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वरिष्ठ अधिकारियों की मनमर्जी का गढ बन गया है मेलघाट?

  •  एक माह के भीतर दो अधिकारियों ने की आत्महत्या

  •  आरएफओ दीपाली चव्हाण की खुदकुशी से पैदा हुए कई सवाल

  •  सुसाईड नोट कह रहा वनविभाग की काली कहानियां

अमरावती/प्रतिनिधि दि.26 – गत रोज मेलघाट अभयारण्य अंतर्गत आनेवाले गुगामल वन्यजीव विभाग के सिपना वन परिक्षेत्र में कार्यरत वन परिक्षेत्र अधिकारी दीपाली जनार्दन चव्हाण उर्फ दीपाली राजेश मोहिते ने हरिसाल स्थित अपने सरकारी आवास पर अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद पर गोली चलाते हुए आत्महत्या कर ली थी. पश्चात मौके पर पहुंची पुलिस ने दीपाली चव्हाण की लाश के पास से चार पन्नों का एक सुसाईड नोट बरामद किया. जिसमें लिखी गयी तमाम बातों ने जहां एक ओर मेलघाट के वन विभाग की काली कहानियों को उजागर किया है. वहीं दूसरी ओर इस तथ्य को भी साबित किया है कि, अमरावती जिला मुख्यालय से करीब 150 किमी दूर पहाडी अंचल में बसें मेलघाट क्षेत्र में वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किस हद तक मनमाने ढंग से काम किया जाता है और कैसे अपने अधिनस्त अधिकारियों को प्रताडित किया जाता है.
बता दें कि, केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र के विकास हेतु हर साल करोडों नहीं बल्कि अरबों रूपयों का खर्च किया जाता है. विगत कई दशकों से यह खर्च लगातार किये जाने के बावजूद मेलघाट के कई दुर्गम व अतिदुर्गम गांव अब तक विकास की झलक भी नहीं देख पाये है. प्रचूर वन्य संपदा एवं वन्यजीव संपदा से भरपुर रहनेवाले मेलघाट के एक बडे हिस्से को सरकार द्वारा अति संरक्षित जंगल घोषित करने के साथ ही यहां पर व्याघ्र प्रकल्प भी स्थापित किया गया और व्याघ्र प्रकल्प में शामिल किये जानेवाले गांवों को अन्यत्र पुनर्वसित किया जाने लगा. यह काम वनविभाग के जरिये ही किया जाता है. जिसके लिए वन परिक्षेत्र अधिकारी यानी आरएफओ स्तर के अधिकारी पर गांवों को खाली कराने और वनविभाग की जमीन पर कहीं पर भी आदिवासियों को अतिक्रमण नहीं करने देने का जिम्मा सौंपा जाता है. ऐसा ही जिम्मा गुगामल वन्यजीव विभाग के सिपना वन क्षेत्र की आरएफओ दीपाली चव्हाण के भी पास था. साथ ही साथ एक दबंग महिला अधिकारी के रूप में जानी जाती दीपाली चव्हाण ने वन संपदा की तस्करी करनेवाले लोगोें के खिलाफ भी बडी साहसपूर्ण कार्रवाईयां की थी. जिसके तहत विगत दिनों उन्होंने सलाई गोंद की तस्करी कर रेल गाडी से मध्यप्रदेश की ओर भाग रहे तस्करों का अपनी दुपहिया से पीछा किया था और उन्हेें मध्यप्रदेश की सीमा से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की थी. लेकिन जंगलों की सुरक्षा और तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करने में अपनी पूरी ताकत झोंक देनेवाली दीपाली चव्हाण नामक महिला वन अधिकारी अपने ही विभाग के वरिष्ठ अधिकारियोें से जंग हार गयी और अपने वरिष्ठ अधिकारी उपवन संरक्षक विनोद शिवकुमार द्वारा की जाती प्रताडना से तंग आकर दीपाली चव्हाण ने खुद पर गोली चलाते हुए खुदकुशी कर ली.
आरएफओ दीपाली चव्हाण की लाश के पास से जो सुसाईड नोट बरामद हुआ है, उसका ब्यौरा दिल दहला देनेवाला है. आत्महत्यापूर्व लिखी गई एक चिठ्ठी में दीपाली चव्हाण ने मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के अप्पर प्रमुख वन संरक्षक व क्षेत्र संचालक रेड्डी को संबोधित करते हुए लिखा है कि, जिस समय उनकी पोस्टींग आरएफओ के तौर पर मेलघाट में हुई, तो उन्हें इसकी काफी खुशी हुई थी. साथ ही उन्होंने अपने सभी कामों को बडी जिम्मेदारी के साथ पूरा करना शुरू किया. जिसकी वजह से उनकी रेंज अन्य रेंज की तुलना में सबसे आगे रहा करती थी. ऐसे में कुछ लोगों ने उपवन संरक्षक विनोद शिवकुमार के कान भरने शुरू कर दिये और शिवकुमार ने किसी भी बात की तस्दीक किये बिना उनके खिलाफ नोटीस जारी करनी शुरू कर दी और उन्हें बार-बार निलंबित करने व चार्जशीट देने की धमकी देने लगे. इसके अलावा शिवकुमार अक्सर ही गांववासियों व वनकर्मचारियों के सामने उनके साथ अपमानास्पद व्यवहार करते हुए अश्लील गालीगलौच भी करते थे और एक समय उन्होंने उन्हें एट्रोसिटी एक्ट के तहत चार माह जेल भिजवाने की धमकी भी दी थी. दीपाली चव्हाण के मुताबिक डीसीएफ शिवकुमार ने उनके खिलाफ एट्रोसिटी की शिकायत भी दर्ज करायी थी. जिसमें जमानत नहीं मिलने की वजह से उन्होंने छुट्टी ले ली थी. पश्चात अपने पक्ष में अदालत का निर्णय आने के बावजूद शिवकुमार ने उन्हें कर्तव्य पर तैनात करने से इन्कार किया और अवकाश की अवधि को भी नकार दिया. जिसकी वजह से उन्हें अवकाश की अवधि का वेतन नहीं मिला.
