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‘लीकेज‘ से चल रहे कई पालिका पदाधिकारियों के घर

  • सत्तारूढ पार्टी में नियोजन और इच्छा शक्ति का अभाव

  • अपनी जेबें भरने को लगाते है मिथ्या आरोप

परतवाडा/अचलपुरदि.४  – सन २००२ तक जुडवाशहर को जलापूर्ति करने की स्वतंत्र जिम्मेदारी का निर्वहन महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण कर रहा था और घोर आश्चर्य की बात यह कि तब गाँव के किसी गरीब से गरीब व्यक्ति को भी जलापूर्ति से कोई शिकायत नहीं थी सब कुछ सचारु चल रहा था. २००३ में राज्य सरकार ने चुंगीकर (ऑक्ट्रॉय) बंद किया और जलापूर्ति की जिम्मेदार मजीप्रा से लेकर नगर पालिका को सौप दी, जो चुंगी नाके में कार्यरत स्टाफ और चुंगी विशेषज्ञ थे, उन सभी को जलापूर्ति के महत्वपूर्ण काम मे झोंक दिया गया. तब से लेकर आज तक ९० फीसदी नॉनस्किलड लोगो के भरोसे परतवाडा-अचलपुर की जलापूर्ति को ‘ढोया‘ जा रहा है. नगरसेवक, जनप्रतिनिधि और पदाधिकारियों को ‘योग्य कार्य‘ करनेवालों की जगह ‘ढोनेवाले‘ ज्यादा पसंद हैं. इसी ढोते तंत्र की वजह से ही बाकी सारे ऑफ द रिकार्ड धंधे चल रहे और सभी अपनी -अपनी जेब भर रहे. नगर पालिका अचलपुर की प्रस्तावित २४ बाय ७ इस महत्वाकांक्षी जलापूर्ति का आज का यह कडवा सच है. राज्य और केंद्र सरकार अचलपुर को जलापूर्ति में सक्षम बनाने के लिए निधि के पीछे निधि भेजती जा रही है, लेकिन सरकार ने कभी नागरिकों की तरफ बकाया पानी बिल की वसूली के लिए नपा प्रशासन को बाध्य नहीं किया है. मालमत्ता कर की असली यदि निर्धारित लक्ष्य तक नहीं की जाती, तो शासन नपा के अनुदान में से मालमत्ता कर की कटौती कर लेता है.
ऐसा जलापूर्ति योजना के क्रियान्वयन के साथ नहीं हो रहा. अंधा पीसे-कुत्ता खाये की तर्ज पर नेताओ के घर भरने का एक सुयोग्य माध्यम बनी है-जलापूर्ति योजना. तत्कालीन नगराध्यक्ष सचिन देशमुख के कार्यकाल में यूआयडीएसएसएमआय की योजना हेतु नपा का चयन हुआ. सरकार ने ४० करोड रुपये की निधि दी. केंद्र और राज्य सरकार को अपेक्षा थी कि अब अचलपुर नपा में पेयजल की किल्लत नही होंगी. राज्य के १४६ शहरों को इसमें शामिल किया गया था, जिसमे अचलपुर को भी यह सम्मान मिला. २००६ में इस योजना को स्वीकृति मिली और प्रत्यक्ष में २००८ में इसका काम शुरू हुआ था.
७३ प्रतिशत अबाउ से इस काम का ठेका दिया गया था गोंडवाना नागपुर को और पीएमसी थे अकोला के जोशी असोसिएट. ठेका लेने के लिए पात्रता को नजरअंदाज किया गया और पहली शर्त थी कि कितना हिस्सा मिल सकेगा. अच्छी तरह से याद है कि संबंधित एजंसी के लोगों ने भरी आमसभा में गणमान्य लोगों को लिफाफे थमाये थे. यह खुले आम लिफाफा संस्कृति को पहली बार देखने का मौका मीडिया को भी मिला. इस ४० करोड के कार्य को तीन वर्षों में पूर्ण यानी २०११ तक पूर्ण किया जाना प्रमुख शर्त थी. संबंधित एजंसी को २०१५ तक एक्सटेंशन दिया जाता रहा, जिसका समापन पार्षद पवन बुंदेले की मारपीट के साथ हुआ. फिर गोंडवाना का ठेका रद्द किया गया.
उस पर नुकसान वसूली का दावा दाखिल किया गया. कोर्ट में केस चालू है. ७३ परसेंट ज्यादा दर से जिस एजंसी को काम दिया गया, वो एजंसी काम ना करे, काम छोडने को लालायित रहे, उसके साथ मारपीट हो और अब कोर्ट कचहरी. हमारे जागरूक जनप्रतिनिधियों की मेहरबानी से गोंडवाना काम छोड चला गया. उसका आधा-अधूरा काम अब अमृत योजना के माध्यम से किया जा रहा है. २०१५ में प्रधानमंत्री अटल बिहारी के नाम पर अमृत योजना शुरू की गई. नगर पालिका को इस योजना में भी स्थान मिला. २४ करोड रुपये की निधि स्वीकृत हुई. दो अलग अलग चरण में फेज में इसका इस्टीमेट तैयार किया गया. पहले फेज का काम राजाभाऊ घुले, पालघर को २१.०५ परसेंट बिलो में दिया गया. कारण साढे तेरह करोड का यह काम है.

