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अब भाजपा के लिए विधानसभा में भी अमरावती मुश्किल

लोकसभा में भाजपा को अमरावती से ही हुआ सबसे बडा घाटा

* आगे भी दलित व मुस्लिम वोट कर सकते है बडा उलटफेर
अमरावती/दि.6 हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में अमरावती संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी नवनीत राणा को करीब 20 हजार वोटों से हार का सामना करना पडा. इसमें भी यह विशेष उल्लेखनीय है कि, अमरावती संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव हेतु हुए मतदान के तहत भाजपा प्रत्याशी नवनीत राणा को सबसे बडा नुकसान अपने गृहक्षेत्र यानि अमरावती विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मेें ही उठाना पडा. जहां पर नवनीत राणा को कुल 73 हजार 54 वोट प्राप्त हुए थे. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी बलवंत वानखडे ने 1 लाख 14 हजार 702 वोट प्राप्त किये. यानि अकेले अमरावती विधानसभा क्षेत्र में ही कांग्रेस प्रत्याशी बलवंत वानखडे ने 41 हजार 648 वोटों की लीड हासिल की और यहीं भाजपा प्रत्याशी नवनीत राणा के लिए सबसे बडा सेट बैक रहा. जिसे वे अन्य पांचों निर्वाचन क्षेत्रों में हासिल की गई लीड से भी पूरा नहीं कर पायी. ऐसे में इन आंकडों को देखते हुए अब यह माना जा रहा है कि, भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में अमरावती विधानसभा क्षेत्र की राह आसान नहीं रहेगी. क्योंकि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी अमरावती के दलित एवं मुस्लिम मतदाता गट्ठा वोटींग करते हुए काफी बडा उलटफेर कर सकते है. इसके साथ ही लोकसभा चुनाव के दौरान और अब नतीजे घोषित होने के बाद भाजपा में स्थानीय स्तर पर जिस तरह से राजनीतिक स्थितियां बदली है. उसे देखते हुए भी कहा जा सकता है कि, अब अमरावती में भाजपा के लिए काफी मुश्किलें पैदा होने वाली है.

बता दें कि, लोकसभा चुनाव हेतु अमरावती संसदीय क्षेत्र में हुई मतगणना के सातवें, आठवें और नौवें राउंड के दौरान जब अमरावती विधानसभा क्षेत्र में शामिल मुस्लिम बहुल इलाकों की ईवीएम मशीनों पर मतगणना की गई, तो इन तीनों राउंड में नवनीत राणा को बमुश्किल 550 वोट मिले. वहीं इन्हीं 3 राउंड में कांग्रेस प्रत्याशी बलवंत वानखडे ने करीब साढे 37 हजार वोट हासिल किये. जिसके चलते मुस्लिम बहुल इलाकों से ही नवनीत राणा को सबसे बडा नुकसान हुआ. जिसे वे अन्य इलाकों से पूरा नहीं कर पायी. इसके साथ ही दलित बहुल इलाकों में भाजपा व राणा के खिलाफ हुए मतदान के चलते बलवंत वानखडे ने अमरावती विधानसभा क्षेत्र में 41 हजार 648 वोटों की लीड हासिल की थी. ज्ञात रहे कि, अमरावती विधानसभा क्षेत्र में दलित व मुस्लिम वोटों की संख्या लगभग सवा लाख के आसपास है और यह वर्ग कभी भी भाजपा का वोटर नहीं रहा, ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव के समय अमरावती विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से इसी वर्ग के मतदाताओं की वजह से भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड सकता है.

