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लचर कामकाज और लापरवाही से घटा विद्यापीठ का नैक मानांकन

‘ए’ से ‘बी प्लस प्लस’ पर घसरने का सच - किश्त 1

  •  बेफिक्री और आत्ममुग्धता का शिकार रहा विवि प्रशासन

  •  संभाग के शिक्षा क्षेत्र पर होंगे दूरगामी परिणाम, रोजगार के अवसर भी घटेेंगे

अमरावती/दि.19 – दो दिन पूर्व यूजीसी की अगुआई में काम करनेवाली नैक समिती द्वारा संगाबा अमरावती विद्यापीठ को दिये गये ‘बी प्लस प्लस’ मानांकन व 2.93 स्कोर का मामला चर्चा में चल रहा है. यह चर्चा इसलिए हो रही है, क्योेंकि इससे पहले वर्ष 2015-16 में इसी नैक समिती द्वारा संगाबा अमरावती विद्यापीठ को ‘ए’ मानांकन देने के साथ ही 3.07 का स्कोर दिया गया था. ऐसे में मौजूदा मानांकन व स्कोर को देखकर साफ है कि, नैक मूल्यांकन में संगाबा अमरावती विद्यापीठ की स्थिति पिछड गई है. चूंकि नैक समिती द्वारा विद्यापीठ के कार्य प्रदर्शन और हासिल उपलब्धियों के आधार पर ही यह मूल्यांकन किया जाता है. तो इसका साफ मतलब है कि, कार्य प्रदर्शन और उपलब्धियों के मोर्चे पर संगाबा अमरावती विद्यापीठ नैक समिती के मानकों पर खरा नहीं उतर पाया और अपनी पुरानी सम्मानजनक स्थिति से एक पायदान नीचे खिसक जाने की अवमानपूर्ण स्थिति का विद्यापीठ को सामना करना पडा.
इस समय विद्यापीठ के नैक मानांकन में पिछड जाने को लेकर केवल शैक्षणिक क्षेत्र में ही चर्चा एवं हलचल का माहौल देखा जा रहा है और आम जनमानस की भावना कुछ ऐसी है, मानो विद्यापीठ के इस मामले से हमारा क्या लेना-देना, जबकि हकीकत यह है कि, किसी भी क्षेत्र का विद्यापीठ अपने कार्यक्षेत्र अंतर्गत शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीति के क्षेत्र को भी प्रभावित करता है. साथ ही विद्यापीठ के जरिये ही संबंधित क्षेत्र की शैक्षणिक स्थिति का स्तर व प्रगती के आलेख भी जुडे होते है. यदि विद्यापीठ द्वारा अपने कार्यक्षेत्र अंतर्गत बेहतरीन शिक्षा के अवसर उपलब्ध नहीं कराये जाते, तो जाहीर सी बात है कि, उस क्षेत्र में सुशिक्षित व कुशल मनुष्यबल की कमी रहेगी. जिसका सीधा असर रोजगार के अवसरों की कमी के तौर पर सामने आयेगा. ऐसे में समाज के किसी भी क्षेत्र द्वारा विद्यापीठ के नैक मानांकन में पिछडने की अनदेखी नहीं की जा सकती.
इसमें भी यह विशेष उल्लेखनीय है कि, किसी विशिष्ट मुकाम पर पहुंचकर वहां टिके रहना भी एक चुनौती से कम नहीं. साथ ही मंशा हमेशा आगे बढने की होनी चाहिए. यदि उस स्थान या स्तर से पीछे हटना पडता है, तो उसे पराजय माना जाना चाहिए. इस तरह की हार व्यक्तिगत स्तर पर तो कोई बडा नुकसान नहीं करती, किंतु किसी संस्था या संगठन के तौर पर होनेवाली हार पूरे समाज पर दूरगामी परिणाम डालती है. इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. प्रस्तुत आलेख में हमारा प्रयास है कि, नैक मूल्यांकन व मानांकन में संगाबा अमरावती विद्यापीठ क्यों और कैसे पिछडा तथा इसके लिए कौनसी वजहें जिम्मेदार है. साथ ही इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे, इस पर रोशनी डाली जाये.

