वर्धा/दि.25 – कोरोना में सबका कुछ ना कुछ गया है. किसी की जान गई है. किसी का कोई अपना चला गया है. किसी का धंधा चौपट हो गया, किसी की रोजी-रोटी जा रही है और अब महाराष्ट्र के वर्धा से दिमाग सुन्न कर देने वाली खबर आई है. यहां सालों से चल रही मोहता टेक्सटाइल मिल (Mohota Industries Limited) में हमेशा-हमेशा के लिए ताला लगने जा रहा है. मोहता इंडस्ट्री 6 जून के बाद हमेशा के लिए बंद हो जाएगी और एक स्थानीय इतिहास बन कर, अच्छे-पुराने दिनों की याद बन कर रह जाएगी. सवाल है कि यहां अब 570 घरों में चूल्हे कैसे जलेंगे. 570 परिवारों के सदस्यों को रोटियां कैसे मिलेंगी? क्योंकि मिल बंद होने के साथ ही एक झटके में 570 मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे.
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मिल के प्रवेश द्वार पर लगी मिल बंद होने की सूचना
वर्धा के हिंगणघाट में स्थित मोहता इंडस्ट्रीज की पहचान एक प्रतिष्ठित आरएसआर स्पिनिंग और प्रोसेलिंग कपड़ा मिल के तौर पर थी. लेकिन अब कंपनी के व्यवस्थापकों ने 22 मई 2021 को मिल के प्रवेश द्वार पर एक नोटिस बोर्ड चिपका दिया है. इसमें यह सूचना दी गई है कि 6 जून 2021 से यह कंपनी पूरी तरह से बंद हो रही है. इस सूचना के लगते ही पूरे हिंगणघाट परिसर में खामोशी पसर गई है. ऐसा लगता है कि यह सिटी जो कल तक एक नई-नवेली दुल्हन की तरह सजी सी लगा करती थी, अचानक विधवा हो गई है. इसकी पूरी रौनक चली गई है.
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570 परिवार झटके में बेरोजगार
इस कपड़ा मिल में कुल 570 मजदूर थे. इसकी प्रोसेसिंग यूनिट पिछले डेढ़ साल से बंद होने की वजह से 210 मजदूरों को लेऑफ कर दिया गया था और उन्हें आधी सैलरी दी जा रही थी. बाकी 360 मजदूर तीन शिफ्ट में काम कर रहे थे. यहां भी ज्यादातर काम जॉब वर्क पर यानी ठेके पर दिया जा रहा था. यह जॉब वर्क पहले पंजाब और बाद में मुंबई की टेक्सटाइल कंपनी से करवाया जा रहा था.
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कर्ज का बोझ बढ़ता गया
यह कंपनी कई वर्षों से घाटे में चल रही थी. लेकिन कोरोना काल में तो यह कंपनी कर्ज में डूबती ही चली गई. मार्च 2020 में घाटा 34 करोड़ 20 लाख तक पहुंच गया. दिसंबर में 13 करोड़ और कर्ज चढ़ गया. फिलहाल कंपनी पर 108 करोड़ रुपए की देनदारी बची है. कंपनी ने कई बैंकों से कर्ज लिए हैं, जिन्हें चुकाना अब मुश्किल हो रहा है. यहां तक कि कंपनी पर बिजली बिल ही 1 करोड़ 75 लाख का बकाया है, जिस वजह से 15 दिनों पहले ही बिजली कट कर दी गई है.
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सीने पे आकर धंस गया, आखिर नोटिस लग गया
7 मई से कोरोना संकट अत्यधिक बढ़ने के बाद जिला प्रशासन ने संपूर्ण जिले में लॉकडाउन घोषित किया. तब से मिल पूरी तरह से बंद ही थी. लॉकडाउन में कंपनी की आर्थिक स्थिति बिल्कुल रसातल पर चली गई और आखिर में मैनेजमेंट ने 22 मई यानी शनिवार की शाम मिल के गेट पर वो नोटिस लगा दिया जो 570 परिवारों की आंखों पर ही नहीं चिपक गया, बल्कि सीने पे आकर धंस गया. एक-एक मजदूर को इस नोटिस का एक-एक शब्द जिंदगी भर याद रहेगा कि 6 मई 2021 से हमेशा के लिए कंपनी का कपाट बंद रहेगा.
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हर कंपनी टाटा नहीं होती, सुख-दु:ख में साझा नहीं होती
एक बात तो स्पष्ट है कि हर कंपनी टाटा नहीं होती, सुख-दु:ख में साझा नहीं होती. दो तरह की कंपनियां होती हैं. एक वो जो इतनी सक्षम होती हैं कि कोरोना के प्रभाव को झेल जाएं. एक वो जो बुरे दौर को झेल पाने में इतनी सक्षम नहीं होतीं कि वे कर्मचारियों को बैठा कर उनका घर चलाएं. लेकिन जो कंपनियां दबाव झेलने का सामर्थ्य रखती भी हैं, उनमें भी कितनी ऐसी कंपनियां होती हैं जो बुरे दौर में कर्मचारियों का खर्च उठाती हैं, यह एक बड़ा सवाल है. आखिर कहां ऐसी मिसाल है? बहुत कम ऐसी कंपनियां होती हैं जिसे रतन टाटा जैसे लोग चलाते हैं, जो बुरे वक्त में कर्मचारियों के साथ खड़े हो जाते हैं और उनका हौसला बढ़ाते हैं. बता दें कि कल की ही खबर है. टाटा स्टील कंपनी ने निर्णय लिया है कि उनके जिन कर्मचारियों ने कोविड की वजह से जान गंवाई है, उन जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिवार को उनके रिटायरमेंट के वक्त तक (मृतक कर्मचारी की 60 साल की उम्र तक) की सैलरी समय पर उनके घर पहुंचती रहेगी. उनके बच्चों की स्नातक तक की पढ़ाई और परिवार को स्वास्थ्य की सुविधाएं कंपनी की ओर से दी जाती रहेंगी. ज़िंदगी के साथ भी, ज़िंदगी के बाद भी जो साथ दे, ऐसी कंपनियां गिनती में कम ही हैं, फिलहाल तो मोहता टेक्स्टाइल मिल के मजदूर परिवारों की रोजी-रोटी पर आ बनी है.