वरुड बगाजी में 114 वर्ष पुरानी है महालक्ष्मी की परंपरा
80 साल बाद गांव में सुलगाये जाएंगे चूल्हे
धामणगांव रेल्वे/प्रतिनिधि दि.८ – तहसील के वरुड (बगाजी) के एड. प्रदीप देशमुख (हाईकोर्ट नागपुर) के यहां के महालक्ष्मी उत्सव को 114 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं. इस उत्सव का महत्व वरुड (बगाजी) व परिसर वासियों के लिए अनन्यसाधारण है. वरुड बगाजी के प्रगतिशील किसान कर्मयोगी स्व. बापूराव उर्फ काकासाहेब देशमुख महालक्ष्मी उत्सव का महत्व बताते हुए 85 वर्ष पूर्व गरीब पिछड़ावर्गीय,आदिवासी, किसान, खेत मजदूरों गांववासियों को महाप्रसाद के रुप में अपने वाडे में मिष्ठान्न भोजन के लिए आमंत्रित करते थे. जिस पर गांववासी बड़ी श्रध्दा से उनके इस सार्वजनिक कार्य में सहभागी होते थे.
अब उनके सुपुत्र एड.प्रदीप देशमुख बड़ी श्रध्दापूर्वक यह कार्यक्रम करते हैं. संपूर्ण गांव को वे अपने बाड़े में महाप्रसाद के लिए निमंत्रित करते हैं. इस दिन इस गांव में किसी के भी घर अलग चूल्हा नहीं सुलगता. इस दिन गांव के प्रत्येक मेहमान को देशमुख के यहां महालक्ष्मी के दर्शन व महाप्रसाद के लिए निमंत्रित किया जाता है. यह प्रथा विगत 114 वर्षों से चली आ रही है. इस वर्ष यह उत्सव 12,13,14,15 सितंबर को अनुराधा नक्षत्र पर आयोजित किया गया है.पहले दिन से पांच दिनों तक मानकरी घरों को भोजन का निमंत्रण रहता है. वहीं पहले दिन आरती कर श्री महालक्ष्मी का आगमन होता है. दूसरे दिन 16 प्रकार की सब्जियों, मिष्ठान्न व आंबील का भोग लगाया जाता है व आघाडा, केना, दुर्वा और सुगंधित फूल अर्पण किए जाते हैं. तीसरे दिन महिलाओं व्दारा उनकी ओटी भरकर श्रद्धाभाव से पूजा कर उनकी बिदाई करने की प्रथा है. चौथे दिन आंबील व फलों का प्रसाद कर कार्यक्रम का समापन होता है.
देशमुख परिवार के सभी सदस्य पांच दिनों तक कार्यक्रम हेतु उपस्थित रहते हैं. नई शादी हुई जोड़ी के हाथों आरती करने की परंपरा व प्रथा है. देशमुख के यहां महालक्ष्मी उत्सव गत 307 वर्षों से मनाने की परंपरा ऐतिहासिक राजे भोसले कालीन से होने की बात गांववासियों व्दारा बताई जा रही है. इस दिन गांववासी दिवाली का त्यौहार समझकर दामाद व बेटी को घर बुलाकर देशमुख के यहां महालक्ष्मी के दर्शन के लिए भेजते हैं. लेकिन इस वर्ष कोविड-19 नियमों का पालन किया जा रहा है. जिसके चलते गांव भोजन की प्रथा बंद की गई है. वरुड बगाजी में इस वर्ष घर-घर में चूल्हा सुलगाया जाएगा. यह प्रथा बंद होने से गांववासियों में दुख व्याप्त है.