  • अगले पांच साल में होगा 50 करोड के अनुदान का नुकसान

बता दें कि, प्रति पांच वर्ष में एक बार केंद्रीय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से संलग्नित सभी विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों का नैक समिती द्वारा विभिन्न मानकों के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है. जिसके बाद उन्हें श्रेणी अनुसार मानांकन दिया जाता है. साथ ही नैक समिती द्वारा कुछ कमियों की ओर इशारा करते हुए अगले पांच साल में उन कमियों को दूर करने और प्रगति पथपर आगे बढने का सुझाव भी दिया जाता है, ताकि संबंधित शिक्षा संस्थान के स्तर और शैक्षणिक गुणवत्ता को उंचा उठाया जा सके तथा विद्यार्थियोें को बेहतर से बेहतरीन शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध करायी जा सके. साथ ही साथ सभी महाविद्यालय और विश्वविद्यालय भी यह कोशिश करते है कि, उन्हें पिछली बार जो नैक मानांकन व स्कोर मिला है, अगली बार उसका स्तर उंचा उठे, अन्यथा कम से कम वही स्तर बना रहे, क्योेंकि इस श्रेणी मानांकन व स्कोर के आधार पर संबंधित महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालयों को अनुदान के स्वरूप में कई आर्थिक लाभ भी मिलते है. किंतु नैक मानांकन में संगाबा अमरावती विद्यापीठ अब पिछड चुका है. जिसकी वजह से अगले पांच वर्षों के दौरान विद्यापीठ को कम से कम 50 करोड रूपयों के अनुदान से हाथ धोना पडेगा और इसका सीधा असर विद्यापीठ की शैक्षणिक सुविधाओं और पश्चिम विदर्भ के शैक्षणिक स्तर पर पडेगा. ज्ञात रहे कि, ‘ए’ मानांकन प्राप्त विश्वविद्यालयों को केंद्र एवं राज्य सरकार के मंत्रालयों सहित यूजीसी, एआयसीटीई, एनसीआरटी सहित अन्य कई नामांकित स्त्रोतों से शैक्षणिक गुणवत्ता व शिक्षा सुविधाओं के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है. चूंकि यह अनुदान प्रदर्शन व उपलब्धियों के मानकों पर आधारित होता है. ऐसे में साफ है कि, संगाबा अमरावती विद्यापीठ का ‘ए’ मानांकन हट जाने की वजह से अब यह अनुदान प्राप्त नहीं होगा. बता दें कि, वर्ष 2015-16 में तत्कालीन कुलगुरू डॉ. मोहन खेडकर के कार्यकाल दौरान संगाबा अमरावती विद्यापीठ को ‘ए’ मानांकन मिला था. जिसके पश्चात राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग (रूसा) द्वारा अगले पांच वर्षों के लिए संगाबा अमरावती विद्यापीठ को 20 करोड रूपयों का अनुदान दिया गया. जिनकी बदौलत खेडकर के बाद कुलगुरू के तौर पर आये डॉ. मुरलीधर चांदेकर को निधी की कमी नहीं पडी. किंतु डॉ. चांदेकर के कार्यकाल में विद्यापीठ का नैक मानांकन ‘ए’ से एक पायदान फिसलकर ‘बी प्लस प्लस’ पर चला गया है. जाहीरसी बात है कि अब अगले कुलगुरू को रूसा की ओर से विद्यापीठ के लिए कोई अनुदान प्राप्त नहीं होगा.

