अमरावती/प्रतिनिधि दि.16 – जुलाई माह आधा बीत जाने के बावजूद महाराष्ट्र सहित मध्य एवं उत्तरी भारत में अब तक मान्सूनी बारिश के सशक्त लक्षण दिखाई नहीं दिये है. प्री-मान्सून सीझन में बिजली की तेज गडगडाहटों के साथ होनेवाली तूफानी बारिश लगातार तीसरे माह में भी सक्रिय है और विशेषज्ञों के मुताबिक मान्सून के प्रवाह ने देश में अब तक अपेक्षित जोर नहीं पकडा है. यह एक तरह से मान्सून के कमजोर रहने की निशानी है. इसके साथ ही यह अनुमान भी व्यक्त किया गया है कि, 17 जुलाई के बाद महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारत में बारिश का जोर कम हो जायेगा और उत्तरी भारत में कुछ हद तक बारिश जोर पकड सकती है.
बता दें कि, विगत 3 जून को केरल में बारिश का दमदार आगमन हुआ और अगले 15 दिनों के दौरान मान्सून ने मध्य भारत तक सफर तय कर लिया. किंतु उत्तर एवं वायव्य दिशा में स्थित शेष भारत तक पहुंचने से पहले ही मान्सून का सफर 22 दिन रूका रहा. इसी दौरान महाराष्ट्र सहित देश के अधिकांश हिस्सों में मान्सून में ठंड भी महससू किया गया और बंगाल की खाडी में 11 जुलाई को कम दबाववाला क्षेत्र बनने के बाद भी कोंकण को छोडकर राज्य के अन्य क्षेत्रों में मान्सून काल के दौरान होनेवाली मूसलाधार बारिश कही दिखाई नहीं दी. इससे उलट प्री-मान्सून सीझन की तरह विदर्भ एवं मराठवाडा में बिजली की तेज गडगडाहटों व आंधी-तूफान के साथ मान्सून ने हाजरी लगायी.
इस संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल से विशेष तौर पर बातचीत करते हुए स्थानीय मौसम विशेषज्ञ प्रा. अनिल बंड ने बताया कि, मान्सून काल के दौरान मध्य भारत पर सक्रिय रहनेवाला पश्चिम-पूर्व कम दबाव का पट्टा यानी मान्सून तर्फ विगत कुछ दिनों तक अपने सर्वसाधारण स्थान की बजाय काफी हद तक दक्षिण की ओर चला गया था. जिसकी वजह से दक्षिण भारत में अच्छी-खासी बारिश हुई. वहीं दूसरी ओर बंगाल की खाडी में तैयार हुआ कम दबाववाला क्षेत्र जमीन पर पहुंचने से पहले ही बिखर गया. जिसकी वजह से महाराष्ट्र सहित मध्यभारत में अपेक्षित बारिश नहीं हो पायी. इसके अलावा अरब सागर से आनेवाली नैऋत्य मौसमी हवाओं की वजह से होनेवाली मान्सूनी वर्षा केवल कोंकण के तटिय क्षेत्रों में ही होती दिखाई दे रही है और तटीय क्षेत्र में कम दबाववाला पट्टा सक्रिय रहने के बावजूद घाट क्षेत्र में अपेक्षित वर्षा नहीं हुई है.
मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक इस बार मान्सून के असामान्य आचरण का परिणाम बारिश की संभावना जतानेवाले मॉडल्स् पर भी हुआ है और आयएमडी का जीएफएस मॉडल इस बार 24 घंटे के दौरान होनेवाली विभागनिहाय बारिश की संभावना जताने में असफल साबित हुआ है. जबकि इसी मॉडल के जरिये प्रतिवर्ष बारिश को लेकर सटिक अनुमान व्यक्त किये जाते है.