150 वर्ष का हुआ शहर का ऐतिहासिक घंटाघर
जिर्नोध्दार की प्रतिक्षा में खडी है इमारत
अमरावती/प्रतिनिधि दि.6 – अमरावती शहर का सुविख्यात घंटाघर जिसे क्लॉक टॉवर के नाम से जाना जाता है. वह अंग्रेज अधिकारियों व्दारा दी हुई देन है. उस समय में सिव्हील सर्जन व चीफ एक्जिकेटीव इंजीनियर यह अधिकारी सरकार नियुक्त नगर पालिका के सदस्य रहते थे. वर्ष 1870-71 के दौरान मेजर जे.टी.व्यू.सबॉय यह डेप्युटी कमिशनर और उसी नाते नगर पालिका के अध्यक्ष थे. साथ ही उस समय का पीडब्ल्यूडी विभाग का चीफ इंजीनियर आर.डब्ल्यू उड हाउस यह था. वह सरकार नियुक्त नगर पालिका का सदस्य भी था. ‘मुंबई के राजाभाई टॉवर की तरह यहां भी एक टॉवर बांधना चाहिए’ यह कल्पना इसी अधिकारी ने रखी और उस समय (फिलहाल जितना जोग चौक है वह चौरस जगह) रिझर्व करने लगाई थी. बीच में घडी रहने वाला टॉवर और उसके आसपास बगीचा रहना चाहिए, ऐसी उसकी मूल कल्पना थी. उसी के अनुसार उस समय तकरीबन 2 हजार रुपए खर्च कर नगर पालिका ने, पीडब्ल्यू डी की देखरेख में यह घंटाघर बांधा था. उसपर जो कडी घडी लगाई वह अमरावती के गणपतराव मिश्री नामक व्यक्ति ने बनाई. यह घटी हर एक घंटे में गजर (घंटा) देती रहती है. बगीचा मात्र आखरी तक हुआ ही नहीं. केवल कंपाउंड वाल बांधी गई. उस समय शहर के काफी निकट ऐसा यह सुंदर बगीचा व हर घंटे में कितना समय हुआ यह बताने वाली घडी रहने वाला उंचा टॉवर ऐसी उड हाउस की कल्पना थी. किंत घंटाघर बांधने के बाद बगीचे की कल्पना वैसे ही रह गई. बाद में समय के अनुसार घडी भी बंद पडी. पश्चात 26 अक्तूबर 1872 को टॉवर क्लॉक दुरुस्त कर और उसे चाबी देने व अन्य देखभाल आदि काम के लिए हर महिने पांच रुपए वेतन पर एक व्यक्ति नियुक्त करने का प्रस्ताव अमरावती नगर पालिका की ओर से लिया गया और दूसरे एक प्रस्ताव के अनुसार लोगों के मनोरंजन के लिए, घंटी घड्याल के पास सप्ताह में दो दिन बैंड बजाया जाता था. किंतु अप्रैल 1893 के बाद यह बैंड सप्ताह में केवल एक बार ही, हर शनिवार शाम के समय बजाना चाहिए, इस तरह का निर्णय नगर पालिका ने लिया था. किंतु आगे यह निर्णय भी बदलकर 1894 में बैंड बजाना बंद करने का प्रस्ताव किया गया. अनेकों वर्ष बीत गए, लेकिन उस टॉवर की घडी कभी भी दुरुस्त नहीं हो पायी और शहर की यह ऐतिहासिक इमारत आज भी जिर्नोध्दार की राह देख रही है.