अमृत योजना दूसरे फेज का काम एम.टी.फड, परभणी को मिला. दोनों चरण के मिलाकर नगर पालिका ने सिर्फ १८ करोड खर्च करने का प्रस्ताव बनाया है. इसमें शासन के ६ करोड रुपये बचे. इन दोनों भी टेंडर को राज्य सरकार की समिति ने मंजूरी प्रदान की थी. योजना अंतर्गत जलापूर्ति के लिए आवश्यक सडक निर्माण हेतु भी फंड मिला था, लेकिन नपा प्रशासन ने उस मद पर पैसा खर्च करना जरूरी नही समझा. इसमें भी यह विशेष उल्लेखनीय है कि, केंद्रीय मंत्री हंसराज अहीर के सहयोग से पालिका को अमृत योजना मिली थी. पुरानी यूआयडीएसएसएमआय योजना के तहत ९१ किमी पाइप लाइन बिछाना था और प्रत्यक्ष में ८५ किमी लाइन बिछाई गई. अमृत में १२५ किमी लाइन बिछाने का काम किया जाना था और अधिकांश लाइन बिछ चुकी है. अमृत की दोनों एजंसी का काम कोई तीसरा ठेकेदार देख रहा. लोग इन्हें प्रभाकर भताने के नाम से जानते है. प्रभाकर ने पालिका के हर दबंग नेता से रकम उधार लेकर उसे भारी ब्याज देने की चर्चा पालिका में सुनने को मिलती है. यही वजह भी है कोई भी खम ठोक कर ठेकेदार के खिलाफ शिकायत नही करता. दोनों स्कीम के तहत नोबागपूरा, विलायतपुरा, गुल्हाने नगर, शिवाजी नगर, टपालपूरा, परेड ग्राउंड में जलकुंभी का निर्माण किया गया. टपालपूरा में पुरानी टंकी को ढहा कर नई का निर्माण किया गया. गुजरात भूकंप के समय ही इस टंकी ने अपनी जर्जर हालत की घोषणा कर दी थी. अचलपुर जिप के सामने दो टंकी और परेड पर दो जुडवा जलकुंभी है. इस प्रकार पूरे शहर में ८ टंकियों के माध्यम से जलापूर्ति की जा रही है. अमृत योजना का बहुत कम कार्य होना फिलहाल बाकी है. पिछली योजना में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट व कर्मचारी निवास देवगांव यह काम भी किये गए. अभी ऑटोमोटेशन (एक ही जगह पर से पूरी योजना के संचालन को देख पाना) का महत्वपूर्ण कार्य बाकी है. इस काम के बाद नपा के जिम्मेदार अधिकारी अपने मोबाइल से भी जलापूर्ति योजना पर निगहबीनी कर सकेंगे. अमृत योजना नपा प्रशासन से जुडे कुछ बंदों के कारण अत्यंन्त कम रेट में साकार हो रही है, जो व्यक्ति २२ परसेंट और १५ फीसदी कम दर पर काम प्राप्त करेगा, वो फिर पदाधिकारियों को ‘एंटरटेन‘ क्यों करेगा?

