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शिक्षक विधायक के चुनावी अखाडे में नये व पुराने उम्मीदवारों की होगी अग्नी परीक्षा

चुनावी गतिविधियों ने पकडा जोर, संभाग के शिक्षक मतदाताओं के मूड के भांप रहे सभी

अमरावती/प्रतिनिधि/दि. 11  – आगामी 1 दिसंबर को अमरावती संभाग में शिक्षक विधायक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव हेतु प्रत्यक्ष मतदान होगा. जिसकी नामांकन प्रक्रिया इस समय चल रही है और गुरुवार 12 नवंबर को नामांकन प्रक्रिया का अंतिम दिन है. जिसके पश्चात शुक्रवार 13 नवंबर व सभी नामांकन पत्रों की पडताल की जाएंगी और 17 नवंबर तक चुनावी मैदान से हटने के इच्छूक प्रत्याशियों द्बारा अपने पर्चे वापिस लिये जा सकेंगे. जिसके बाद चुनावी तस्वीर काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगी. किंतु कुछ प्रमुख नये व पुराने प्रत्याशियों का चुनावी मैदान में बने रहना पूरी तरह से तय है. जिन में मौजूदा शिक्षक विधायक व शिक्षक आघाडी के अध्यक्ष प्रा. श्रीकांत देशपांडे, भाजपा प्रत्याशी व विदर्भ युथ वेलफेअर सोसायटी के अध्यक्ष प्रा.डॉ. नितीन धांडे, शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष शेखर भोयर, शिक्षण संघर्ष समिति की अध्यक्षा संगीता शिंदे तथा पीआर पोटे पाटील शिक्षा संस्था के उपाध्यक्ष दिलीप निंबोरकर के नामों को प्रमुख माना जा सकता है. हालांकि इसके अलावा भी अन्य कई नाम मतपत्रिका पर दिखाई दे सकते है. जिनके बारे में स्थिति नामांकन वापसी की अंतिम तिथी के बाद स्पष्ट होगी.
उल्लेखनीय है कि, विगत लंबे समय से शिक्षक विधायक पद के चुनाव कोरोना संक्रमण व लॉकडाउन के चलते लटके पडे थे और यह चुनाव लडने के इच्छूकों द्वारा इस दौरान चुनाव घोषित होने की प्रतिक्षा करने के साथ-साथ लगातार अपनी चुनावी तैयारियां की जा रही थी. वहीं अब चुनावी अधिसूचना के घोषित होने तथा निर्वाचन प्रक्रिया के शुरू होने के बाद तमाम चुनावी गतिविधियां बेहद तेज हो गयी है और सभी प्रत्याशियों ने इस चुनाव में अपनी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है. जिसके तहत सभी प्रत्याशिशयों द्वारा संभाग के सभी जिलों व तहसील क्षेत्रों का दौरा किया जा रहा है और एक-एक शिक्षक मतदाता से प्रत्यक्ष संपर्क साधा जा रहा है, ताकि अपने खाते में पहली पसंद के अधिकाधिक वोट सुनिश्चित किये जा सके. लेकिन शिक्षक मतदाताओं के मूड को अभी तक कोई भी सही तरीके से भांप नहीं पाया है, ऐसा कहा जा सकता है. यहां यह कहना अतिशयोक्ती नहीं होगा कि, विगत अनेक वर्षों से अपनी कई समस्याओं के प्रलंबित रहने की वजह से शिक्षक मतदाताओं में काफी हद तक रोष व संताप की लहर है और वेतन व पेन्शन सहित अनुदान व मान्यता से संबंधित मसलों के प्रलंबित रहने की वजह से शिक्षक मतदाता काफी हद तक त्रस्त भी हो चले है. ऐसे में इस बार शिक्षक मतदाताओं द्वारा अपनी समस्याओं एवं दिक्कतों को हल करने हेतु क्या भूमिका अपनायी जाती है, इस पर इस चुनाव का नतीजा निर्भर करेगा.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, अन्य चुनावों की तुलना में शिक्षक विधायक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव काफी अलग होते है. इस चुनाव में केवल शिक्षकों को ही मतदान करने का अधिकार होता है और अन्य चुनावों की तरह इस चुनाव में किसी मुद्दे को भुनाकर लहर पैदा नहीं की जा सकती, बल्कि यह चुनाव पूरी तरह से शिक्षकों से संबंधित मसलों के आधार पर ही लडा जाता है. जिसमें प्रत्याशी का अपने निर्वाचन क्षेत्र में सतत जनसंपर्क काफी कारगर भूमिका निभाता है. ऐसे में यह देखनेवाली बात होगी कि, इस बार शिक्षक मतदाता अपने प्रतिनिधि के तौर पर किस प्रत्याशी को अपनी पहली पसंद के सर्वाधिक वोट देते है.

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