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बोले : हमारी जरूरत ही क्या है
नागपुर/प्रतिनिधि दि.7 – अभिभावकों द्वारा अक्सर शिक्षा विभाग को लेकर शिकायत की जाती है कि, शिक्षा विभाग का ध्यान शिक्षा संस्थाओं की ओर नहीं रहता. जिसकी वजह से शिक्षा संस्थाएं अपनी मनमानी करती है. वहीं दूसरी ओर जब ऐसी शिकायतों की दखल लेते हुए शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा संस्थाओं के खिलाफ कोई कदम उठाया जाता है, तो शिक्षा संस्थाएं कोर्ट की शरण में चली जाती है और कोर्ट द्वारा शिक्षा विभाग को कार्रवाई करने से मना किया जाता है. ऐसे में ज्यादा बेहतर है कि, अब अदालतों द्वारा ही शालाओं का कामकाज संभाल लिया जाये, क्योंकि शिक्षा विभाग की कोई जरूरत ही नहीं बची. इस आशय का प्रतिपादन राज्य के शालेय शिक्षा मंत्री बच्चु कडू द्वारा किया गया है.
इस बारे में राज्यमंत्री बच्चु कडू का कहना रहा कि, खुद उन्होंने जब शिक्षा विभाग को निजी स्कुलों का ऑडिट करने हेतु कहा, तब पता चला कि, निजी शालाओं द्वारा अभिभावकों से करीब 20 करोड रूपये अतिरिक्त वसूले गये थे. अत: हमने संबंधित शिक्षा संस्थाओं को यह रकम अभिभावकों को लौटाने हेतु कहा. साथ ही शिक्षा विभाग द्वारा इनमें से कुछ शिक्षा संस्थाओं के खिलाफ पुलिस शिकायत भी दर्ज की गई. किंतु मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ द्वारा हमारी ओर से की गई कार्रवाई पर स्थगनादेश दिया गया है. ऐसे में उन्हें लगता है कि, हाईकोर्ट ने ही स्कुलों को चलाने का काम करना चाहिए. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, अभिभावकों द्वारा किसी तरह की कार्रवाई नहीं होने को लेकर शिक्षा विभाग पर कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता, क्योेंकि शिक्षा विभाग द्वारा करीब 20 शालाओं के खिलाफ कार्रवाई की गई है.
बता दें कि, नागपुर शहर की दो नामांकित शालाओं द्वारा अपने दो विद्यार्थियों को फीस अदा नहीं करने की वजह से ऑनलाईन शिक्षा से वंचित किया गया. जिसे लेकर हाईकोर्ट द्वारा इन दोनों नामांकित शालाओं को सख्त चेतावनी दी गई. वहीं दूसरी ओर अभिभावकों के संगठन का कहना है कि, शहर की अन्य कई शालाओं द्वारा भी अपने विद्यार्थियों व अभिभावकों के साथ यहीं व्यवहार किया जा रहा है. अत: उन पर भी नियंत्रण लगाये जाने की जरूरत है. इन तमाम बातों के मद्देनजर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए शालेय शिक्षा राज्यमंत्री बच्चु कडू ने कहा कि, कोविड संक्रमण काल के दौरान कई शालाओं द्वारा वाकई बहुत बेहतर तरीके से काम किया गया है. किंतु कुछ शालाओं द्वारा विद्यार्थी व अभिभावकों को सताने व प्रताडित करने का काम किया गया है. ऐसी शालाओं के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई हेतु कदम उठाये जाने के लिए सरकार के पास पूरे अधिकार होने चाहिए. राज्यमंत्री बच्चु कडू के मुताबिक कई नामांकित शालाएं केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संलग्नित होती है और वे राज्य शिक्षा विभाग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती. साथ ही शिक्षक-अभिभावक एसोसिएशन (पीटीए) का गठन भी कानून संमत ढंग से नहीं किया जाता. इस बात का फायदा उठाते हुए कई शालाएं अपनी मनमर्जी से शैक्षणिक सत्र की फीस बढाती है. जिसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करने हेतु अपेक्षित संख्या में अभिभावक सामने नहीं आते. बल्कि अभिभावकों द्वारा इसके लिए राज्य शिक्षा विभाग को कोसा जाता है और जब राज्य शिक्षा विभाग अपने स्तर पर कार्रवाई करने हेतु आगे आता है, तो इसमें अदालत द्वारा हस्तक्षेप करते हुए राज्य शिक्षा विभाग को कार्रवाई करने से रोका जाता है. ऐसे में ज्यादा बेहतर यहीं है कि, अदालतों द्वारा ही शालाओं के संचालन और अभिभावकों की शिकायतों के निपटारे का जिम्मा निभा लिया जाये. इसके लिए राज्य शिक्षा विभाग की कोई जरूरत ही नहीं है.