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जिला बैंक में नगाडा बजा, सीटी की आवाज दबी

हवा-हवाई साबित हुए परिवर्तन के आरोप और दावे

  • जिले की राजनीति पर पड सकता है सहकारी बैंक के चुनाव का असर

अमरावती/प्रतिनिधि दि.6 – जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के संचालक मंडल के चुनाव में इस बार बडे पैमाने पर बडे-बडे राजनेताओं द्वारा हिस्सा लिया गया था. जिसके चलते यह चुनाव काफी चर्चा में रहा. वहीं गत रोज इस चुनाव के नतीजे घोषित हो गये. जिसमें सहकार क्षेत्र के प्रस्थापितों को ही सफलता मिली है. वहीं प्रतिस्पर्धी परिवर्तन पैनल को कुल जमा 4 सीटों पर सफलता मिली और कई दिग्गज राजनीतिज्ञों को इस चुनाव में हार का सामना करना पडा. जिसकी वजह से सहकार क्षेत्र के इस चुनाव का असर अब जिले की राजनीति पर भी दिखाई दे सकता है. वहीं बैंक में भी काफी हद तक बदलाव की लहर देखी जा सकती है.
बता दें कि, इस बार जिला बैंक के चुनाव में प्रस्थापितों के सहकार पैनल तथा प्रतिस्पर्धियों के परिवर्तन पैनल के बीच आमने-सामने का सीधा मुकाबला था. सहकार पैनल का नेतृत्व राज्य की महिला व बालविकास मंत्री तथा जिला पालकमंत्री यशोमति ठाकुर और बैेंक के पूर्व अध्यक्ष, जिला परिषद अध्यक्ष व कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बबलू देशमुख कर रहे थे. वहीं परिवर्तन पैनल की कमान राज्य के शालेय शिक्षा राज्यमंत्री बच्चु कडू तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय खोडके द्वारा संभाली जा रही थी. इसमें भी यह विशेष उल्लेखनीय है कि, बैंक के चुनाव में हिस्सा ले रहे बबलू देशमुख का सामना परिवर्तन पैनल के दोनों कप्तानों के साथ था. चांदूर बाजार सेवा सहकारी सोसायटी में बच्चु कडू और ओबीसी संवर्ग में संजय खोडके के सामने बबलू देशमुख की दावेदारी थी. इन दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में काटे की टक्कर हुई. जिसमें से चांदूर बाजार सेवा सहकारी सोसायटी में राज्यमंत्री बच्चु कडू ने बबलू देशमुख को शिकस्त दी. वहीं ओबीसी निर्वाचन क्षेत्र में बबलू देशमुख ने संजय खोडके को परास्त करते हुए हिसाब-किताब बराबर किया और वे बैंक के संचालक नियुक्त हुए.
बता दें कि बैंक के 21 सदस्यीय संचालक मंडल हेतु हुए चुनाव में 4 संचालक पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो गये थे तथा 17 संचालक पदों के लिए विगत सोमवार 4 अक्तूबर को मतदान कराया गया. जिसकी मतगणना गत रोज 5 अक्तूबर को करते हुए चुनावी नतीजे घोषित किये गये. इन 17 सीटों में से 12 सीटों पर सहकार पैनल के प्रत्याशी विजयी हुए. वहीं परिवर्तन पैनल को केवल 4 सीटों पर जीत मिली. साथ ही एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहा. ऐसे में कहा जा सकता है कि, जिला बैंक के चुनाव में सहकार पैनल का ‘नगाडा’ बडी जोर से गूंजायमान हुआ. वहीं परिवर्तन पैनल की ‘सीटी’ की आवाज दब गई.
