तक उनका राजनीतिक करिअर खत्म हो चुका था.
अंतुले के बाद बाबासाहेब भोसले को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया. परंतु अपनी कार्यशैली के चलते भोसले हमेशा ही मीडिया की आलोचना कर शिकार हुआ करते थे. जिसे देखते हुए इंदिरा गांधी ने भोसले को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था और बाबासाहेब भोसले केवल 13 महिने ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह पाए. इसके उपरांत 2 फरवरी 1983 से 9 मार्च 1985 तक दो साल के लिए वसंतदादा पाटिल तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. इन्हीं पांच वर्षो के दौरान महाराष्ट्र के राज्यपाल पद पर सादिकअली, ओ. पी. मेहरा व आय. एच. लतिफ की नियुक्तियां हुई.


* अमरावती से सुरेंद्र भुयार दुबारा जीते, मंत्री बने
अमरावती विधानसभा क्षेत्र से सन 1978 के चुनाव में जीतनेवाले सुरेंद्र भुयार ने सन 1980 के चुनाव में इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर दुबारा जीत हासिल की थी. जिन्हें तत्कालीन कैबिनेट में शामिल करते हुए मंत्री बनाया गया था. सन 80 के चुनाव में सुरेंद्र भुयार का मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी सुधाकर सवालाखे से था. ज्ञात रहे कि, सुधाकर सवालाखे ने इससे पहले सन 1978 में इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चांदुर रेलवे विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडते हुए जीत हासिल की थी. लेकिन दो साल के भीतर ही उन्होंने अपना पाला बदलते हुए इंदिरा कांग्रेस छोड दी और रेड्डी कांग्रेस का दामन थाम लिया. जिसकी टिकट पर सवालाखे ने सन 1980 में अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लडा. परंतु इस बार उन्हें हार का सामना करना पडा. सन 1980 में अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से 1,23,540 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 53,859 यानी मात्र 43.60 फीसद मतदाताओं ने ही वोट डाले और 53,261 वोट वैध पाए गए. जिसमें से इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र भुयार को 29,712 (55.79%), कांग्रेस प्रत्याशी सुधाकर सवालाखे को 14,155 (26.58%) व भाजपा प्रत्याशी मालती जोशी को 8,821 (16.56%) वोट मिले थे. इसके अलावा निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडनेवाले भीमराव नितनवरे व देवचंद गुलालकरी की जमानत जब्त हुई थी.


* बडनेरा से राम मेघे हुए थे विजयी, राज्यमंत्री का पद ठुकराया था
– विधायक मंगलदास यादव थे पांचवें स्थान पर, जमानत भी हुई थी जब्त
सन 1980 के चुनाव में सबसे बडा उलटफेर बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में देखा गया. जहां सन 78 के चुनाव में पुरुषोत्तम येते की बजाए कुछ कारणो की वजह से ऐन समय पर प्रत्याशी बनाए गए मंगलदास यादव को विजयी रहने के बावजूद भी इंदिरा कांग्रेस ने सन 80 के चुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं बनाया. बल्कि उनके स्थान पर तब तक दो बार विधान परिषद सदस्य रह चुके प्रा. राम मेघे को इंदिरा कांग्रेस की ओर से टिकट दी गई. ऐसे में मंगलदास यादव ने एकतरह से बगावत करते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा था. हालांकि उस चुनाव में राम मेघे ने सर्वाधिक वोट हासिल करते हुए जीत हासिल की थी. वहीं मात्र ढाई वर्ष तक विधायक रहे मंगलदास यादव की जमानत तक जब्त हो गई और वे पांचवे स्थान पर से इस चुनाव में बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से 1,03,172 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 51,191 यानी 49.62 फीसद मतदाताओं ने वोट डाले थे और 50,215 वोट वैध पाए गए थे. इसमें से इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी राम मेघे को 26,380 (52.53%), रामदास तिखिले को 8,632 (17.19%), निर्दलीय प्रत्याशी किसन गुडधे को 7,272 (14.48%) व भाजपा प्रत्याशी रियाज अहमद मो. युसूफ को 4,698 (9.36%) वोट मिले थे. वहीं निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडनेवाले मंगलदास यादव सहित एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी हरीचंद कनोडिया को हार का सामना करना पडा था. विशेष उल्लेखनीय है कि, उस चुनाव में बडनेरा क्षेत्र से विजयी रहनेवाले राम मेघे को तत्कालीन सरकार ने राज्यमंत्री का पद दिया जा रहा था. परंतु अपनी वरिष्ठता को देखते हुए राम मेघे ने खुद को कैबिनेट मंत्री दिए जाने की मांग की और राज्यमंत्री का पद ठुकरा दिया. जिसके चलते उस समय उनका मंत्री बनने का मौका चूक गया. हालांकि आगे चलकर राम मेघे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था.


