पुणे/ दि. 17 – महाराष्ट्र सरकार ने बडे तामझाम के साथ मार्च 2015 में गौवंश हत्या विरोधी कानून बनाया. जिसमें गौशाला को आर्थिक मदद का प्रावधान भी था. किंतु लगता है कि सरकार अपना बनाया कानून ही ध्ीाूल गई है. प्रदेश में 1 हजार गौशाला रहने पर भी प्रत्यक्ष रूप से मात्र 32 गौशाला को अब तक मदद दी जा सकी है. इतना ही नहीं तीन साल पहले 140 गौशाला को 25-25 लाख रूपए दिए जाने की घोषणा के बावजूद उन्हें छदाम भी नहीं दिया गया.
करीब 8 साल पहले गौवंश हत्या विरोधी कानून लागू किया गया. कानून बनाते समय बडा जोश दिखाया जा रहा था. किंतु आर्थिक सहायता देते समय वह उत्साह नदारद हो गया. लगता है गौशाला को गौ संवर्धन के लिए प्रोत्साहन के रूप में आर्थिक सहायता का प्रावधान कायदे में किया गया था. सभी पंजीकृत और गैर पंजीकृत गौशाला को सहायता दी जानी थी. मगर मात्र 32 गौशाला का चयन किया गया है. उन्हें चार चरणों में एक-एक करोड रूपए दिए जाने थे. प्रत्यक्ष में 25 करोड 84 लाख रूपए का वितरण किया गया है.
ऐसे ही गौसेवा आयोग की घोषणा हुई है. बुनियादी सुविधा, चारा हेतु घटक निहाय मदद दी जानी है. अनेक सेवाभावी संस्था गौशाला चला रही है. पर उनका पंजीयन नहीं होने से उन्हें मदद देने में दिक्कत आने की जानकारी पशु संवर्धन विभाग के उपायुक्त देवेन्द्र जाधव ने दी.
* बजट में 100 करोड
पशु संवर्धन विभाग के आयुक्त सचिन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि प्रदेश की केवल 32 गौशाला को आर्थिक मदद दी जा सकी. यह सच है. कोरोना काल की दिक्कतों के कारण सहायता खंडित हुई. बजट में गौसेवा आयोग हेतु 100 करोड का आवंटन किया गया है. आयोग स्थापित होते ही प्रदेश की सभी गौशाला का पंजीयन होगा और सरकार उन्हें तत्परता से मदद भी करेगी.