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जीवन का अविभाज्य अंग है गजल

कला महोत्सव में आयुक्त डॉ. पांढरपट्टे का कथन

यवतमाल/ दि. 16- पर्शिया व अरेबिया जैेसे देशों से गजल की शुुरुआत हुई. आगे चलकर सुफी संतों के जरिये गजल भारत पहुंची. सांस्कृतिक भूमि रहने वाले भारत में रचने-बसने के साथ ही गजल और अधिक बहारदार हुई और इसके विविधागी स्वरुप सामने आये. इसके चलते देखते ही देखते गजल हम सभी के जीवन का एक अविभाज्य अंग बन गई है. इस आशय के शब्दों में अमरावती के संभागीय राजस्व आयुक्त तथा ख्यातनाम गजलकार डॉ. दिलीप पांढरपट्टे ने गजल विधा को लेकर अपने विचार रखे.
मराठी भाषा पखवाडा निमित्त यवतमाल राजस्व कर्मचारी संगठन की ओर से कला महोत्सव का आयोजन किया गया था. इसके तहत जिलाधीश कार्यालय परिसर स्थित बचत भवन में ‘गजल-रेगिस्तान से हिंदुस्तान तक’ नामक कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें गजल की संगीतमय यात्रा दिखाई दी. इसी आयोजन में हिस्सा लेते हुए आयुक्त पांढरपट्टे अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. इस समय वर्धा के उपजिलाधिकारी नरेंद्र फुलझेले, अपर जिलाधिकारी प्रमोदसिंह दुबे, अनिरुध्द बक्षी, हर्षल पाटील व सोनाली पाटील आदि उपस्थित थे.
इस समय आयुक्त डॉ. दिलीप पांढरपट्टे ने कहा कि, अमीर खुशरो से शुरु हुई गजल की यात्रा गालिब के दौर में और भी अधिक बेहतरीन हो गई. इसके साथ ही गजल केवल काव्यविधा नहीं बची, बल्कि भारतीय जीवन का दर्शन हो गई. यद्यपि मराठी भाषा में गजलविधा अभी काफी नहीं है, लेकिन यह विधा मराठी में अपना रास्ता खोज रही है. करीब 800 वर्षों से साहित्य रसिकों के दिलों पर राज करने वाली गजलविधा को समझने उसका आनंद लेने, उसकी बारिकी व सौंदर्य को जानने की जरुरत भी आयुक्त पांढरपट्टे ने प्रस्तुत की. साथ ही उन्होंने उर्दू भाषा के इतिहास और शायरी की परंपरा पर भी अपने वियार रखे.
इस आयोजन के दौरान आयुक्त पांढरपट्टे ने भाऊसाहेब की शायरी प्रस्तुत की. इस समय उन्हें भूषण गुरव ने तबले पर साथ दी. साथ ही इस कार्यक्रम में अक्षय गजभिये, ऐश्वर्या परदेशी, हर्षदा कोल्हटकर व सुनीता भोलाने ने गजलों का प्रस्तुतिकरण किया. कार्यक्रम में संचालन व आभार प्रदर्शन नंदकुमार बुटे ने किया.

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