* चांदुर रेलवे से शेरेकर रहे ‘यशवंत’, मंत्री भी बने
चांदुर रेलवे विधानसभा क्षेत्र से सन 1980 के चुनाव में इंदिरा कांग्रेस ने यशवंतराव शेरेकर को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा. जिन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी व भाजपा प्रत्याशी अरुण अडसड को करीब 20 हजार वोटो की लीड से पराजित करते हुए जीत हासिल की. उस चुनाव हेतु चांदुर रेलवे निर्वाचन क्षेत्र से 99,298 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें 55,992 यानी 56.39 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और 55,029 वोट वैध पाए गए थे. इसमें से इंकां प्रत्याशी यशवंतराव शेरेकर ने 32,715 (59.45%), भाजपा प्रत्याशी अरुण अडसड ने 12,409 (22.55%), रिपां. कवाडे गुट के भालचंद्र बोरकर ने 5,482 (9.96%) वोट हासिल किए थे. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी श्रीराम भैसे, रिपाइं प्रत्याशी उत्तमराव गवई तथा निर्दलीय प्रत्याशी उत्तम मोहोड व राजाभाऊ पात्रीकर की जमानत जब्त हुई थी.

* वलगांव से भाऊ साबले ने दोहराई थी सफलता
सन 1978 के विधानसभा चुनाव में वलगांव निर्वाचन क्षेत्र से विजयी रहनेवाले अंबादास बापुराव उर्फ भाऊ साबले ने इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर सन 1980 के चुनाव में भी अपनी सफलता दोहराई और करीब 6 हजार वोटो की लीड से जीत हासिल की. सन 1980 के चुनाव में वलगांव निर्वाचन क्षेत्र से 1,02,372 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 54,370 यानी 53.11 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और 53,399 वोट वैध पाए गए थे. जिसमें से इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी भाऊ साबले को 24,363 (45.62%), कांग्रेस प्रत्याशी नीलकंठ देशमुख को 18,225 (34.13%), रिपा. कवाडे गुट के प्रल्हाद गायकवाड को 9,664 (18.10%) वोट मिले थे. जबकि निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. अनिरुद्ध चव्हाण की जमानत जब्त हुई थी.


* दर्यापुर से दूसरी बार निर्वाचित हुए शंकरराव बोबडे
सन 78 के चुनाव में पहली बार दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होनेवाले इंदिरा कांग्रेस के शंकरराव बोबडे ने सन 80 के चुनाव में भी अपनी सीट को बचाए रखने में सफलता हासिल की थी और करीब 9 हजार वोटो की लीड से जीत हासिल की थी. उस चुनाव में दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र से 1,02,198 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 55,322 यानी 54.13 फीसद मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और 54,482 वोट वैध पाए गए थे. इसमें से इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी शंकरराव बोबडे को 27,207 (49.94%), पीडब्ल्यूपी प्रत्याशी रामराव हुतके को 18,581 (34.10%) व रिपाइं प्रत्याशी मधुकर अभ्यंकर को 8,694 (15.96%) वोट प्राप्त हुए थे.


* अचलपुर से तीसरे प्रयास में विजयी हुए थे सुदाम देशमुख
कट्टर कम्युनिस्ट रहनेवाले सुदाम देशमुख ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी प्रत्याशी के तौर पर सन 1967 से लेकर 1980 तक तीन बार विधानसभा का चुनाव लडा. जिसमें से सन 1980 के विधानसभा चुनाव में अपने तीसरे प्रयास में सफल हुए. विदर्भ कम्युनिस्ट मोर्चा की ओर से चुनाव लडनेवाले भाकपा के सुदाम देशमुख ही उस समय जिले में एकमात्र ऐसे प्रत्याशी रहे जिन्होेंने करीब 34 हजार वोटो की रिकॉर्ड लीड के साथ जीत हासिल की थी. उस समय अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र में 1,13,917 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 64,777 यानी 56.86 फीसद मतदाता ने वोट डाले थे और 63,453 वोट वैध पाए गए थे. इसमें से भाकपा प्रत्याशी सुदाम उर्फ डब्ल्यू. डी. देशमुख को 47,989 यानी 75.63 फीसद वोट हासिल हुए थे. वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी व इंकां प्रत्याशी वामन भोकरे को 13,359 यानी 21.05 फीसद वोट ही मिल पाए थे. जिसके चलते भाकपा प्रत्याशी सुदाम देशमुख ने एकतरफा जीत हासिल की थी. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी भीमराव ठाकरे सहित निर्दलीय प्रत्याशी अरविंद बाहेकर व सुजाउल्ला खान मेहरउल्ला खान की जमानत भी जब्त हो गई थी.


