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नाबालिग का हाथ पकडना अत्याचार नहीं

 मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ का निर्णय

  • न्या. पुष्पा गणेडीवाल ने खारिज किया पॉस्को का मामला

नागपुर/प्रतिनिधि दि.28 – किसी अल्पवयीन लडकी का हाथ पकडना अथवा उसके सामने अपनी पैन्ट की चेन को खोलना लैंगिक अत्याचार साबित नहीं होता. इस आशय का निर्णय मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ द्वारा दिया गया है और न्या. पुष्पा गणेडीवाला ने एक आरोपी को पॉस्को अधिनियम की धाराओें के तहत दर्ज अपराध में जिला व सत्र न्यायालय द्वारा सुनायी गयी सजा को खारिज कर दिया.
इस संदर्भ में मिली जानकारी के मुताबिक पांच वर्षीय बच्ची के साथ लैंगीक अत्याचार करने के मामले में 5 अक्तूबर 2020 को गडचिरोली की विशेष सत्र अदालत ने लिबनस फ्रान्सीस कुजुर नामक 50 वर्षीय आरोपी को भादंवि तथा पॉस्को की धाराओं के तहत दोषी करार देते हुए पांच वर्ष के सश्रम कारावास तथा 25 हजार रूपये के जुर्माने की सजा सुनायी थी. जिसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी. पश्चात 15 जनवरी को इस अपील पर दिये गये निर्णय में उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायालय के निर्णय को बदलते हुए आरोपी को केवल विनयभंग के मामले में दोषी माना और अब तक वह जितने समय कारावास में रह चुका है, उतने ही कारावास की सजा सुनायी. बता देें कि, पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने के बाद आरोपी केवल पांच महिने कारावास में रहा और हाईकोर्ट के निर्णयानुसार यहीं उसका अंतिम कारावास साबित हुआ है.
यह मामला 11 फरवरी 2018 को घटित हुआ था. पीडित बच्ची की मां द्वारा दी गई शिकायत के मुताबिक जब वह अपने घर लौटी तो आरोपी लिबनस उसकी बच्ची का हाथ पकडे हुए था और उसके पैन्ट की चेन खुली हुई थी. चीख-पुकार मचाये जाने के बाद आरोपी वहां से भाग निकला था. पश्चात 12 जनवरी को पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करायी गयी थी, और मामले की सुनवाई पश्चात सत्र न्यायालय ने आरोपी को भादंवि सहित पॉस्कोे अधिनियम की धाराओं के तहत
दोषी करार देते हुए सजा सुनायी थी. जिसे हाईकोर्ट द्वारा पलट दिया गया है.

 

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