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कीर्तनकार सातारकर ब्रह्मलीन

वारकरी सम्प्रदाय के प्रचारक नहीं रहे

नई मुंबई/दि.26– वरिष्ठ कीर्तनकार नीलकंठ ज्ञानेश्वर गोरे उर्फ बाबा महाराज सातारकर (89) का आज बीमारी पश्चात देहावसान हो गया. वे नेरुल में रहते थे. दोपहर 3 बजे यहां के विठ्ठल रुखमाई मंदिर में पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध कीर्तनकार का पार्थिव अंतिम दर्शन हेतु रखा गया. शाम 5 बजे अंतिम संस्कार किए जाने की जानकारी परिवारिक सूत्रों ने दी. गत फरवरी में महाराज जी की धर्मपत्नी रुक्मिणी सातारकर उर्फ माई साहब का निधन हो गया. अध्यात्म क्षेत्र में बाबा महाराज का योगदान बडा है. 5 फरवरी 1936 को सातारा में जन्मे महाराज जी ने एलएलबी की उपाधि प्राप्त की. फिर वारकरी सम्प्रदाय से जुडे. उन्हें तीन पीढी से प्राप्त विरासत को वे आगे बढा रहे थे. आप्पा महाराज व अन्ना महाराज से उन्होंने परमार्थ सीखा. उम्र के 11वें वर्ष से वे शास्त्रीय गायन सीखने लगे थे. उन्होंने अनूठी शैली से अध्यात्म और भागवत सम्प्रदाय का विचार समाज के सभी स्तरों तक पहुंचाया.

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