* मेलघाट में हुआ था उलटफेर, नारायण नानू पटेल जीते थे
आदिवासी बहुल मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र से सन 1978 के चुनाव में विजयी रहनेवाले रामू पटेल की बजाए इंदिरा कांग्रेस ने सन 1980 के चुनाव में उन्हीं के चचेरे भाऊ रहनेवाले नारायण नानू पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया था. जिसके चलते रामू पटेल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडा था. हालांकि रामू पटेल को हार का सामना करना पडा और नारायण नानू करीब 21 हजार वोटों की लीड से जीते थे. उस चुनाव में मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र से कुल 1,04,895 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 48,504 यानी 46.24 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और 46,725 वोट वैध पाए गए थे. जिसमें से इंकां प्रत्याशी नारायण नानू को 31,420 (62.24%), निर्दलीय प्रत्याशी रामू म्हतांग पटेल को 10,131 (21.68%) व भाजपा प्रत्याशी हिरालाल सरगे को 5,174 (11.07%) वोट हासिल हुए थे.


* तिवसा से भैयासाहेब ने दुबारा जीता चुनाव
तिवसा निर्वाचन क्षेत्र से सन 1978 के चुनाव में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 25 हजार वोटो की लीड लेते हुए विजयी रहनेवाले भैयासाहेब उर्फ चंद्रकांत ठाकुर को सन 1980 के विधानसभा चुनाव में इंदिरा कांग्रेस ने तिवसा निर्वाचन क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया. जिन्होंने इससे पहले चांदुर रेलवे निर्वाचन क्षेत्र से विधायक रह चुके और सन 80 के चुनाव में तिवसा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रहनेवाले शरद तसरे को करीब 9 हजार वोटो की लीड से पराजित किया था. सन 1980 के चुनाव में तिवसा निर्वाचन क्षेत्र से कुल 95,996 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 54,490 यानी 56.76 फीसद मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था और 53,300 वोट वैध पाए गए थे. जिसमें से इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी भैयासाहेब उर्फ चंद्रकांत ठाकुर को 24,480 (45.93%), कांग्रेस प्रत्याशी शरद तसरे को 15,778 (29.60%) व भाकपा प्रत्याशी नत्थुजी उर्फ भाई मंगले को 9,710 (18.22%) वोट मिले थे. वहीं रिपा. कवाडे गुट के प्रत्याशी कृष्णा ठाकरे सहित निर्दलीय प्रत्याशी कृष्णा वानखडे व कृष्णराव हेडाऊ की जमानत जब्त हो गई थी.


