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17 को राज्यपाल आएंगे वझ्झर

राज्यपाल हुए शंकरबाबा के कामों से प्रभावित

* अगले तीन दिनों में होगी सचिव स्तर की बैठक
* लावारिस व दिव्यांग बच्चों के पुनर्वसन हेतु बनेगा कानून
अमरावती /दि.5- यदि किसी परिवार में कोई एक बच्चा दिव्यांग होता है, तो संबंधित परिवार को पूरा जीवन कई तरह की समस्याओं का सामना करना पडता है और उस परिवार की मानसिक स्थिति हमेशा के लिए विचलित हो जाती है. ऐसी स्थिति में शंकरबाबा पापलकर द्बारा एक-दो नहीं, बल्कि 123 बच्चों को बडे अपनत्व के साथ पाला-पोसा जा रहा है. यह कोई छोटी बात नहीं है. इस आशय के शब्दों में राज्यपाल रमेश बैस ने अनाथों का नाथ कहे जाते शंकरबाबा पापलकर के कामों की प्रशंसा की. साथ ही कहा कि, वे आगामी 17 सितंबर को खुद वझ्झर आश्रम को भेंट देते हुए वझ्झम मॉडल को समझने का प्रयास करेंगे. उल्लेखनीय है कि, वरिष्ठ समाजसेवी शंकरबाबा पापलकर ने विगत रविवार नागपुर स्थित राजभवन में राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात करते हुए उन्हें वझ्झर मॉडल के बारे में जानकारी दी और 18 वर्ष से अधिक आयु वाले लावारिस व दिव्यांग बच्चों के पुनर्वास हेतु कानून बनाए जाने की मांग की. जिसे लेकर राज्यपाल रमेश बैस ने इस संदर्भ में आगामी 3 दिनों में सचिव स्तर पर बैठक आयोजित करने की बात भी कहीं.
इस बैठक में राज्यपाल रमेश बैस ने करीब 25 मिनट तक शंकरबाबा पापलकर से विस्तृत चर्चा करते हुए पुनर्वसन कानून के महत्व को समझा. साथ ही महाराष्ट्र में प्रतिवर्ष 1 हजार से अधिक लावारिस व दिव्यांग लडके-लडकियां 18 वर्ष के आयु पूर्ण करने के उपरान्त बालसुधार गृह से बाहर निकलने के बाद कहां जाते है, कहां रहते है और उनका क्या होता है, इस सवाल से खुद राज्यपाल रमेश बैस भी चिंतित दिखाई दिए. इस समय शंकरबाबा पापलकर ने राज्यपाल रमेश बैस को बताया कि, वझ्झर स्थित स्व. अंबादासपंत वैद्य लावारिस व दिव्यांग बालगृह द्बारा विगत अनेक वर्षों से लावारिस पाए जाने वाले बच्चों का पालन-पोषण करने के साथ ही उनके पुनर्वसन का काम किया जा रहा है. इस संस्था में 123 लावारिस, दिव्यांग व मतिमंद बच्चों का पालन-पोषण किया जाता है. जिसमें से विगत 15 वर्षों के दौरान करीब 30 दिव्यांग, मतिमंद व लावारिस बच्चों का विवाह भी कराया गया. ऐसे विवाहों को सामाजिक मान्यता मिले, इस हेतु जनप्रतिनिधि, मंत्री, वरिष्ठ प्रशासकीय अधिकारी एवं सामाजिक क्षेत्र के गणमान्य लोगों की उपस्थिति में विवाह समारोह आयोजित किए गए. जिसके चलते नवदम्पतियों का पुनर्वसन होने मेें मदद मिली.
विशेष उल्लेखनीय है कि, शंकरबाबा पापलकर के कार्यों से पहले ही प्रभावित रहने वाले राज्यपाल रमेश बैस ने खुद शंकरबाबा ने राजभवन में आकर खुद से मिलने का निमंत्रण दिया था. इस समय शंकरबाबा पापलकर ने राज्यपाल को बताया कि, 18 वर्ष से अधिक आयु वाले लावारिस व दिव्यांग बच्चों को आरक्षण की नहीं, बल्कि पुनर्वसन की असल में जरुरत है. साथ ही उन्होंने राज्यपाल रमेश बैस को अनाथ व लावारिस इन दो शब्दों के बीच रहने वाला फर्क भी बताया. जिसे गंभीरतापूर्वक समझते हुए राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि, वे व्यक्तिगत तौर पर इस विषय की ओर ध्यान देंगे और इसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी निवेदन करेंगे.

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