पानी से ज्यादा कहीं राजनीतिक इच्छाशक्ति तो नहीं पड रही कम?
अपर्याप्त व वक्त-बेवक्त की जलापूर्ति से शहर में हर कोई हैरान-परेशान
* लंबे समय से पाइप-लाइन को बदलने को लेकर चल रही चर्चा
* प्रस्ताव पर कब तक होगा अमल, किसी को नहीं पता
अमरावती/दि.23 – वर्ष 1980 से 1990 वाले दौर में अमरावती शहर की पानी संबंधी भविष्य की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन जनप्रतिनिधियों में अपर वर्धा जैसे महत्वपूर्ण प्रकल्पों को साकार करने के लिए दिन-रात एक कर दिया था तथा तत्कालीन सांसद व पूर्व महामहिम श्रीमती प्रतिभाताई पाटिल तथा पूर्व सांसद उषाताई चौधरी व सुदामकाका देशमुख, पूर्व मंत्री सुरेंद्र भुयार, रिपाई नेता व पूर्व राज्यपाल दादासाहब उर्फ रा. सू. गवई, पूर्व राज्यमंत्री वसुधाताई देशमुख, पूर्व विधायक व पूर्व महापौर डॉ. देविसिंह शेखावत, पूर्व स्नातक विधायक प्रा. बी. टी. देशमुख तथा पूर्व विधायक यशवंत शेरेकर जैसे सर्वदलिय व सर्वपक्षिय नेताओं ने साझा प्रयास करते हुए मोर्शी के निकट सिंभोरा में अप्पर वर्धा बांध की संकल्पना को साकार करने में सहयोग दिया था. जिसकी बदौलत विगत करीब 35-40 वर्षों से अमरावती शहर साफ-सूथरे व शुद्ध पेयजल के मामले में आत्मनिर्भर है. 80 से 90 के दशक में अप्पर वर्धा बांध के जरिए जीवन प्राधिकरण के माध्यम से अमरावती शहर ने जलापूर्ति योजना शुरु करते समय वर्ष 2024 तक के नियोजन को ध्यान में रखा गया था. ऐसे में आगे चलकर सत्ता में आने वाले और जनप्रतिनिधि चूने जाने वाले लोगों की यह जिम्मेदारी बनती थी कि, वे वर्ष 2024 से आगे के लिए भविष्य हेतु इस योजना का विस्तार करते हुए नियोजन करें, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि, आगे चलकर तेजी से विस्तारित होते शहर और भविष्य में पैदा होने वाली जरुरत की ओर अपेक्षित तौर पर ध्यान भी नहीं दिया गया. जिसका खामियाजा आज अमरावती शहर और यहां के बांशिंदों को अपर्याप्त जलापूर्ति के तौर पर भुगतना पड रहा है. जबकि पूरानी पीढि के नेताओं द्बारा साकार किए गए अप्पर वर्धा बांध में अमरावती शहर की प्यास बुझाने लायक भरपूर पानी है. परंतु सिंभोरा स्थित बांध से अमरावती स्थित जलशुद्धिकरण केंद्र तक पानी पहुंचाने वाली पाइप-लाइन की उम्र लगभग खत्म हो चुकी है और यह पुरानी पाइप-लाइन कितने वर्षों के दौरान जमीन के नीचे जगह-जगह पर जर्जर व खस्ताहाल हो गई है. ऐसे में इस पाइप-लाइन को सहेजते हुए कम फोर्स के साथ पानी छोडने की मजबूरी बनी हुई है, क्योंकि यदि पानी को पहले की तरह पूरे फोर्स के साथ छोडा जाता है, तो पाइप-लाइन के फट जाने का खतरा है. चूंकि इतने वर्षों के दौश्रान भविष्य की जरुरत को ध्यान में रखते हुए इस पूरानी पाइप-लाइन को बदलने या इसके स्थान पर नई पाइप-लाइन बिछाने को लेकर गंभीरतापूर्वक प्रयास नहीं हुए, ऐसे में कहा जा सकता है कि, अमरावती में पानी कम होने की समस्या नहीं है, बल्कि शायद राजनीतिक इच्छशक्ति और मुंबई मंत्रालय में राजनीतिक वजन कम पड रहे है. जिसका खामियाजा अमरावती की जनता को जलसंकट के तौर पर भुगतना पड रहा है.
