अमरावतीमुख्य समाचार

जानिए वकीलों की जिरह कैसे हुई?

नवनीत राणा को सुको से ‘स्टे’ मिला

  •  दोनों पक्षों के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में जमकर किया युक्तिवाद

  • पश्चात सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर दिया स्टे

  •  न्या. शरण व न्या. माहेश्वरी की बेंच ने की ‘एसएलपी’ पर सुनवाई

  •  मामले के अंतिम फैसले तक जारी रहेगा सुप्रीम कोर्ट का स्थगनादेश

  •  सांसद नवनीत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी हुए पेश

  •  वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने की पूर्व सांसद अडसूल की ओर से पैरवी

  •  अगली सुनवाई के लिए 27 जुलाई की तारीख मुकर्रर

अमरावती/प्रतिनिधि दि.22 – जिले की सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र को फर्जी करार देते हुए मुंबई हाईकोर्ट द्वारा दिये गये फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्थगनादेश दिया गया है. जिसे सांसद नवनीत राणा के लिए एक बडी राहत माना जा रहा है. सांसद नवनीत राणा की ओर से दायर स्पेशल लीव पिटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन बेंच के न्या. विनीत शरण व न्या. दिनेश माहेश्वरी ने हाईकोर्ट के फैसले पर इस मामले की अंतिम सुनवाई तक स्थगनादेश दिया है. ऐसे में नवनीत राणा को राज्य विधि व न्यायसेवा प्राधिकरण के पास फिलहाल 2 लाख रूपये का जुर्माना नहीं भरना पडेगा. साथ ही 6 सप्ताह के भीतर अपना जाति प्रमाणपत्र व जातिवैधता प्रमाणपत्र भी सरेंडर नहीं करना होगा. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 27 जुलाई की तारीख मुकर्रर की गई है. साथ ही इस मामले में प्रतिवादी पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को सुप्रीम कोर्ट ने नया हलफनामा (काउंटर एफेडेविट) पेश करने को कहा है.
बता दें कि, अनुसूचित जाति संवर्ग हेतु आरक्षित अमरावती संसदीय सीट से चुनाव लडनेवाली युवा स्वाभिमान नेत्री नवनीत राणा द्वारा अपने चुनावी हलफनामे के साथ पेश किये गये जाति प्रमाणपत्र व जातिवैधता प्रमाणपत्र को तत्कालीन सांसद व शिवसेना नेता आनंदराव अडसूल द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिस पर हुई सुनवाई पश्चात हाईकोर्ट ने सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र व जाति वैधता प्रमाणपत्र को फर्जी करार देते हुए इसे भारतीय संविधान के साथ की गई जालसाजी कहा था और सांसद नवनीत राणा को दो सप्ताह के भीतर दो लाख रूपये जुर्माना अदा करने और छह सप्ताह के भीतर अपना जाति प्रमाणपत्र व जातिवैधता प्रमाणपत्र सरेंडर करने का आदेश दिया था. जिसे सांसद नवनीत राणा द्वारा स्पेशल लीव पिटीशन दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. चूंकि इस समय सुप्रीम कोर्ट में अवकाश चल रहा है. अत: न्या. शरण व न्या. माहेश्वरी की अवकाशकालीन बेंच के समक्ष इस याचिका पर सुनवाई हुई. जहां पर सांसद नवनीत राणा की ओर से वरिष्ठ विधिज्ञ एड. मुकूल रोहतगी तथा पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल की ओर से वरिष्ठ विधिज्ञ एड. कपिल सिब्बल पेश हुए. इस समय एड. मुकूल रोहतगी ने कहा कि, ‘मोची’ और ‘चमार’ दोनों ही जातिया लगभग एक ही है और जातिवैधता जांच समिती के समक्ष 30 वर्ष पुराने असली दस्तावेज पेश किये गये थे. जिन्हें समिती द्वारा सही पाया गया था और समिती की ओर से नवनीत राणा को जाति प्रमाणपत्र व जातिवैधता प्रमाणपत्र जारी किया गया था. लेकिन इसके बावजूद हाईकोर्ट द्वारा समिती के निर्णय को पलट दिया गया है. जिसमें कई दस्तावेजों की अनदेखी की गई है.
वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ विधिज्ञ कपिल सिब्बल ने कहा कि, इस मामले में जांच समिती ने पाया कि, कई दस्तावेजों के साथ बडे पैमाने पर छेडछाड की गई है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने एड. कपिल सिब्बल को अपने इस दावे हेतु नया हलफनामा (काउंटर एफेडेविट) पेश करने का निर्देश दिया. जिसके बाद अदालत जैसे ही इस मामले में स्थगनादेश जारी करने के निर्णय पर पहुंची, तो प्रतिवादी पक्ष द्वारा इसका पूरजोर विरोध करते हुए कहा गया कि, उनके पक्ष को सुने बिना इस मामले में स्थगनादेश नहीं दिया जा सकता. जिसके बाद अदालत ने कहा कि, इस मामले में प्रतिवादी का पक्ष आगामी 27 जुलाई को सुना जायेगा. जिसके बाद इस मामले में अंतिम फैसला सुनाया जायेगा. किंतु अंतिम फैसला दिये जाने तक हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगनादेश जारी रहेगा. ऐसे में अब इस मामले की अगली और संभवत: अंतिम सुनवाई आगामी 27 जुलाई को होगी. जिसकी ओर सभी की निगाहें लगी हुई है.