चंद्रभागा और लीकेज है समस्या

चंद्रभागा डैम से नगर पालिका को पानी खरीदना पडता है. qसचाई विभाग के ३५ लाख रुपये नपा की ओर बकाया है. पानी की गिनती के लिए देवगांव प्लांट पर नपा ने मीटर नही लगाया. इससे खफा qसचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता ने नपा को सीमित मात्रा में पानी देना शुरू कर दिया. qसचाई विभाग का कहना है कि हमे पानी का हिसाब चाहिए. मीटर लगाना नपा की जवाबदारी है. नगर पालिका के पदाधिकारियों के पास समय नही है कि वो मीटर खरीद कर लगा सके. इस एकमात्र कारण से नागरिको को कम जलापूर्ति हो रही. हमेशा की तरह इसका भी इल्जाम अमृत योजना पर लगाया जा रहा, क्योंकि वहां से वसूली जीरो बटा सन्नाटा है. शहर का कोई भी जागरूक नागरिक सिंचाई विभाग में जाकर इस बारे में सच्ची जानकारी ले सकता है कि आखिर लोगो को कम जलापूर्ति क्यो हो रही है. नगर पालिका में एक समांतर घोटाला चल रहा है, लीकेज दुरुस्ती का. नपा के पास जलापूर्ति के काबिल योग्य स्टाफ नही है. मनीष चोमवाल ने प्रत्यक्ष जलापूर्ति संचालन का काम बखूबी किया था. अभी कोई भी पदाधिकारी लीकेज पर ना सभा मे चर्चा करता है और ना ही खुले मंच पर जानकारी देता है. लीकेज के नाम पर भी सभी दोषारोपण अमृत योजना पर लगा दिए जाते है. लोग लीकेज की शिकायत करने जाते हैं, तो संबंधित ठेकेदार लीकेज अमृत का है, यह कहकर पूरे प्रशासन को गुमराह कर देता है. इस लीकेज को महालीकेज बनाकर सभी अपनी जेब भर रहे. यह एक संगठित गिरोह की लूटमार कही जा सकती है.

राज्य और केंद्र सरकार का प्रमाणपत्र

यूूआयडीएसएसएम योजना और अमृत योजना में प्रशासकीय स्तर पर लापरवाही बरती गई, योग्य गुणवत्ता का प्रयोग नही किया गया आदि शिकायत उच्च स्तर पर किये जाने के बाद महाराष्ट्र शासन की ओर से तीन सदस्यों की जांच समिति अचलपुर में आई थी. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में पालिका प्रशासन की कार्यपद्धति, मटेरियल आदि को क्लीन चिट दी. लिखित में समिति ने कहा है कि काम अत्यंत योग्य तरीके से किया गया है. अब अमृत योजना की भी सुन ले. राज्य सरकार ने पूरे राज्य में शिर्डी, सातारा, अचलपुर और एक अन्य नपा के अमृत योजना क्रियान्वयन को सराहा है, उसकी प्रशंसा की. एक सरकार दूसरी सरकार के काम को गलत नही बताती है. इस तर्क के साथ अचलपुर नपा जलापूर्ति योजना की शिकायत केंद्र सरकार से भी की गई थी. तब इसकी थर्ड पार्टी जांच करवाई गई. एक सेवानिवृत्त अतिउच्च अधिकारी जोशी उक्त जांच के लिए जुडवां शहर में आये थे. इस जांच में भी जलापूर्ति विभाग के काम को योग्य बताया गया है. अमृत योजना के कार्य मे पुरानी स्कीम के पडे पाइप से २५ किमी का कार्य करने पर भी नपा जलापूर्ति को शाबाशी मिली है. कुल मिलाकर नगर पालिका के पदाधिकारियों की भ्रष्ट प्रवृत्ति, काम नही करने की इच्छा, योग्य नियोजन का नही होना ही आज हो रही जलकिल्लत के लिए प्रमुख कारण है

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