बता दें कि, म्युच्युअल फंड में किये गये निवेश तथा इसकी ऐवज में दी गई दलाली को प्रतिस्पर्धी परिवर्तन पैनल द्वारा चुनावी मुद्दा बनाया गया था और सहकार पैनल के नेताओं पर जमकर आरोप लगाने के साथ ही काफी दस्तावेज व सबूत भी जमा किये गये थे. जिन्हें पत्रवार्ताओं के जरिये जिले की जनता व बैंक के मतदाताओं के समक्ष रखा गया. इसी बीच बैंक के कुछ अधिकारियों व दो पूर्व अध्यक्षों के नाम ईडी की नोटीस भी जारी हुई. किंतु इसके बावजूद जिला बैंक के मतदाताओं द्वारा बैंक के चुनाव में सहकार पैनल का ही समर्थन दिया गया. सहकार पैनल द्वारा पुराने जानकार प्रत्याशियों को दी गई उम्मीदवारी तथा परिवर्तन पैनल की ओर से लगाये जा रहे आधारहीन आरोपों को परखते हुए मतदाताओं ने सहकार पैनल के साथ जाना पसंद किया. वहीं दूसरी ओर सहकार पैनल का यह कहना भी काफी असर कर गया कि, उन्होंने बैंक का काम बडे पारदर्शक तरीके से चलाया है और बैंक में अधिकारियों की वजह से कुछ अनियमितताएं हुई, जिनकी बैंंक के संचालकों द्वारा ही जांच की गई और आज गडबडी करनेवाले अधिकारी इसकी सजा भी भुगत रहे है.
इसके साथ ही सबसे उल्लेखनीय बात यह भी रही कि, इस चुनाव को जीतने के लिए सहकार पैनल द्वारा काफी पहले से अपनी तैयारी शुरू की गई थी और मतदाताओं से प्रत्यक्ष मुलाकात करने और उनके समक्ष अपनी दावेदारी पेश करने का काम चुनाव प्रचार से काफी पहले शुरू हो चुका था. जिसके चलते सहकार पैनल के सभी प्रत्याशियों का मतदाताओं के साथ परिचय हो चुका था. वहीं बैंक में चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद अस्तित्व में आये परिवर्तन पैनल लगातार प्रस्थापितों के विरोध पर ही अपना फोकस करता रहा और बैंक की भलाई व विकास के लिए आगे क्या किया जायेगा, इसे मतदाताओं तक पहुंचाने में काफी हद तक असफल रहा. यह बात सहकार पैनल के लिए एक तरह से ‘प्लस पॉइंट’ रही.
कहने के लिए तो इस चुनाव में दोनों ही ओर से बडे पैमाने पर ‘अर्थकारण’ भी हुआ. किंतु वह अपने आप में कोई निर्णायक मुद्दा साबित नहीं हो पाया. इस समय 21 सदस्यीय संचालक मंडल में सहकार पैनल के पास मतदान प्रक्रिया से निर्वाचित 12 संचालक है. यानी सहकार पैनल बहुमत में है. वहीं पहले से निर्विरोध निर्वाचित चार संचालकों में से दो संचालकों को सहकार समर्थित ही माना जा रहा है. साथ ही एक-दो अन्य संचालकों का भी सहकार पैनल को समर्थन मिल सकता है. ऐसे में सहकार पैनल के पास पूर्ण व स्पष्ट बहुमत कहा जा सकता है. जिससे साफ है कि जिला मध्यवर्ती बैंक में एक बार फिर सहकार पैनल द्वारा ही सत्ता स्थापित की जायेगी. किंतु म्युच्युअल फंड में निवेश की वजह से कई संचालकों को स्थानीय अपराध शाखा, साईबर पुलिस, विशेष लेखा परीक्षक तथा ईडी तक दौडभाग करनी पडी. ऐसे में सहकार पैनल के नेताओें को भविष्य के लिए सबक भी मिल गया है और नये कार्यकाल में पुरानी गलतियां संभवत: नहीं दोहरायी जायेगी.
बता दें कि, अमरावती जिला बैंक पर आज तक कांग्रेस का ही एकछत्र राज रहा है. यदि बीच के कुछ समय को अपवाद के तौर पर छोड दिया जाये, तो जिला बैंक के अध्यक्ष पद पर कांग्रेस के नेता ही आसीन रहे. करीब 11 वर्ष के बाद हुए जिला बैंक के चुनाव में राकांपा के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय खोडके द्वारा ध्यान दिया गया और उन्होंने राज्यमंत्री बच्चु कडू, शिवाजी शिक्षा संस्था के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री हर्षवर्धन देशमुख, पूर्व मंत्री वसुधा देशमुख, विधायक राजकुमार पटेल, प्रताप अडसड व प्रकाश भारसाकले, पूर्व विधायक अरूण अडसड तथा सहकार नेता विलास महल्ले को एक मंच पर लाते हुए परिवर्तन पैनल को खडा किया और सहकार पैनल के खिलाफ जबर्दस्त मोर्चा बंदी की. अपने-अपने क्षेत्र में जबर्दस्त प्रभाव रखनेवाले नेताओं का एक मंच पर जमावडा हो जाने के चलते कयास लगाये जा रहे थे कि, इस बार जिला बैंक की सत्ता में परिवर्तन दिखाई देना तय है.