  • राज्य सरकार हमारी आवाज दबाने की नाकाम कोशिश कर रही

इस पूरे मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सांसद नवनीत राणा ने कहा कि, वे लोकसभा में केवल अमरावती जिले को लेकर ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र से संबंधित सभी मामलों को लेकर आवाज उठाती है. जिसके तहत वे राज्य के किसानों, मजदूरोें, बेरोजगारों व महिलाओं पर होनेवाले अन्याय को उजागर करने के साथ-साथ राज्य में चलनेवाले भ्रष्टाचार को सामने लाती है. ऐसे में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे उनसे चिढे हुए है और शिवसेना नेताओं द्वारा उन्हें जान से मारने और तेजाब फेंककर चेहरा बिगाडने की धमकिया देते हुए उनकी आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन वे ऐसी धमकियों से डरने या रूकनेवाली नहीं है, बल्कि दोगुनी ताकत के साथ इस बात को उजागर करेंगी कि, कोविड संक्रमण काल के दौरान महाराष्ट में कितना भ्रष्टाचार हुआ है.

  •  दो बार मुंह की खा चुके है अडसूल

वहीं इस बारे में सांसद नवनीत राणा की ओर से एक प्रेसनोट जारी करते हुए उनके निजी सचिव संदीप ससे व एड. दीप मिश्रा द्वारा कहा गया कि, आजादी से पहले पर लाहौर जिला भारत में शामिल था, तब (सन 1715) से लेकर अब तक सांसद नवनीत राणा के पास 200 से भी ज्यादा कागजात है. जिन्हें आनेवाले समय में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया जायेगा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाईन से बनी जातिवैधता प्रमाणपत्र समिती द्वारा तमाम आवश्यक दस्तावेजों की जांच करने के बाद नवनीत राणा को 30 अगस्त 2013 में जाति प्रमाणपत्र दिया गया और 25 सितंबर 2013 को जाति वैधता प्रमाणपत्र जारी किया गया. जिसे लेकर तत्कालीन सांसद आनंदराव अडसूल ने दिसंबर 2013 में मुंबई जातिवैधता जांच समिती के समक्ष शिकायत दर्ज की थी और जब उन्हें फैसला अपने खिलाफ जाता दिखा तब उन्होंने वर्ष 2015 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की. जहां पर वर्ष 2017 में उनकी याचिका खारिज भी हो गयी. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय पिछडावर्गीय आयोग के समक्ष 12 दिसंबर 2012 को शिकायत दर्ज करायी. जिसकी जांच और सुनवाई पूरी करते हुए आयोग ने 2 नवंबर 2018 को अपना फैसला नवनीत राणा के हक में दिया और दूसरी बार तत्कालीन सांसद आनंदराव अडसूल की याचिका खारिज कर दी गई. यही वजह रही कि इस दौरान मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश से 30 नवंबर 2017 को मुंबई कास्ट कमेटी ने दूसरी बार नवनीत राणा को जातिवैधता प्रमाणपत्र दिया. जिसके खिलाफ आनंदराव अडसूल ने एक बार फिर वर्ष 2018 में मुंबई हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की. इस प्रेसनोट में कहा गया है कि, चूंकि नवनीत राणा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना नेता आनंदराव अडसूल को भारी बहुमत से हराया और संसद में महाराष्ट्र के प्रश्नों को लेेकर मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे के खिलाफ आवाज उठायी. वहीं दूसरी ओर सांसद नवनीत राणा के पति व विधायक रवि राणा ने भी राज्य विधानसभा में सरकार के खिलाफ भुमिका अपनायी है. ऐसे में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे व परिवहन मंत्री एड. अनिल परब ने पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल के कहने पर राजनीतिक खिचडी पकायी और इससे पहले दो बार जीतने के बावजूद विगत 8 जून को मुंबई हाईकोर्ट द्वारा सांसद नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र को अवैध करार देते हुए उसे खारिज कर दिया गया. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की सुनवाई और अंतिम फैसले तक इस पर स्थगनादेश दिया गया है. जहां आनेवाले समय में सांसद नवनीत राणा अपने पास उपलब्ध 100 से भी अधिक नये दस्तावेज पेश किये जायेंगे और सुप्रीम कोर्ट में दूध का दूध व पानी का पानी हो जायेगा.

Related Articles

Back to top button