इस पत्र के मुताबिक अमानवीयता की हद तब हुई जब अक्तूबर माह में खुद प्रमुख वन संरक्षक आमझरी के दौरे पर आये थे. उस समय दीपाली चव्हाण गर्भवती थी और ट्रैकिंग नहीं कर सकती थी. बावजूद इसके डीसीएफ शिवकुमार ने उन्हें इस दौरे के तहत तीन दिनों तक मालूर गांव परिसर के कच्चे रास्तों से पैदल चलवाया. जिसकी वजह से उनका गर्भपात हो गया. इसके बावजूद भी उन्हें अवकाश नहीं दिया गया. वहीं डीसीएफ शिवकुमार अक्सर ही उन्हें रात-बे रात किसी भी काम के बहाने से कहीं पर भी बुलाते थे और उनके अकेलेपन का फायदा लेने का प्रयास करते थे. साथ ही विगत कुछ दिनों से डीसीएफ शिवकुमार का अचानक ही हरिसाल आना-जाना बढ गया था और वे उनसे नजदिकी साधने का प्रयास करते थे. दीपाली चव्हाण के मुताबिक चूंकि उन्होंने डीसीएफ शिवकुमार की मर्जी को पूरा नहीं किया, इस वजह से उन्होंने जानबूझकर उन्हें विभिन्न कारणों के चलते सताना और प्रताडित करना जारी रखा.
इस खत में दीपाली चव्हाण ने यह भी लिखा है कि, मेलघाट एक ऐसा दलदल है, जहां पर वन विभाग का कोई भी अधिकारी आता तो अपनी मर्जी से है, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों की मर्जी के बिना यहां से वापिस नहीं जा सकता. बल्कि इसी दलदल में फंसता चला जाता है. यहीं वजह है कि, बार-बार निवेदन देने के बाद भी उन्हें मेलघाट से बाहर तबादला नहीं दिया गया.
सर्वाधिक गंभीर बात इस खत में यह है कि, दीपाली चव्हाण ने बार-बार इस बात का उल्लेख किया है कि, उन्होंने अपने साथ हो रही आर्थिक व मानसिक प्रताडना के बारे में मुख्य वन संरक्षक रेड्डी को जानकारी दी थी. साथ ही डीसीएफ शिवकुमार की एक मोबाईल कॉल रिकॉर्डिंग जिले की सांसद नवनीत राणा को भी सुनायी थी. बावजूद इसके डीसीएफ शिवकुमार के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई. ऐसे में लगातार हो रही प्रताडना एवं कहीं से कोई मदद नहीं मिलने की वजह से तंग आकर दीपाली चव्हाण ने आत्महत्या करने का फैसला लिया. साथ ही इस पत्र के अंत में अपनी मृत्यु के बाद सभी आर्थिक लाभ अपनी मां को दिये जाने का निवेदन करते हुए यह अपेक्षा भी व्यक्त की है कि, उपवन संरक्षक विनोद शिवकुमार के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी, ताकि अन्य किसी को प्रताडना के ऐसे दौर से न गुजरना पडे.
उपरोक्त पत्र का पूरा ब्यौरा पढने के बाद इस बात की महज कल्पना ही की जा सकती है कि, दीपाली चव्हाण जैसी बहादूर महिला प्रताडना के किस दौर से गुजर रही थी और उपवन संरक्षक विनोद शिवकुमार ने केवल अपनी हेकडी पूरी करने के लिए उन्हें किस हद तक तोड दिया था. यूं तो अक्सर ही जिले के तमाम बडे नेता, राजनीतिक पदाधिकारी एवं अधिकारी मेलघाट क्षेत्र के धारणी व चिखलदरा परिसर का दौरा करते है, ताकि वहां चल रहे विकास कामों के साथ-साथ वहां की समस्याओं का जायजा लिया जा सके. साथ ही मीडिया का भी मेलघाट क्षेत्र पर विशेष ध्यान रहता है. किंतु मेलघाट जैसे दुर्गम इलाके में काम करनेवाले अधिकारियों व कर्मचारियों को किस तरह की परेशानियों, तकलीफों व दिक्कतों का सामना करना पडता है, इस ओर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो. मेलघाट क्षेत्र की भौगोलिक चुनौतियों से निपटने के साथ-साथ कनिष्ठ स्तर के अधिकारियों को काफी हद तक अपने वरिष्ठाधिकारियों की मनमानी का भी शिकार होना पडता है. क्योंकि यहां पर वरिष्ठाधिकारियों के उपर उनके बडे अधिकारियों की सीधी नजर नहीं रहती. ऐसा ही कुछ आरएफओ दीपाली चव्हाणवाले मामले में हुआ और शायद ऐसा ही कुछ धारणी पुलिस थाने के उपनिरीक्षक अतुल बान्ते के साथ भी हुआ हो, जिन्होंने विगत 7 फरवरी को धारणी स्थित अपने सरकारी आवास में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, अव्वल तो किसी भी महकमे का कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी आदिवासी बहुल क्षेत्र मेलघाट, विशेषकर धारणी तहसील में पोस्टींग ही नहीं चाहता और जिन्हें यहां पोस्टिंग मिलती है, उनके साथ क्या होता है, यह दीपाली चव्हाण की सुसाईड नोट से उजागर हो चुका है. जिसे वन विभाग सहित जिला प्रशासन एवं सरकार द्वारा सबक के तौर पर लिया जाना चाहिए.

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