  • प्रतिभा की कमी नहीं, पर आदर्श व उर्जा स्थापित करने में नाकाम रही लीडरशिप

यहां सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि, नैक समिती (बंगलुरू) में खुद तत्कालीन कुलगुरू मुरलीधर चांदेकर भी बतौर कार्यकारी सदस्य शामिल थे और उन्होंने शिक्षा सुविधाओं का मुआयना व आकलन करने के लिए पूरे देश का भ्रमण भी किया था. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, अपने इस दौरे के बाद वे कौनसा नया विजन लेकर अमरावती आये और उन्होंने यहां के शिक्षकों, विद्यार्थियों और विवि प्रशासन के अधिकारियों के सामने कौनसा नया खाका रखा. साथ ही यह भी माना जा सकता है कि, शायद डॉ. चांदेकर के नैक समिती में रहने की वजह से कहीं विद्यापीठ प्रशासन इस मुगालते का शिकार हो गया था कि, सबकुछ ‘मैनेज’ हो जायेगा और ‘साहेब’ सब संभाल लेंगे. किंतु अफसोस की बात यह रही कि, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. ऐसे में कहा जा सकता है कि, प्रतिभा की कमी नहीं रहने के बावजूद संगाबा अमरावती विद्यापीठ में लीडरशिप द्वारा नया आदर्श स्थापित करने और नई उर्जा भरने के साथ ही नई राह दिखाने का कोई काम नहीं किया गया.

  • चार साल से नहीं बनी एक्यूएआर रिपोर्ट

ज्ञात रहे कि, वर्ष 2015-16 में नैक की तीसरी साईकिल पूरी हुई थी. जिसके साथ ही नैक समिती द्वारा अमरावती विद्यापीठ के किन-किन क्षेत्रों में कमी है और कहां-कहां क्या-क्या सुधार करना है, इसे लेकर आवश्यक दिशानिर्देश दिये गये थे. जिसके पश्चात नियमानुसार उन सभी क्षेत्रोें में किये जा रहे सुधारों की समीक्षा करते हुए विद्यापीठ प्रशासन द्वारा एन्युल क्वालिटी असेस्मेंट रिपोर्ट यानी एक्यूएआर बनाई जानी थी. जिसे प्रति वर्ष नैक समिती के पास भी भेजना होता है, किंतु हैरत की बात यह है कि, विगत चार वर्षों के दौरान विद्यापीठ द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं किया गया और वर्ष 2020 में नैक मूल्यांकन का समय आने पर ‘गठ्ठा पध्दति’ से एक्यूएआर रिपोर्ट तैयार की गई और 2016-17 से 2019-20 तक की सभी रिपोर्ट एकसाथ नैक समिती को भेजी गई. यहां यह सर्वाधिक उल्लेखनीय है कि, नैक समिती को भेजी जानेवाली एक्यूएआर रिपोर्ट को पहले मैनेजमेंट काउंसिल के सामने रखना होता है तथा मैनेजमेंट काउंसिल द्वारा पूरी रिपोर्ट का अध्ययन करने और उसे अपनी मंजूरी देने के बाद ही वह रिपोर्ट नैक समिती को भेजी जाती है. जानकारी है कि, विद्यापीठ प्रशासन ने विगत चार वर्षों से मैनेजमेंट काउंसिल के सामने ऐसी कोई रिपोर्ट भी नहीं रखी थी, बल्कि दिसंबर 2020 में सभी चार वर्षों की रिपोर्ट एकसाथ मैनेजमेंट काउंसिल के सामने रख दी गई. चूंकि जून 2021 यानी अगले छह माह के भीतर ही नैक समिती द्वारा मूल्यांकन किया जाना था. ऐसे में मैनेजमेंट कौन्सिल ने भी आनन-फानन में इस एक्यूएआर रिपोर्ट को अपनी मंजूरी दे दी. जिसे नैक समिती को भेजा गया और वहां पर नैक समिती ने इसमें कई खामियों को पकडते हुए संगाबा अमरावती विद्यापीठ के मानांकन व स्कोर को घटा दिया.

  •  डाक्यूमेंट वैल्यूएशन एन्ड वेरिएशन रिपोर्ट में भी जबर्दस्त गडबडी

    खुद कुलपति व राज्यपाल के सामने पेश किये गये फर्जी आंकडे
    (पढिये कल के अंक में)

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