उल्लेखनीय है कि, जिस जमाने में अप्पर वर्धा बांध से अमरावती शहर को जलापूर्ति करनी शुरु की गई थी. उस समय रोजाना चौबीसों घंटें नलों से पानी आया करता था. कालांतर में जलापूर्ति करने के समय को हटाया गया, ताकि पानी की बर्बादी को रोका जा सके. इसके तहत हर इलाके में रोजाना अलग-अलग समय पर 2 से 3 घंटे नलों से पानी छोडा जाने लगा. साथ ही साथ पानी की बर्बादी को रोकने हेतु बिना टोटी वाले सार्वजनिक नलों यानि पब्लिक स्टैंड को बंद किया गया. इसके पश्चात विगत एक दशक के दौरान दो-तीन वर्ष तक समाधानकारक बारिश नहीं होने और अप्पर वर्धा बांध में जलसंग्रहण गर्मी के मौसम के लिहाज से पर्याप्त नहीं रहने के चलते अमरावती शहर को अप्पर प्लेटो और लोअर प्लेटो ऐसे दो हिस्सों में विभाजीत करते हुए आधे-आधे शहर को एक-एक दिन की आड लेते हुए जलापूर्ति करनी शुरु की गई. यहां तक भी अमरावतीवासियों को कोई विशेष तकलीफ नहीं हुई. क्योंकि एक-एक दिन की आड रहने के बावजूद 2 से 3 घंटे भरपूर मात्रा में पानी छोडा जाता था. जो पहली मंजिल पर स्थित मकानों तक भी बिना मोटर पंप लगाए आसानी के साथ चढ जाया करता था. लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे पानी छोडे जाने का समय घटाया जाने लगा और पानी का फोर्स भी कम हो गया. जिसकी वजह से नलों से निकलने वाली पानी की धार दिनोंदिन पतली होने लगी. ऐसे में पहली मंजिल पर पानी चढना, तो दूर निचली मंजिल पर नल की टोटी थोडे से भी उंचे पाइप पर रहने पर भी पानी की धार रुक-रुककर आना शुरु हो गई है. ऐसे में लोगबाग अपनी जरुरत के हिसाब से पानी भरने मेें दिनोंदिन असमर्थ होते जा रहे है. सबसे भीषण समस्या जारी वर्ष के मई व जून माह में देखी गई. एक तो इस वर्ष मई व जून माह के दौरान भीषण गर्मी पडी. वहीं मई माह में दो बार व जून माह में दो बार एक-एक दिन की आड वाली जलापूर्ति में भी कुल 4 बार पानी की आपूर्ति को बंद रखा गया. जिसकी वजह से दुबले पर दो आषाढ वाली कहावत चरितार्थ हो गई तथा लोगों को नहाना-धोना तो दूर पीने के लिए पानी का जुगाड करने हेतु बाल्टी गगरा लेकर इधर से उधर भटकना पडा.
* बोअरवेल व हैंडपंप भी साबित हो रहे नाकाम
विशेष उल्लेखनीय है कि, किसी समय शहर में लगभग सभी घरों में पानी की जरुरत के लिए कुए हुआ करते थे. लेकिन आगे चलकर कुओं का स्थान सैकडों फीट गहरे बोअरवेल ने ले लिया और जगह-जगह पर बोअरवेल खोदते हुए हैंडपंप लगा दिए गए. शहर में इस समय हजारों की संख्या में बोअरवेल है. जिनकी वजह से जमीन मानों छल्ली हो गई है. साथ ही ऐसे बेाअरवेल से पानी का बेताहाशा दोहन होने के चलते भूगर्भिय जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है और बोअरवेल व हैंडपंप भी लगभग सूखे पडे है. वहीं कुओं की संख्या भी घट गई है. इन तमाम बातों के चलते ज्यादातर लोग जीवन प्राधिकरण द्बारा की जाने वाली जलापूर्ति पर ही निर्भर हो गए है, लेकिन जीवन प्राधिकरण के नलों से भी पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा. ऐसे में अमरावतीवासियों के सामने ‘जाए तो जाए कहां’ वाली स्थिति बन गई है और लोगबाग इस समस्या के समाधान हेतु स्थानीय जनप्रतिनिधियों व राजनेताओं की ओर उम्मीदों भरी निगाहों से देख रहे है, ताकि वे सरकार व प्रशासन के साथ मिलकर पर्याप्त व समूचित जलापूर्ति को सुचारु करने हेतु कोई रास्ता निकाले. परंतु अप्पर वर्धा बांध को साकार करते समय अमरावती के सर्वदलिय नेताओं मेें जिस तरह के आपसी समन्वय और शहर की भलाई हेतु एकता का भाव था. वह मौजूदा दौर के नेताओं मेें लगभग नदारद है. क्योंकि इस समय हर कोई ‘अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग’ में व्यस्त है और उन्हें शायद अपने हितों के सामने जनता का त्राहिमाम सुनाई नहीं दे रहा.
