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दीपावली के फराल पर महंगाई का तडका

तेल के दाम बढे, अचारियों की हो रही किल्लत, किराणा के दाम स्थिर

अमरावती/प्रतिनिधि दि.6 – इस बार यद्यपि किराणा बाजार में वस्तुओं के दाम स्थिर है, लेकिन तेल में लगातार दरवृध्दि जारी है. ऐसे में दीपावली के फराल यानी नाश्ते को महंगाई का तडका लगना पूरी तरह से तय है. वर्ष 2019 की तुलना में इस बार यद्यपि किराणा माल की दरेें कम है, लेकिन कोरोना संकट की वजह से कई लोगों का रोजगार चला गया है. ऐसे में लोगों की आय घट गयी है. इसके साथ ही जारी वर्ष में लगातार हुई बारिश की वजह से खेती-किसानी में भी काफी नुकसान हुआ है और सोयाबीन, मूंगफल्ली, तिल्ली, करडई व जवस की उपज घटी है. ऐसे में तेल की कीमतों में काफी उछाल है. ऐसे में दीपावली पर बननेवाले फराल की लागत में काफी हद तक इजाफा होना तय है.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, पहले जहां संयुक्त परिवार हुआ करते थे और दीपावली का फराल घर की महिलाओं द्वारा मिल-जुलकर बना लिया जाता था, वहीं इन दिनों एकल परिवारों का चलन बढ गया है. इसमें भी ऐसे परिवारों में पति-पत्नी नौकरी अथवा व्यवसाय में व्यस्त होते है. अत: घर पर फराल बनाने का किसी के पास समय नहीं है. जिसकी वजह से लोगबाग बाजार से रेडिमेड फराल खरीदना पसंद करने लगे है. इस बात के मद्देनजर शहर में जगह-जगह मिष्ठान्न व्यवसायियों व बचत गुटों द्वारा फराल की दुकाने लगायी जाती है. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के खतरे की वजह से जहां एक ओर लोगबाग बाहर की बनी वस्तुओं का सेवन करना टाल रहे है, वहीं दूसरी ओर ऐसी दूकाने लगानेवाले लोगों को कारागीरों की कमी की समस्या का भी सामना करना पड रहा है, क्योंकि कोरोना संक्रमण के खतरे की वजह से कारागीर भी पहले की तरह सहज ढंग से उपलब्ध नहीं है. ऐसे में मांग की तुलना में आपूर्ति का गणित गडबडा गया है. जिसका सीधा असर फराल के दामों पर पड रहा है. वहीं इसका एक असर यह भी हो रहा है कि, फराल के दाम बढने की वजह से लोगों ने भी फराल की खरीदी में अपना हाथ खींच लिया है और बिक्री काफी कम हो रही है.

कोरोना के भय से आचारी नहीं मिल रहे

जिले में अब तक कोरोना का संक्रमण पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है. जिसके चलते सभी लोगबाग अपने-अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी सचेत है. ऐसे में बचत गुटों को फराल साहित्य बनाने के लिए अचारी भी नहीं मिल रहे. ऐसे में माल तैयार करने में काफी समस्याओं व दिक्कतों का सामना करना पड रहा है. इस संदर्भ में कई बचत गुटों का संचालन करनेवाली महिलाओं के मुताबिक बचत गुटों द्वारा तैयार किये जानेवाले फराल को लोगोें की ओर से अच्छीखासी मांग मिलनी शुरू हो गयी थी और वे प्रतिवर्ष चकली, शंकरपाले, लड्डू व गुझिया जैसे विभिन्न व्यंजन बनाते है. जिनकी काउंटर बिक्री करने के साथ ही ऑर्डर लेकर घर पहुंच डिलीवरी भी की जाती है. इस बार भी पंद्रह दिन पहले से माल तैयार करने, पैकींग करने और ऑर्डर के अनुसार घर पहुंच डिलीवरी करने का नियोजन किया गया था. लेकिन कोरोना की वजह से माल तैयार करने के लिए कारागीर ही उपलब्ध नहीं है. वहीं गत वर्ष की तरह ऑर्डर भी प्राप्त नहीं हुए है.

तेल के दाम बढने से हो रही दिक्कत

बता दें कि, दीपावली का फराल तैयार करने के लिए बडे पैमाने पर तलन हेतु तेल की जरूरत पडती है. खासकर सेव, पपडी, गाठिया, बुंदी, चकली जैसे व्यंजनों को बनाने के लिए तलन की सबसे बडी भुमिका होती है, लेकिन इस बार जहां एक ओर तेल के भाव बढ जाने की वजह से इन व्यंजनों की लागत बढ गयी है. वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य के लिहाज से लोगबाग बाहर की तली हुई वस्तुए खाने और खरीदने से बच रहे है. ऐसे में रेडिमेड फराल तैयार कर उसकी बिक्री करनेवाले लोगों को दोहरी मुसीबत का सामना करना पड रहा है.
इस संदर्भ में एक किराणा व्यवसायी ने बताया कि, तेल को छोडकर दीपावली के फराल हेतु लगनेवाले अन्य सभी तरह के साहित्य की कीमतें गत वर्ष की तुलना में कमी है. लेकिन इस बार कोरोना की वजह से लोगों के हाथ काफी हद तक तंग है. ऐसे में पैसों का अभाव रहने के चलते इस वर्ष लोगबाग अपने बजट के हिसाब से ही खरीददारी कर रहे है.

फराल की तुलनात्मक दरे (रूपये प्रति किलो)

व्यंजन      2019   2020
चिवडा        200     250
चकली        200     300
मोतीचूर      400     400
लड्डू          350     400
गुझिया       350     500
अनारसे       300     500
सेव            250     250
शंकरपाले    200      200

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