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सेना प्रत्याशी के रूप में जितूंगा शिक्षक विधायक का चुनाव

  •  शिक्षक आघाडी के प्रा. श्रीकांत देशपांडे का कथन

  •  महाविकास आघाडी के घटक दलों से भी साथ मिलने का किया दावा

अमरावती/प्रतिनिधि/दि.7 – विधान परिषद सीट के लिए पिछली बार अमरावती शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में हुए चुनाव के समय मेरा सामना तत्कालीन शिक्षक विधायक के साथ-साथ विदर्भ क्षेत्र की सबसे बडी शिक्षा संस्था के संचालक से था. बावजूद इसके मैने वह चुनाव 4 हजार 972 वोटों की लीड से जीता था. पश्चात मैंने खुद को मिले समय का सदुपयोग करते हुए संभाग के शिक्षकों से संबंधित सैंकडों समस्याएं हल की है. जिसका मुझे इस बार निश्चित तौर पर फायदा मिलेगा. साथ ही इस बार के चुनाव में कोई कडी टक्करवाली स्थिति भी नहीं है. ऐसे में मेरी जीत आज से ही पूरी तरह से निश्चित है. इस आशय का प्रतिपादन अमरावती शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से दुबारा चुनाव लडने जा रहे संभाग के शिक्षक विधायक प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने किया. साथ ही उन्होंने कहा कि, पिछली बार उन्होंने शिक्षक आघाडी की ओर से चुनाव लडा था. वहीं इस बार भी शिवसेना के अधिकृत प्रत्याशी के तौर ये चुनाव लडने जा रहे है. इसके लिए पार्टी की ओर से उनका ए-बी फॉर्म भी तैयार कर लिया गया है और इस संदर्भ में आगामी एक-दो दिनों में अधिकृत तौर पर घोषणा भी हो जायेगी.
दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए शिक्षक विधायक श्रीकांत देशपांडे ने कहा कि, वे शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के समय से कट्टर शिवसैनिक रहे है, और यहीं उनकी पहचान भी है. लेकिन चूंकि शिक्षक विधायक पद के चुनाव में अन्य चुनावों की तरह दलगत राजनीति का कोई विशेष महत्व नहीं रहता. अत: उन्होंने पिछला चुनाव अपने संगठन शिक्षक आघाडी के बैनरतले लडा था. वहीं अब उन्हें शिवसेना की ओर से अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया जा रहा है. जिसकी वजह से उन्हें राज्य की महाविकास आघाडी में शामिल कांग्रेस व राकांपा के साथ जुडे शिक्षक संगठनों का भी समर्थन प्राप्त होगा.

 भाजपा के लोग भी मेरे साथ

इस समय प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने विशेष तौर पर उल्लेखीत किया कि, इससे पहले राज्य में शिवसेना व भाजपा की युती रहने के बावजूद पिछले चुनाव में भाजपा की ओर से उम्मीदवार खडा किया गया था, किंतु उसे अपेक्षित वोट नहीं मिले और भाजपा की विचारधारा से जुडे कई शिक्षकों ने चुनाव के समय खुले तौर पर उनका काम किया. यह स्थिति इस बार भी देखी जायेगी. भले ही इस बार भी भाजपा की ओर से अपना उम्मीदवार खडा किया जा रहा हों.
इस समय प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने कहा कि, अमूमन शिक्षक चाहते है कि, इस चुनाव के जरिये कोई शिक्षक ही उनके प्रतिनिधि के तौर पर विधान परिषद में उनका प्रतिनिधित्व करे. शिक्षक विधायक का पद अपने आप में काफी महत्वपूर्ण होता है. इस पद पर निर्वाचित होने के बाद आप केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र के ही शिक्षकों के प्रति उत्तरदायी नहीं होते, बल्कि आप को समूचे राज्य के शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के बारे में विचार करना पडता है और उस हिसाब से उनके हितोंं व लाभ को ध्यान में रखते हुए सरकार से नीतियां बनवानी पडती है.

