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अपनी पुश्तैनी जमीन को अतिक्रमण मुक्त करने हम खा रहे दर-दर की ठोकरे

दर्यापुर निवासी जितेंद्र खारोडे ने पत्रवार्ता में कही अपनी व्यथा

  • भुमि अभिलेख कार्यालय पर जानबूझकर मानसिक तकलीफ देने का लगाया आरोप

अमरावती प्रतिनिधि/दि.२४ – दर्यापुर के बनोसा निवासी जितेंद्र नारायणराव खारोडे नामक व्यक्ति ने यहां एक पत्रकार परिषद बुलाकर कहा कि, उनके पिता द्वारा अर्जित पुश्तैनी जमीन सर्वे नं. ३३/२, क्षेत्रफल ० हे. २५ आर पर पुरूषोत्तम विश्वनाथ खारोडे नामक व्यक्ति द्वारा गैरकानूनी ढंग से कब्जा करते हुए वहां पर अनिकेत रेस्टॉरेंट नामक होटल का पक्का निर्माण किया गया है. ऐसे में इस अवैध निर्माण को ढहाने तथा अपनी कृषि भुमि से इस अतिक्रमण को हटाने के लिए वे विगत दो वर्षों से विभिन्न सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे है. लेकिन इसका अब तक कोई फायदा नहीं हुआ. इस पत्रकार परिषद में अपनी जमीन से संबंधित दस्तावेजों के साथ ही वर्ष २०१७ से अब तक सरकारी कार्यालयों के साथ किये गये पत्रव्यवहार की प्रतिलिपियां पेश करते हुए जितेंद्र खारोडे ने कहा कि, उन्होंने इस मामले में इससे पहले लोकशाही दिवस पर जिलाधीश कार्यालय में शिकायत भी दर्ज करायी थी. जिसके जवाब में पुरूषोत्तम खारोडे ने जवाब दाखिल किया था कि, उनका होटल अर्जदार जितेंद्र खारोडे की जमीन पर नहीं है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, फिर जितेंद्र खारोडे की पुश्तैनी जमीन कहां है.

जिसके बाद जिलाधीश ने दर्यापुर के भुमि अभिलेख उपअधिक्षक को इस जगह की नापजोख करने का आदेश जारी किया गया. इस आदेश के अनुसार अर्जदार जितेंद्र खारोडे ने सरकारी नापजोख हेतु १९ हजार ५०० रूपये का शुल्क भी अदा किया. किंतु भुमि अभिलेख कार्यालय द्वारा जानबुझकर गलत नापजोख करते हुए इस काम में कई तकनीकी गडबडियां छोडी गयी. जिसके बारे में उन्होेंने भुमि अभिलेख के जिला अधीक्षक व उप संचालक कार्यालय में कई बार पत्र दिये और विगत १४ अक्तूबर को जिला अधीक्षक कार्यालय द्वारा उन्हें निमताना नापजोख का शुल्क भरने का निर्देश दिया गया, लेकिन इस शुल्क की राशि काफी अधिक होती है और इससे पहले हुई नापजोख खुद भुमि अभिलेख कार्यालय की लापरवाही की वजह से गलत ढंग से की गई. ऐसे में भुमि अभिलेख कार्यालय को चाहिए कि, वे उनकी जमीन की सही नापजोख करके दें. इस पत्रवार्ता में जितेंद्र खारोडे ने आरोप लगाया कि, वे अपनी पुश्तैनी जमीन का अधिकार प्राप्त करने हेतु विगत दो वर्षों से लगातार सरकारी कार्यालयों में चक्कर पर चक्कर काट रहे है और भुमि अभिलेख कार्यालय की लापरवाही का शिकार हो रहे है. अत: स्थानीय प्रशासन द्वारा उन्हें उनकी जमीन का अधिकार जल्द से जल्द दिया जाये.

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