* मोर्शी से चौथी बार विधायक बनी थी कोकिलाबाई गावंडे
सन 1952 के चुनाव में पहली बार दर्यापुर सीट से विधायक निर्वाचित होनेवाली कोकिलाबाई जगन्नाथ गावंडे ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर सन 1957 में मेलघाट तथा सन 72 में एक बार फिर दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता था. वहीं इस दौरान सन 1962 में उनके पति जगन्नाथ पाटिल गावंडे उर्फ बालासाहेब सांगलुदकर ने रिपाइं प्रत्याशी के तौर पर दर्यापुर सीट से जीत हासिल की थी. जिन्हें सन 67 के चुनाव में हार का सामना करना पडा था. खास बात यह रही कि, आपातकाल के बाद सन 78 में हुए विधानसभा चुनाव में गावंडे पाटिल परिवार की ओर से किसी ने हिस्सा नहीं लिया था. वहीं सन 1980 में कराए गए विधानसभा के मध्यावधी चुनाव में बेहद आश्चर्यजनक तरीके से इंदिरा कांग्रेस द्वारा कोकिलाबाई गावंडे को मोर्शी विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया गया. जबकि उनका प्रभाव क्षेत्र दर्यापुर निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता था. कमालवाली बात यह भी रही कि, सन 52 से सन 72 तक दर्यापुर परिसर में राजनीतिक तौर पर सक्रिय रहनेवाली कोकिलाबाई गावंडे ने मोर्शी निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार चुनाव लडते हुए शानदार जीत हासिल की और कांग्रेस प्रत्याशी हर्षवर्धन देशमुख को करीब 7 हजार वोटो की लीड से पराजित किया. विशेष उल्लेखनीय है कि, सन 1980 के चुनाव में मोर्शी निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रहनेवाले हर्षवर्धन देशमुख के पिता प्रतापसिंह देशमुख इसी निर्वाचन क्षेत्र से सन 1962 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए थे. लेकिन हर्षवर्धन देशमुख को अपने ही गृहक्षेत्र में बाहर से आई और खुद से काफी वरिष्ठ रहनेवाली कोकिलाबाई गावंडे के हाथों हार का सामना करना पडा था. सन 1980 के चुनाव में मोर्शी निर्वाचन क्षेत्र से 1,00,306 मतदाता पंजीकृत थे. जिनमें से 51,527 यानी 51.37 फीसद मतदाताओं ने वोट डाले थे और 50,711 वोट वैध पाए गए थे. इसमें से इंदिरा कांग्रेस प्रत्याशी कोकिलाबाई गावंडे को 26,561 (52.38%), कांग्रेस प्रत्याशी हर्षवर्धन देशमुख को 18,737 (36.95%) तथा निर्दलीय प्रत्याशी भाऊराव भुजाडे को 5,413 (10.67%) वोट मिले थे.

* पहली बार आमने-सामने आए थे पंजा और कमल
भारतीय राजनीतिक के लिहाज से सन 1980 के चुनाव को इसलिए भी विशेष कहा जा सकता है कि, इसी चुनाव से कांग्रेस ने पंजा तथा भारतीय जनता पार्टी ने कमल चुनाव चिन्ह पर चुनाव लडने की शुरुआत की थी. तथा यहीं से यह दोनों राजनीतिक दल एक-दूसरे के परंपरागत प्रतिद्वंदी बने. हालांकि देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव से ही चुनाव चिन्हों का इस्तेमाल हो रहा है. इसके तहत सन 51-52 के पहले चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलो की जोडी था. जो सन 1969 तक कायम रहा. वहीं 12 नवंबर 1969 को कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को पार्टी से बाहर निकाल दिया था. जिसके चलते इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी बनाई थी. जिसे ‘गाय-बछडा’ चुनावी चिन्ह मिला था. इसके उपरांत जो सन 77 तक कायम रहा. सन 77 में इंदिरा गांधी कांग्रेस (आर) से अलग होकर कांग्रेस (आय) नामक नई पार्टी बनाई और हाथ के पंजे को अपना चुनावी चिन्ह बनाया. जो अब तक चला आ रहा है. उधर दूसरी ओर सन 1951 से 1977 तक भारतीय जनसंघ का चुनावी चिन्ह ‘जलता हुआ दीपक’ रहा. जिसे जनसंघ द्वारा भगवा रंगवाले चौकोन झंडे पर अंकित किया जाता था. इसके उपरांत सभी विपक्षी दलों का सन 1977 में जनता पार्टी के तौर पर विलय हो गया था. जिसका चुनावी चिन्ह ‘हलधर किसान’ रहा. वहीं इसके बाद सन 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ. जिसमें चुनावी चिन्ह के तौर पर ‘कमल के फुल’ को अपनाया. जो अब तक कायम है. साथ ही साथ आज कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी ही देश के दो प्रमुख राजनीतिक दल है.

* विधानसभा निहाय हुए मतदान तथा वैध मतदान व प्रतिशत की स्थिति
विधानसभा क्षेत्र     कुल मतदाता       प्रत्यक्ष मतदान वैध        वोट मतदान प्रतिशत
अमरावती     1,23,540                53,859                    53,261        43.60
बडनेरा         1,03,172                51,191                   50,215         49.62
दर्यापुर         1,02,198                55,322                    54,482         54.13
मेलघाट        1,04,895                48,502                    46,725         46.24
चांदूर रेल्वे    99,298                   55,992                    55,029         56.39
अचलपुर      1,13,917                64,777                    63,453          56.86
मोर्शी           1,00,305                51,527                    50,711         51.37
वलगांव        1,02,372                54,370                    53,399        53.11
तिवसा         95,996                   54,490                    53,300         56.76
कुल            9,45,693                4,90,030                  4,80,575      52.01