वहीं दूसरी ओर विगत दस वर्ष से जिला बैंक की सत्ता संभाल रहे बैंक के पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख तथा कांग्रेस के पूर्व विधायक वीरेंद्र जगताप के लिए यह चुनाव मानो अस्तित्व की लडाई थी. जिन्हें महिला व बालकल्याण मंत्री तथा जिला पालकमंत्री यशोमति ठाकुर का पूरा साथ मिला. बैंक की सत्ता में प्रस्थापित रहने के चलते उन्हें कई आरोपों का जवाब भी देना पडा. जिसमें सबसे मुख्य तौर पर बैंक द्वारा किये गये 700 करोड रूपये के निवेश का मसला था. जिसमें पूछताछ हेतु खुद बबलू देशमुख सहित बैंक की पूर्व अध्यक्षा उत्तरा जगताप को ईडी द्वारा नोटीस जारी करते हुए पूछताछ हेतु मुंबई स्थित ईडी कार्यालय में उपस्थित रहने के लिए कहा गया था. ईडी का समन्स एक तरह से विरोधियों के लिए हुकूम का इक्का था. जिसे चलाने का विपक्षियों द्वारा पूरा प्रयास किया गया. किंतु सहकार पैनल एवं बैंक के पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख ने आरोपों पर पलटवार करने की बजाय बडे शांत तरीके से मतदाताओं को यह समझाने में सफलता हासिल की कि, उनके कार्यकाल दौरान बैंक के कामकाज में किसी तरह की कोई हेराफेरी नहीं हुई है, बल्कि की बैंक का कामकाज पूरी तरह पारदर्शक तरीके से हुआ और कुछ अधिकारियों द्वारा कुछ गडबडियां की गई थी. यह जानकारी समझ में आते ही खुद बैंक प्रशासन ने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ शिकायत व जांच की कार्रवाई शुरू की. साथ ही मामले जांच भी शुरू करवाई गई. ऐसे में बैंक के तत्कालीन संचालकोें को आरोपोें के कटघरे में खडा नहीं किया जा सकता.
बता दें कि, सहकार क्षेत्र के चुनाव को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश की पहली सीढी कहा जाता है. खास बात यह भी है कि, यह चुनाव पार्टी के स्तर पर नहीं लडा जाता. साथ ही इस चुनाव की ओर सर्वसामान्य जनता का भी कोई विशेष ध्यान नहीं रहता. क्योंकि आम जनता द्वारा इस चुनाव में मतदान नहीं किया जाता. किंतु दिग्गज नेताओं के चुनावी मैदान में खुद उतर आने की वजह इस वर्ष पहली बार समूचे जिले के आम नागरिकों में जिला बैंक का चुनाव चर्चा व उत्सूकता का केंद्र रहा. साथ ही सभी लोगों का ध्यान मतदान एवं चुनावी नतीजे की ओर लगा रहा. इसके साथ ही इस चुनाव में मताधिकार का प्रयोग करनेवाले मतदाताओं द्वारा भी तमाम तरह के आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति को परे रखते हुए सहकार क्षेत्र के लिए सहकार पैनल के पक्ष में मतदान किया गया. कई मतदाताओं ने बताया कि सहकार पैनल की ओर से जितने भी नाम बतौर मतदाता सामने किये गये, उनका सहकार क्षेत्र में काफी जबर्दस्त अनुभव व उत्साह रहा है. साथ ही वे हमेशा से सहकार पैनल के झंडेवाले एकजूट भी रहते है. किंतु परिवर्तन पैनल में सारे प्रत्याशी अलग-अलग क्षेत्रों व राजनीतिक दलों से वास्ता रखते है, जो केवल चुनाव के लिए एक मंच पर आये थे. साथ ही अगर वे चुनाव में विजयी हो जाते, तो आगे चलकर उनके अलग-अलग गुट भी बन सकते थे. जिसका खामियाजा आम मतदाताओं, भागधारकों व खाताधारकों को उठाना पड सकता था. अत: मतदाताओं द्वारा बैंक के चुनाव में सहकार पैनल को ही भरपूर सहकार्य किया गया.

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