* पोटे के शहराध्यक्ष पद से इस्तीफे से भी बढेंगी मुश्किलें
– विधानसभा चुनाव में नहीं चलती कोई मोदी लहर
बता दें कि, जिस तरह से लोकसभा के पिछले 3 चुनाव में मोदी लहर एक बडा फैक्टर रही, उस तरह की कोई लहर विधानसभा चुनाव में काम नहीं करती. ऐसे में विधानसभा चुनाव के समय भाजपा के लिए पीएम मोदी का नाम और चेहरा इतना कारगर साबित नहीं होता. जिसके चलते भाजपा के स्थानीय नेताओं पर ही पूरा दारोमदार टीका रहता है. लेकिन भाजपा के साथ स्थानीय स्तर पर अब सबसे बडी मुश्किल यह है कि, पार्टी के पास स्थानीय स्तर पर प्रवीण पोटे के अलावा कोई बडा नेता ही नहीं बचा और विधायक प्रवीण पोटे ने भी लोकसभा चुनाव में हुई हार को लेकर अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए शहराध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि पार्टी के प्रदेश नेतृत्व द्वारा उनका इस्तीफा स्वीकार किये जाने की उम्मीदें व गुंजाइश बेहद कम है. साथ ही भाजपा के स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा भी विधायक प्रवीण पोटे पर अपनी इस्तीफा वापिस लिये जाने हेतु दबाव बनाया जा रहा है. ऐसे में विधायक प्रवीण पोटे का अगला कदम क्या होता है. इस ओर सभी की निगाहे लगी हुई है.

ज्ञात रहे कि, अमरावती में अब तक सांसद अनिल बोंडे व विधायक प्रवीण पोटे के तौर पर भाजपा के दो बडे नेता रहे. जिनमें लोकसभा चुनाव के दौरान नवनीत राणा का भी नाम जुडा. जिन्हें भाजपा ने पार्टी में प्रवेश देने के साथ ही लोकसभा चुनाव हेतु पार्टी का प्रत्याशी भी बनाया था. लेकिन लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद अब नवनीत राणा का पार्टी में कितना महत्व बना व बचा रहता है, साथ ही वे खूद भाजपा के साथ ही आगे भी बनी रहती है अथवा नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. वहीं भाजपा के ग्रामीण जिलाध्यक्ष रहने वाले डॉ. अनिल बोंडे को भाजपा ने अरसा पहले ही राज्यसभा सदस्य बनाकर संसद में भेज दिया है. ऐसे में अब स्थानीय स्तर की राजनीति के लिए भाजपा के पास विधायक प्रवीण पोटे पाटिल के अलावा अन्य कोई बडा नेता नहीं बचा है. जिनकी चुनाव लडने व जीतने से संबंधित योग्यता व क्षमता को देखते हुए ही पार्टी ने उन्हें शहराध्यक्ष नियुक्त किया था. लेकिन अब पोटे ने भी शहराध्यक्ष पद छोडने का मन बना लिया है. परंतु पोटे का इस्तीफा मंजूर होने के आसार काफी कम है. क्योंकि अगर पोटे का इस्तीफा मंजूर हो जाता है, तो पार्टी के पदाधिकारियों में एक बार फिर शहराध्यक्ष पद के लिए जबर्दस्त घमासान मचेगा. जिससे बचने के लिए ही पार्टी ने इससे पहले विधायक प्रवीण पोटे पाटिल को शहराध्यक्ष बनाया था. साथ ही अगर ऐन विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में शहराध्यक्ष पद को लेकर घमासान मचता है, तो यह बात भी पार्टी के लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है.

