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७० वर्षीय नारायणराव १४ वर्षीय आयु से उठा रहे खापरी
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आग में तपी हुई खापरी लेकर करते है देवी की प्रदक्षिणा
अमरावती/प्रतिनिधि दि.२३ – समीपस्थ नेरपिंगलाई स्थित पिंगला देवी गड पर पिंगला देवी माता का मंदिर है. जहां पर विगत २०० वर्षों से नवरात्र पर्व के अवसर पर खापरी की विधि पूर्ण की जाती है. जिसमें नारायणराव शंकरराव मारंडकर नामक ७० वर्षीय पूजारी हवन कुंड में जलने वाली अग्नी में तपाकर गर्म किये गये सुर्ख लाल मटके को अपने हाथों और सिर पर धारण कर अष्टमी व नवमी की रात qपगलादेवी की प्रदक्षिणा करते है. इस समय ७० वर्ष की आयु में पहुंच चुके नारायणराव अपनी आयु के १४ वें वर्ष से खापरी की परंपरा कर निर्वहन कर रहे है और इस बार वे २३ अक्टूबर को अष्टमी व नवमी की मध्यरात्री १२ बजे गर्म खापरी को अपने सिर पर धारण कर मंदिर की प्रदक्षिणा पूरी करेगे. इस संदर्भ में मिली जानकारी के मुताबिक मिट्टी से बने मटके को शुद्ध कर अग्नी देव की साक्षी से पिंगलादेवी के समक्ष सप्तशति का पाठ करते हुए १६ प्रकार की हवन सामग्री से होम हवन किया जाता है. इसके तहत इस मटके में कपूर के जरिए अग्नी प्रज्वलित कर १६ प्रकार की हवन सामग्री एवं घी की आहूति दी जाती है. करीब ४ घंटे तक चलने वाले इस हवन की वजह से यह मटका पूरी तरह से गर्म होकर लाल हो जाता हो जाता है, इसी गर्म मटके को खापरी कहा जाता है. इसी खापरी को पूजारी नारायणराव अपने हाथों से उठाकर अपने सिर पर रखते है और मंदिर की प्रदक्षिणा करते है. इसमे भी यह विशेष उल्लेखनीय है कि, खापरी को अपने हाथों से पकडकर अपने सिर पर रखते हुए पूजारी नारायणराव देवी की बडी तेज गति से पांच या ग्यारह प्रदक्षिणा करते है, लेकिन उनके हाथों और सिर पर कोई नुकसान नहीं होता. जिस समय नारायणराव मारंडकर अपने हाथों से अपने सिर पर इस खापरी को लेकर प्रदक्षिणा करने निकलते है, तो उस समय उनके परिवार के लोग उनके साथ-साथ जलती हुई मशाले लेकर दौडते है. साथ ही ढोल-ताशे व मृदंग का नादघोष होता है. इस लोमहर्षक धार्मिक विधि को देखते हेतु प्रति वर्ष विदर्भ सहित दूरदराज के क्षेत्रों से भविक श्रद्धालू पिंगला गड पर उपस्थित रहते है. किंतु इस वर्ष कोरोना के खतरे को देखते हुए प्रशासन एवं पुलिस महकमें द्बारा केवल पिंगलादेवी मंदिर ही नहीं बल्कि पूरे qपगलादेवी गड को ही बंद करवा दिया है. ऐसे में इस वर्ष खापरी की धार्मिक विधि के समय कोई भाविक श्रद्धालू यहां उपस्थित नहीं रहेगा और केवल मारंडकर परिवार एवं मंदिर संस्थान पदाधिकारियों की उपस्थिति में ही यह धार्मिक विधि पूर्ण होगी.