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ऐन बुआई के मुहाने पर खाद व बीज की कीमतों में वृध्दी

  •  कोरोना काल में कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं

  •  पहले से परेशान किसानों की दिक्कतें और बढी

अमरावती/प्रतिनिधि दि.15 – विगत दो वर्षों से लगातार चल रहे गिले व सूखे अकाल तथा जारी वर्ष के दौरान हुई बेमौसम बारिश की वजह से खरीफ व रबी की फसलों का काफी नुकसान हुआ है. वहीं इस बीच कोविड संक्रमण की वजह से लॉकडाउन लागू किये जाने के चलते कृषि सेवा केेंद्र बंद पडे है. इस तरह के कई संकटों से जहां किसान पहले ही हैरान-परेशान है, वहीं अब ऐन खरीफ बुआई के मुहाने पर खाद और बीजों की कीमतों में भारी-भरकम वृध्दि होने के चलते किसानों की दिक्कतें और भी अधिक बढ गयी है. साथ ही खाद और बीजों की कीमतों पर नियंत्रण रखने में सरकार पूरी तरह असफल साबित दिखाई दे रही है. ऐसे में किससे इन्साफ मांगा जाये, यह सवाल से जिले के किसान जूझ रहे है. साथ ही मौजूदा भयावह स्थिति को देखते हुए खाद और बीजों के दाम कम करने की मांग जिले के अनेकों किसानों द्वारा की जा रही है.
बता दें कि, बीते वर्ष जिले में औसत से अधिक वर्षा हुई थी. जिसके चलते खरीफ फसलों की स्थिति काफी अच्छी थी और फसलों को लेकर किसानों की उम्मीदें बढी हुई थी. किंतु फसलोें की कटाई के समय अक्तूबर व नवंबर माह के दौरान बेमौसम बारिश शुरू हो गयी. ऐसे में किसानों के मुंह तक आया निवाला प्रकृति ने छीन लिया. इस बेमौसम बारिश की वजह से सोयाबीन, कपास, ज्वारी व मक्का जैसी कई फसले मिट्टी में मिल गयी. साथ ही जो उपज हाथ में आयी, उससे अधिकांश किसानोें का उत्पादन खर्च भी नहीं निकल पाया. ऐसे में किसानों की पूरी आशाएं रबी फसलों पर आकर टीक गयी तथा जल संग्रहण प्रकल्पों व कुओं में भरपूर पानी रहने के चलते किसानों ने करीब सवा 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुआई की. किंतु रबी फसलों की कटाई का समय आने पर एक बार फिर फरवरी व मार्च माह के दौरान बेमौसम बारिश शुरू हो गयी. ऐसे में रबी फसलों की उपज भी प्रभावित हुई. वहीं जो किसान अपनी उपज को जैसे-तैसे बचाकर अपने घर ले आये, वैसे ही बाजार में कृषि उपज के दाम कम हो गये. इन सारी बातों के चलते जिले के किसान पूरी तरह से हैरान-परेशान हो गये है और जबर्दस्त आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहे है. वहीं अब ऐन खरीफ बुआई के मुहाने पर विविध कंपनियों द्वारा रासायनिक खादों की कीमतों में काफी वृध्दि कर दी गई है और यूरिया को छोडकर शेष सभी खाद की कीमते बढ गयी है. इसके साथ ही बीजों के दाम भी बढे हुए नजर आ रहे है. जिसे देखते हुए पहले ही आर्थिक दुष्चक्र का सामना करनेवाले किसान अब और भी अधिक चिंता में देखे जा रहे है. साथ ही खाद और बीजों की कीमतोें पर नियंत्रण रखने में सरकार पूरी तरह असफल साबित हो रही है. अत: इसके खिलाफ कहा गूहार लगायी जाये, यह किसानों के समझ में नहीं आ रहा.

  •  गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष के दाम

जिले के कपास व सोयाबीन उत्पादक किसानों द्वारा डीएपी व यूरीया खाद का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है. इससे पहले डीएपी खाद के एक बैग की कीमत 1500 रूपये थी, जो इस बार 1900 रूपये प्रति बैग हो गई है. इसी तरह गत वर्ष एनपीके खाद की कीमत 300 रूपये प्रति बैग थी, जो अब बढकर 350 रूपये हो गयी है. जिले के किसानों द्वारा जैविक खाद का प्रयोग नहीं के बराबर किया जाता है और बडे पैमाने पर रासायनिक खाद को प्रयोग में लाया जाता है. ऐसे में प्रतिवर्ष रासायनिक खादों की कीमतें बढ रही है. अत: सरकार द्वारा रासायनिक खाद के दामों पर नियंत्रण रखना बेहद जरूरी हो चला है.

  • चार हजार रूपये ट्रॉली से मिलती है गोबरखाद

जिले में आज भी कई किसानों द्वारा जैविक खेती की जाती है और गांव-गांव जाकर गोबरखाद खरीदी जाती है. किंतु इस वर्ष गोबरखाद की कीमत में भी वृध्दि हुई है और गोबरखाद की एक ट्रॉली साढे 3 से 4 हजार रूपये में बेची जा रही है.

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