* सन 72 के चुनाव में विजयी प्रत्याशी व उनके हासिल वोट
निर्वाचन क्षेत्र विजयी प्रत्याशी प्राप्त वोट वोट प्रतिशत
अमरावती सुरेंद्र भुयार (इंदिरा कांग्रेस) 29,712 55.79
बडनेरा राम मेघे (इंदिरा कांग्रेस) 26,380 52.53
दर्यापुर शंकरराव बोबडे (इंदिरा कांग्रेस) 27,207 49.94
मेलघाट नारायण नानू (इंदिरा कांग्रेस) 31,420 67.24
चांदूर रेल्वे यशवंतराव शेरेकर (इंदिरा कांग्रेस) 32,715 59.45
अचलपुर सुदाम देशमुख (भाकपा) 47,998 75.63
मोर्शी कोकिलाबाई गावंडे (इंदिरा कांग्रेस) 26,561 52.38
वलगांव भाऊ साबले (इंदिरा कांग्रेस) 26,363 45.62
तिवसा चंद्रकांत ठाकुर (इंदिरा कांग्रेस) 24,480 45.93

* विधानसभा क्षेत्र निहाय प्रमुख प्रत्याशियों की स्थिति (हासिल वोट व प्रतिशत)

– अमरावती
सुरेंद्र भुयार (इंदिरा कांग्रेस) 29,712 55.79
सुधाकर सव्वालाखे (कांग्रेस) 14,155 26.58
मालती वामन जोशी (भाजपा) 8,821 16.56
भीमराव नितनवरे (निर्दलीय) 391 0.73
देवचंद गुलालकरी (निर्दलीय) 182 0.34

– बडनेरा
राम मेघे (इंदिरा कांग्रेस) 26,380 52.53
रामदास तिखिले (कांग्रेस) 8,632 17.19
किसन गुडधे (निर्दलीय) 7,272 14.48
रियाज अहमद (भाजपा) 4,698 9.36
मंगलदास यादव (निर्दलीय) 3,008 5.99
हरीचंद्र कनोडिया (निर्दलीय) 225 0.45

– दर्यापुर
शंकरराव बोबडे (इंदिरा कांग्रेस) 27,207 49.94
रामराव हुटके (पीडब्ल्यूपी) 18,581 34.10
मधुकर अभ्यंकर (रिपाइं) 8,694 15.96

– मेलघाट
नारायण नानू (इंदिरा कांग्रेस) 31,420 67.24
रामू पटेल (निर्दलीय) 10,131 21.68
हिरालाल सरगे (भाजपा) 5,174 11.07

– चांदूर रेल्वे
यशवंतराव शेरेकर (इंदिरा कांग्रेस) 32,715 59.45
अरुण अडसड (भाजपा) 12,409 22.55
भालचंद्र बोरकर (रिपा. कवाडे) 5,482 9.96
श्रीराम भैसे (कांग्रेस) 2,235 4.06
उत्तमराव गवई (रिपाइं) 1,362 2.48
उत्तम मोहोड (निर्दलीय) 687 1.25
राजाभाऊ पात्रीकर (निर्दलीय) 139 0.25

– अचलपुर
सुदाम देशमुख (भाकपा) 47,998 75.63
वामन भोकरे (इंदिरा कांग्रेस) 13,359 21.09
भीमराव ठाकरे (कांग्रेस) 1,663 2.62
अरविंद बाहेकर (निर्दलीय) 291 0.46
अ. सुजाउल्ला खान (निर्दलीय) 151 0.24

– मोर्शी
कोकिलाबाई गावंडे (इंदिरा कांग्रेस) 26,561 52.38
हर्षवर्धन देशमुख (कांग्रेस) 18,737 36.95
भाऊराव भुजाडे (निर्दलीय) 5,413 10.68

– वलगांव
अंबादास उर्फ भाऊ साबले (इंदिरा कांग्रेस) 26,363 45.62
नीलकंठ देशमुख (कांग्रेस) 18,225 34.13
प्रल्हाद गायकवाड (रिपा. कवाडे) 9,664 18.10
डॉ. अनिरुद्ध चव्हाण (निर्दलीय) 1,147 2.15

– तिवसा
चंद्रकांत ठाकुर (इंदिरा कांग्रेस) 24,480 45.93
शरद तसरे (कांग्रेस) 15,778 29.60
नत्थुजी मंगले (भाकपा) 9,710 18.22
कृष्णा ठाकरे (रिपा. कवाडे) 2,452 4.60
कृष्णा वानखडे (निर्दलीय) 807 1.51
कृष्णराव हेडाऊ (निर्दलीय) 73 0.14

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