* अगली गर्मी तक हल हो जाएगी समस्या
अमरावती शहर की विधायक सुलभा खोडके के मुताबिक सिंभोरा से अमरावती के तपोवन परिसर स्थित जलशुद्धिकरण केंद्र तक पानी पहुंचाने वाली मुख्य जलवाहिनी काफी पूरानी हो चुकी है, ऐसे में इसे बदलने का प्रस्ताव खुद उन्होंने करीब 2 वर्ष पहले राज्य सरकार के समक्ष रखा था. जिसे लेकर जल्द ही मुख्य सचिव के साथ बैठक होगी और इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार की ओर से मंजूरी मिलते ही नई पाइप-लाइन डालने का काम शुरु हो जाएगा. इसके तहत पूरानी पाइप -लाइन को यथावत रखते हुए नई पाइप-लाइन डाली जाएगी, ताकि पाइप-लाइन बदलने का काम जारी रहते समय जलापूर्ति बंद न हो, इसके साथ ही राज्य सरकार के नगर विकास विभाग के जरिए अमल में लायी जाने वाली अमृत योजना के दूसरे चरण में अमरावती शहर के लिए वर्ष 2055 तक की जरुरतों और विस्तार को ध्यान में रखकर जलापूर्ति का नियोजन किया जाएगा. यह काम पूरा होने में मंजूरी मिलने के बाद बमुश्किल एक साल का समय लगेगा और यदि अभी एक-दो महिने में इसे केंद्र सरकार से मंजूरी मिल जाती है, तो आगामी वर्ष की गर्मी के मौसम से पहले इस समस्या का समाधान हो जाएगा.
* कहीं न कहीं मजीप्रा का नियोजन चूक रहा है
वहीं इस संदर्भ में पूर्व पालकमंत्री व विधान परिषद सदस्य प्रवीण पोटे पाटिल का कहना रहा कि, अप्पर वर्धा बांध में जलसंग्रहण की स्थिति शानदार है और अमरावती शहर में अंतर्गत वितरण पाइप-लाइन व पानी की टंकियों का काम भी पूरा हो चुका है. यानि मुख्य समस्या सिंभोरा बांध से पानी को जलशुद्धिकरण केंद्र तक पहुंचाने और जलशुद्धिकरण केंद्र से पानी की टंकियों में चढाने को लेकर है. जिसका नियोजन जीवन प्राधिकरण के अधिकारियों को ही करना है और यदि इस नियोजन में कहीं भी किसी भी तरह की गडबडी हो रही है, तो इसका सीधा मतलब है कि, मजीप्रा के अधिकारियों का नियोजन कहीं न कहीं चूक रहा है. पाइप-लाइन पूरानी हो गई है और ज्यादा फोर्स रहने पर फट सकती है, इस वजह को आगे करते हुए मजीप्रा अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड सकती. अगर वाकई पाइप-लाइन कमजोर हो गई, तो कम फोर्स के साथ चौबीसों घंटें सिंभोरा बांध से जलशुद्धिकरण केंद्र तक पानी लाने का काम जारी रखा जाना चाहिए और जलशुद्धिकरण केंद्र से पानी की टंकियों तक पानी पहुंचाने में तो कोई समस्या ही नहीं है, तो नाहक ही अमरावती शहरवासियों को अपने गलत नियोजन का खामियाजा भुगतने हेतु मजबूर क्यों किया जा रहा है. यह समझ से परे है. विधायक पोटे ने यह भी कहा कि, वे बहुत जल्द इस संदर्भ में जीवन प्राधिकरण के स्थानीय अधिकारियों एवं राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहित संबंधित मंत्री व अधिकारियों से चर्चा करेंगे.
* क्या कर रहे हैं जनप्रतिनिधि, साढे 4 साल से किसी का कोई ध्यान ही नहीं
इस संदर्भ में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व विधायक डॉ. सुनील देशमुख ने कहा कि, उन्होंने अमरावती का विधायक रहते समय अमृत योजना के पहले चरण के तहत शहर में 10 जलकुंभों का निर्माण करवाने के साथ ही नई रिहायशी बस्तियों तक पानी पहुंचाने हेतु करीब 550 किमी लंबी भूमिगत पाइप-लाइन डलवाने का काम किया था. साथ ही सिंभोरा बांध से अमरावती तक पानी पहुंचाने वाली मुख्य जलवाहिनी को सुधारने व बदलने के प्रयास भी शुरु किए थे. परंतु अमरावती शहर में 2-2 सांसद व 2-2 विधायक रहने के बावजूद विगत साढे 4 वर्ष के दौरान शहर की जनता की मूलभूत जरुरत के साथ जुडे इस मसले की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया. जिसका परिणाम आज जलसंकट के तौर पर सबके सामने है. डॉ. देशमुख के मुताबिक राजनीति हमेशा विकासपूरक होनी चाहिए. लेकिन अमरावती के स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्बारा विकास की अनदेखी करते हुए बेवजह की बातों को लेकर राजनीति की जा रही है. जिसका खामियाजा आज अमरावती शहरवासियों को भूगतना पड रहा है.