* पोटे ही हो सकते है विधानसभा में भाजपा के प्रत्याशी
यद्यपि इस संदर्भ में अब तक पार्टी स्तर से कोई घोषणा तो नहीं हुई, लेकिन अंदरुनी तौर पर मिल रही खबरों के मुताबिक भाजपा द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव हेतु अमरावती विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्याशी के तौर पर प्रवीण पोटे पाटिल के नाम पर बडी गंभीरता के साथ विचार किया जा रहा है. जो इस समय विधान परिषद के सदस्य है और विधान परिषद में उनका कार्यकाल आगामी 21 जून को खत्म होने वाला है. ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि प्रवीण पोटे पाटिल को शहराध्यक्ष पद पर कायम रखने के साथ ही भाजपा द्वारा उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी भी बनाया जाये. विशेष उल्लेखनीय है कि, विधान परिषद सीट हेतु अमरावती के स्थानीय स्वायत्त निकाय निर्वाचन क्षेत्र में हुए पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर प्रवीण पोटे पाटिल ने समाज के सभी वर्गों से वास्ता रखने वाले जनप्रतिनिधियों के वोट हासिल किये थे और हमेशा ही जाति-धर्म की राजनीति से दूर रहने वाले विधायक प्रवीण पोटे पाटिल की समाज के सभी वर्गों में अच्छी खासी लोकप्रियता व स्वीकार्यता भी है, ऐसे में दलित व मुस्लिम वोटों को साधने की बात को ध्यान में रखते हुए भाजपा द्वारा प्रवीण पोटे पाटिल को लेकर आगामी विधानसभा चुनाव में दांव खेला जा सकता है. हालांकि विधानसभा चुनाव में भाजपा की टिकट पाने हेतु पूर्व विधायक जगदीश गुप्ता सहित भाजपा के पूर्व शहराध्यक्ष किरण पातुरकर एवं शहर के वरिष्ठ विधिज्ञ एड. प्रशांत देशपांडे भी रेस में है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि, भाजपा द्वारा अपने किस स्थानीय पदाधिकारी को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारा जाता है, ताकि उसके जरिए अमरावती विधानसभा क्षेत्र में चुनावी वैतरणी को पार किया जा सके.

* महायुति के तहत अमरावती सीट पर अजीत पवार गुट का भी दावा
यहां पर यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि, इस समय भाजपा के साथ महायुति में अजीत पवार के नेतृत्ववाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी शामिल है और स्थानीय कांग्रेस विधायक सुलभा खोडके के पति संजय खोडके इस समय अजीत पवार गुट वाली राकांपा के प्रदेश उपाध्यक्ष है. साथ ही खोडके दम्पति की डिप्टी सीएम अजीत पवार के साथ नजदीकी किसी से छिपी भी नहीं है. ऐसे में खोडके दम्पति द्वारा पूरा प्रयास किया जाएगा कि, महायुति के तहत अमरावती विधानसभा सीट अजीत पवार गुट वाली राकांपा के हिस्से में आये. यदि ऐसा होता है और यदि आगामी विधानसभा चुनाव तक अजीत पवार गुट महायुति में शामिल रहता है, तो उस सूरत में निश्चित तौर पर अमरावती विधानसभा सीट पर अजीत पवार के नेतृत्व वाली राकांपा की ओर से खोडके गुट द्वारा अपना प्रत्याशी खडा किया जाएगा. जो सुलभा खोडके भी हो सकती है. क्योंकि भले ही सुलभा खोडके ने पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर अमरावती विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडा और जीता था. लेकिन विगत 5 वर्षों के दौरान कांगे्रस के स्थानीय पदाधिकारियों के साथ उनकी कभी भी पटरी नहीं बैठी और वे कांग्रेस के तमाम कार्यक्रमों व सम्मेलनों के साथ-साथ हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी बलवंत वानखडे के चुनाव प्रचार से पूरी तरह दूरी बनाये दिखी. ऐसे में यदि अमरावती विधानसभा सीट किसी वजह के चलते महायुति के तहत अजीत पवार गुट वाली राकांपा के कोटे में जाती है, तब तो भाजपा के लिए अमरावती में कोई गुंजाइश ही नहीं बचती. हालांकि फिलहाल यह सभी बातें ‘अगर-मगर’ वाली है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि, हालिया संपन्न लोकसभा चुनाव के बाद आगामी विधानसभा चुनाव से पहले तक राजनीतिक हालात किस तरह के और कौन से करवट बदलते है.

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