किसानों व मजदूरों का अहित कर रही मोदी सरकार व भाजपा
वरिष्ठ समाजसेवी मेघा पाटकर का कथन
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मराठी पत्रकार भवन में हुई ‘मीट द प्रेस’
अमरावती/प्रतिनिधि दि.२३ – केंद्र की मोदी सरकार तथा भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से देश के किसानों, मजदूरों व मेहनतकशों के हितों की अनदेखी कर रही है और पूंजीपतियों के इशारों पर काम करते हुए देश में एक बार फिर ‘कंपनी राज’ लाने का प्रयास किया जा रहा है. जो देश के लिए बेहद घातक है. क्योेंकि उससे हम देश के बडे उद्योगपतियों व पूंजिपतियों के आर्थिक गुलाम बन जायेंगे. यहीं वजह है कि, अ. भा. किसान समन्वय समिती व संंयुक्त किसान मोर्चा द्वारा विगत नौ माह से दिल्ली की सीमा पर किसान आंदोलन किया जा रहा है और इस आंदोलन के लिए जन समर्थन प्राप्त करने हेतु आगामी 27 सितंबर को भारत बंद आंदोलन का आवाहन किया गया है. इस आशय का प्रतिपादन नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रणेता तथा वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मेघा पाटकर द्वारा किया गया.
गत रोज एक दिन के अमरावती दौरे पर आयी मेघा पाटकर के सम्मान में जिला मराठी पत्रकार संघ द्वारा वालकट कंपाउंड परिसर स्थित मराठी पत्रकार भवन में ‘मीट द प्रेस’ का आयोजन किया गया था. जिसमें मेघा पाटकर ने स्थानीय मीडिया कर्मियों से दिलखुलास संवाद साधा. इस अवसर पर मेघा पाटकर की मराठी पत्रकार भवन में अगुवानी करते हुए जिला मराठी पत्रकार संघ के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने उनका पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया. साथ ही पत्रकार भवन में उपस्थित मीडिया कर्मियों से उनका संक्षिप्त परिचय कराया. जिसके बाद मेघा पाटकर ने विगत नौ माह से दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन और आगामी 27 अक्तूबर को होने जा रहे भारत बंद के संदर्भ में अपनी भूमिका स्पष्ट करते हुए उपरोक्त प्रतिपादन किया. साथ ही अपने विचार रखने के पश्चात उन्होंने मीडिया कर्मियों द्वारा पूछे गये सवालों का भी जवाब दिया और विविध मसलों को लेकर अपनी चिंता भी जतायी.
इस समय उन्होंने कहा कि, कोविड संक्रमण काल के दौरान समाज के वंचित घटकोें के बच्चों की पढाई-लिखाई के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य का भी मसला बेहद गंभीर हो गया है. किंतु केंद्र की मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारियों का योग्य तरीके से निर्वहन नहीं कर रही. बल्कि शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ ही कृषि क्षेत्र का निजीकरण करते हुए इन सभी क्षेत्रों को अदानी व अंबानी जैसे उद्योगपतियों के सुपुर्द करने का षडयंत्र रचा जा रहा है. उन्होंने कहा कि, केंद्र सरकार द्वारा अमल में लाये गये तीनोें कृषि कानून केवल किसान विरोधी नहीं है, बल्कि इन कानूनों की वजह से देश के सर्वसामान्य नागरिकों की अन्न सुरक्षा भी खतरे में आ जायेगी. अत: सभी नागरिकोें ने कृषि कानूनों का विरोध करते हुए किसानों के आंदोलन को अपना समर्थन देना चाहिए, अन्यथा अदानी व अंबानी जैसे उद्योगपतियों का खेती-किसानी में प्रवेश हो जायेगा और देश में राशन पध्दति पूरी तरह से खत्म हो जायेगी. जिसके बाद गरीबों को सस्ती दरों पर राशन मिलना भी मुश्किल हो जायेगा. मेघा पाटकर के मुताबिक देश के बडे उद्योगपति आज से ही बडे-बडे गोडावून बना रहे है. जिन पर सरकार की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा. जहां एक ओर देश के बडे-बडे उद्योगपति व पूंजीपति दिनोंदिन अपनी कमाई बढा रहे है. वहीं दूसरी ओर किसान लगातार घाटे में जा रहे है. ऐसे में समय स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसानों को न्यूनतम मूल्य के आधार पर कृषि उपज के दाम देना जरूरी रहते हुए भी सरकार द्वारा किसान विरोधी कानून को लादा जा रहा है और इस कानून के खिलाफ विगत करीब 9-10 माह से चल रहे आंदोलन को गंभीरता से लेने की बजाय इसे बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है. मेघा पाटकर के मुताबिक किसान संघर्ष समन्वय समिती द्वारा किसान आंदोलन को अपना पूरा समर्थन दिया जा रहा है और दो राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव में वे भाजपा सरकार के खिलाफ प्रचार करेंगी.
इस समय उन्होंने यह भी कहा कि, जिन-जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें है, वहां पर किसानों, मजदूरों व मेहनतकशों के हितोें में रहनेवाले कानूनों को बदलने का सिलसिला सरकार द्वारा शुरू किया गया है. महाराष्ट्र में वर्ष 2013 के दौरान तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा तैयार किये गये भूमि अधिग्रहण कानून का बाद में फडणवीस सरकार ने विद्रुपीकरण करते हुए किसानों के अधिकारों को छिनने का प्रयास किया था. मेघा पाटकर के मुताबिक भाजपा द्वारा केवल जाति व धर्म के नाम पर तनाव पैदा करते हुए चुनाव लडने व जीतने का खेल खेला जा रहा है. साथ ही इस समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी खतरे में है, क्योंकि सरकार के खिलाफ उठनेवाली हर आवाज को दबाया जा रहा है. इसके साथ ही महिलाओं के अधिकार व सुरक्षा का मसला भी खतरे में है.
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भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं पर अन्याय अधिक
इस समय पूछे गये एक सवाल के जवाब में मेघा पाटकर ने कहा कि, महाराष्ट्र में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी द्वारा राज्य सरकार को दो दिनों का विशेष अधिवेशन बुलाये जाने का निर्देश दिया है. जो काफी हद तक संदेहास्पद है. क्योंकि महिलाओं पर अन्याय व अत्याचार का मसला केवल महाराष्ट्र का विषय नहीं, बल्कि इन दिनों समूचे देश के लिए यह चिंता का विषय है. बल्कि भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं पर होनेवाले अन्याय व अत्याचार का प्रमाण काफी अधिक है. ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र के राज्यपाल की भुमिका पर संदेह होना लाजमी है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, इससे पहले भी महाराष्ट्र सहित देश के सभी राज्यों में कई राज्यपाल हुए है. किंतु भगतसिंह कोश्यारी पहले ऐसे राज्यपाल है, जो संवैधानिक पद पर रहने के बावजूद खुले तौर पर आरएसएस की विचारधारा पर चल रहे है और एक राजनीतिक दल के एजेंट के तौर पर काम कर रहे है.