महज 10 दिन के शीतसत्र में विदर्भ को मिलेगा कितना स्थान?
मराठा-ओबीसी आरक्षण व बेमौसम बारिश से हुए नुकसान के मद्दे ही रहेंगे हावी
नागपुर/दि.2 – संयुक्त महाराष्ट्र का गठन करते समय किए गए नागपुर करार के अनुसार प्रतिवर्ष राज्य विधान मंडल का एक अधिवेशन विदर्भ से संबंधित प्रश्नों पर चर्चा करने हेतु नागपुर में आयोजित करने की परंपरा शुरु की गई थी, जो अब तक चली आ रही है और इसी परंपरा के अनुरुप आगामी 7 दिसंबर से नागपुर में राज्य विधान मंडल का शीतसत्र शुुरु होने जा रहा है. जिसमें विदर्भ से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत चर्चा होने की उम्मीद की जा रही है. परंतु यह अधिवेशन कभी भी 10 दिन से अधिक नहीं चलता और अपवादात्मक समय को छोड दिया जाए, तो अधिवेशन की अधिकतम कालावधि 2 सप्ताह के आसपास ही होती है. इस बार भी इस अधिवेशन में महज 10 दिनों का कामकाज हुआ. परंतु इन 10 दिनों के दौरान मराठा व ओबीसी आरक्षण तथा बेमौसम बारिश की वजह से हुए नुकसान की भरपाई का मामला जमकर छाया रहेगा. ऐसे मेें इस अधिवेशन के जरिए विदर्भ क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर कितनी चर्चा हो पाएंगी और कोई ठोस निर्णय लिए जा सकेंगे. इसे लेकर फिलहाल काफी संदेह बना हुआ है.
बता दें कि, इस बार नागपुर शीतसत्र का प्रारंभ 7 दिसंबर को होगा और यह अधिवेशन 20 दिसंबर तक चलेगा. यद्यपि उपरी तौर पर इस बार की अधिवेशन की कालावधि 14 दिनों की दिखाई दे रही है. परंतु यदि अवकाश वाले दिनों को छोड दिया जाए, तो इस बार नागपुर में विधानमंडल का केवल 10 दिन ही कामकाज चलेगा. उसमें से लगभग आधा समय सरकारी व गैर सरकारी प्रस्तावों, तारांकित प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव सहित विभिन्न मुद्दों पर होने वाली चर्चा में नष्ट हो जाएगा और बचे हुए समय के दौरान ओबीसी व मराठा आरक्षण तथा आपदाग्रस्त फसलों की नुकसान भरपाई जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष द्वारा सरकार को घेरने का प्रयास किया जाएगा. जिसके चलते यह सवाल अब भी बना हुआ है कि अखिर इस अधिवेशन में विदर्भ को कितना व किस तरह से न्याय मिल सकेगा. बता दें कि, अमूमन विधानमंडल के सत्र का प्रारंभ सत्ताह के पहले दिन यानि सोमवार से होता है. परंतु इस बार शीतसत्र का प्रारंभ गुरुवार से होगा और पहले सप्ताह में केवल 2 दिन ही कामकाज होगा. इसमें भी पहले दिन शोक प्रस्ताव पर चर्चा के बाद सदन के कामकाज को स्थगित कर दिया जाता है. वहीं दूसरे दिन सदन में मराठा आरक्षण को लेकर पूरे दिन चर्चा व हंगामा होने की संभावना है. साथ ही इस समय मराठा आरक्षण के साथ-साथ ओबीसी समाज की प्रलंबित मांगों पर भी चर्चा करने की मांग जोर पकड रही है. जिसके चलते पहले सप्ताह में विदर्भ से संंबंधित मसलों पर चर्चा हेतु समय मिलने की संभावना कम है. इसके पश्चात दूसरे सप्ताह में 5 और तीसरे सप्ताह में 3 ऐसे कुल 8 दिन कामकाज चलेगा. जिसमें विदर्भ क्षेत्र के अलावा राज्य के अन्य मुद्दे राजनीतिक कारणों को लेकर होने वाले हंगामे तथा समय पर आने वाले मुद्दों की भीड में विदर्भ से संबंधित मामलों को पर्याप्त समय मिलने की संभावना नहीं के बराबर है.
बता दें कि, विदर्भ में किसान आत्महत्या, प्रलंबित पडे विविध प्रकल्प, अनुशेष, पुनवर्सन, बाढ सदृश्य स्थिति व इससे हुई हानि, विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति व छात्रावास, संतरा उत्पादकों की दिक्कतें, समृद्धि महामार्ग पर बढते हादसे, धान खरीदी केंद्र के शुरु होने में विलंब होने से किसानों के हो रहे आर्थिक शोषण सहित कई महत्वपूर्ण मसलों की काफी बडी सूची है. इसके अलावा विगत शीतसत्र में दिए गए आश्वासनों की पूर्तता का मुद्दा भी इस शीतसत्र में विदर्भ के विधायकों द्वारा उपस्थित किए जाने की संभावना है. साथ ही इन सभी प्रश्नों को लेकर शीतसत्र में चर्चा की जाए, ऐसी मांगी विदर्भ क्षेत्र के विधायकों द्वारा की जा रही है.
उल्लेखनीय है कि, कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले व विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार विदर्भ से ही वास्ता रखते तथा उन्होंने शीतसत्र को कम से कम तीन सप्ताह चलाने की मांग की. ताकि विदर्भ क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने हेतु पर्याप्त समय मिले.