छह वर्ष में कई उल्लेखनीय काम किये

बतौर शिक्षक विधायक विगत 6 वर्षों के दौरान अपने द्वारा किये गये कामोें के संदर्भ में बातचीत करते हुए प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने कहा कि, इन छह वर्षों के दौरान उन्होंने शिक्षकों के वेतन, पेन्शन, अनुदान तथा वेतन आयोग से संबंधित कई समस्याओं को सफलतापूर्वक हल किया. जिसकी वजह से केवल संभाग ही नहीं बल्कि समूचे राज्य के हजारों-लाखों शिक्षक लाभान्वित हुए है. इससे पहले 18 साल से बिना वेतन पर काम कर रहे 37 हजार शिक्षकों को पहले चरण में 20 प्रतिशत का अनुदान दिलाया गया. साथ ही दूसरे चरण का काम भी पूरा हो गया है. जिसे मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के साथ ही मुख्यमंत्री की मान्यता भी मिल चुकी है और केवल जीआर निकलना बाकी है. आगामी 1 दिसंबर से दूसरे चरण में 45 हजार शिक्षकों का वेतन शुरू हो जायेगा. इसके अलावा वर्ष 2009 में ‘कायम’ शब्द हटने के पहले से बिना अनुदानित शालाओं में काम कर रहे शिक्षकों की वेतन निश्चिती का काम भी किया गया और सरकार को इस बात के लिए बाध्य किया गया कि, संबंधित शिक्षक को निश्चित वेतन का लाभ उसकी नियुक्तिवाले दिन से मिले. इसी तरह आदिवासी अप्रशिक्षित शिक्षकों को भी सातवे वेतन आयोग के तहत 8 हजार 760 रूपयों का मूल वेतन निश्चित कराया गया और वीजेएनटी हेतु 14 हजार ज्यूनियर कालेज में वेतन शुरू करवाया गया. सबसे उल्लेखनीय काम यह रहा कि, इससे पहले हर वेतन आयोग की सिफारिशे आने के बाद राज्य सरकार द्वारा उनका अध्ययन करने हेतु गठित की जाती थी और समिती के सुझावों के आधार पर सरकार द्वारा वेतन आयोग की सिफारिशों को कई कांट-छाट के बाद लागू किया जाता था, लेकिन उन्होंने शिक्षक विधायक निर्वाचित होने के बाद ही सभी शिक्षकों से वादा किया था कि, वे सातवे वेतन आयोग की सिफारिशों पर जस का तस लागू करवायेंगे और उन्होंने ऐसा करने में सफलता भी हासिल की.

मतदाता संख्या घटने से फर्क नहीं पडेगा

विगत चुनाव में मतदाता सूची में लगभग 46 हजार मतदाता थे. वहीं इस बार केवल 36 हजार मतदाताओं का ही पंजीयन हुआ है. इससे संबंधित सवाल पर शिक्षक विधायक श्रीकांत देशपांडे का कहना रहा कि, उस समय 2008 की मतदाता सूची को यथावत रखने और उसमें नये नाम जोडने का आदेश हाईकोर्ट द्वारा दिया गया था. लेकिन अब हाईकोर्ट ने उस स्थगनादेश को हटा लिया है और अब नये सिरे से मतदाता सूची बनायी गयी है. ऐसे में यह अपने आप में बेहद सटिक मतदाता सूची है. वैसे भी पिछली बार भले ही मतदाता सूची में 46 हजार नाम दर्ज थे, लेकिन प्रत्यक्ष मताधिकार का प्रयोग केवल 27-28 हजार शिक्षक मतदाताओं द्वारा किया गया था. ऐसे में इस बार 36 हजार शिक्षकों की मतदाता सूची है, तो इसका चुनाव परिणाम पर कोई विशेष फर्क नहीं पडनेवाला.

इस बार जीत ज्यादा आसान होगी

इस चुनाव की पिछले चुनाव के साथ तुलना किये जाने के संदर्भ में पूछे गये सवाल पर प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने कहा कि, पिछले चुनाव में उनके सहित 17 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है. वहीं इस बार इस समय तक करीब 28 लोगों द्वारा नामांकन पत्र उठाये गये है, और पूरी उम्मीद है कि, इस बार करीब 20 प्रत्याशी चुनावी मैदान में रहेंगे, लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पडनेवाला. क्योंकि पिछली बार उनके सामने जिस तरह के दिग्गज थे, इस बार वैसा कोई दमदार प्रत्याशी दिखाई नहीं दे रहा. ऐसे में जहां उन्होंने पिछली बार 4 हजार 972 वोटों से चुनाव जीता था, वहीं इस बार उनकी जीत का अंतर और भी अधिक बडा रहेगा.

चुनाव जीतने के बाद किये जानेवाले कामों की सूची भी तैयार

इस बातचीत के दौरान शिक्षक विधायक प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने कहा कि, आगामी 1 दिसंबर को होनेवाले मतदान के बाद अपनी जीत को सुनिश्चित मानकर उन्होंने अपने द्वारा भविष्य में किये जानेवाले कामों की सूची को अभी से तैयार करके रखा है, और चुनाव जीतकर आने के बाद सातवे वेतन आयोग को लेकर मौजूद खामियों को दूर करते हुए दूसरे चरण का सरकारी जीआर जारी करवाना है तथा अघोषित को घोषित कैटेगिरी में लाना है. इसके बाद आगामी एक साल के भीतर यह सुनिश्चित कर लिया जायेगा कि, शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत एक भी कर्मचारी बिना वेतन के न रहे. इसके अलावा निजी इंजिनिअरींग व पॉलीटेक्नीक कालेजों में भी अनियमित वेतन की जो समस्याएं है, उन्हें दूर किया जायेगा. इसके अलावा 1 नवंबर 2005 से पहले और बाद में लगे सभी शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के लिए पुरानी पेन्शन योजना लागू करवायी जायेगी. क्योेंकि संविधान तैयार करते समय उस संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने इस पेन्शन पध्दति को कर्मचारियों के मुलभूत अधिकार के रूप में मान्यता दी थी. इसके अलावा विभिन्न शिक्षा संस्थाओं में काम करनेवाले शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की वेतन वृध्दि, वेतन श्रेणी में सुधार, जीपीएफ आदि को लेकर जितनी भी समस्याएं हैं उन्हें भी दूर करने का पूरा प्रयास किया जायेगा.

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