…. अन्यथा भ्रूण में ही हो जाती मेरी हत्या
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लोकसभा में सांसद नवनीत राणा का बयान
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खुद को बताया अवांछित संतान
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कन्याभ्रूण हत्या के विषय को लेकर छेडी नई चर्चा
अमरावती/प्रतिनिधि दि.9 – महिला दिवस पर जहां एक ओर महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को लेकर काफी हद तक वेलवेट टाईप चर्चाएं, गोष्ठियां और परिसंवाद होते है, वहीं दूसरी ओर इसी महिला दिवस पर देश के सर्वोच्च संवैधानिक सदन यानी संसद में अमरावती जिले की सांसद नवनीत राणा ने अपने विचार रखते हुए एक कटूसत्य को उजागर किया है. जिसके तहत उन्होंने खुद अपना व अपने माता-पिता का एक अनुभव साझा करते हुए कहा कि, किस्मत अच्छी थी, कि उन्होंने अपनी माता की कोख से जन्म लिया और आज वे बतौर सांसद अपनी बात संसद के जरिये देश के सामने रख रही है. अन्यथा वे भी कन्या भू्रण हत्या का शिकार हो चुकी होती. क्योंकि उनके माता-पिता पहले ही एक लडकी को जन्म दे चुके थे और दूसरी संतान इस डर की वजह से नहीं चाहते थे, कि कहीं दुबारा लडकी ही पैदा न हो जाये.
उल्लेखनीय है कि, कन्या भू्रण हत्या विगत लंबे समय से एक समस्या के साथ ही एक अभिशाप भी बना रहा. हालांकि जैसे-जैसे लोगोें के शिक्षित होने का प्रमाण बढा वैसे-वैसे इस तरह के मामलों में कुछ कमी आयी. लेकिन अब भी यह सामाजिक बुराई पूरी तरह से खत्म नहीं हो पायी है. इन दिनों जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, या शायद ही कोई उपलब्धि बची होगी, जिसे महिलाओं ने अपने नाम नहीं किया होगा. समुद्र की अथाह गहराईयों से लेकर आकाश की अनंत उंचाईयों तक आज महिलाओं ने अपनी सफलता के परचम लहरा रखे है. लेकिन बावजूद इसके समाज में आज भी न जाने क्यों बेटियों को बोझ माना जाता है और बेटी पैदा होने पर उस तरह खुशी नहीं मनायी जाती. जैसी खुशी बेटों के जन्म पर होती है. इस विषय को लेकर आज तक विभिन्न मंचों पर चर्चाएं हुई है और सरकार सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा कन्या भू्रण हत्या रोकने व कन्या जन्मदर बढाने के लिए कई उपाय योजनाओं के साथ-साथ जनजागृति अभियान भी चलाये गये. जिसका काफी हद तक सकारात्मक असर दिखाई देने लगा है. लेकिन शायद यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ है. जब किसी महिला सांसद ने लोकसभा में खडे रहकर यह कहा हो कि वजह खुद कन्या भू्रण हत्या का शिकार होते-होते सौभाग्य से बची है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि, इस विषय को लेकर समूचे देश में नये सिरे से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए.
संसद में दिये गये बयान को लेकर सांसद नवनीत राणा से संपर्क किये जाने और इस बयान के पीछे की कहानी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि, उनकेे माता-पिता पहले ही एक लडकी को जन्म दे चुके थे और जब उनकी माता दुबारा गर्भवति हुई, तो उनके अभिभावक यह सोचकर डर गये कि, अगर दूसरी भी संतान लडकी ही हुई, तो वे एक साथ दो लडकियों का पालन-पोषण कैसे करेंगे. गर्भवास्था के लक्षणों को देखकर उनकी मां को पूरा भरोसा था कि, उन्हेें अगली संतान के रूप में लडकी ही होनेवाली है. ऐसे में ेउनके माता-पिता ने दूसरी संतान को जन्म देने की बजाय गर्भपात करवाने का फैसला किया. जिसके लिए बाकायदा एक डॉक्टर से अपाइंटमेंट भी लिया गया और तय समय पर उनके माता-पिता गर्भपात करवाने पहुंचे. लेकिन उसे दिन सौभाग्य से किसी कारणवश डॉक्टर नहीं पहुंच पाये और उनके माता-पिता को घर वापिस लौटना पडा. यह बात जैसे ही उनकी मां की मां यानी उनकी नानी को पता चली तो उन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप किया और उनकी मां को समझाते हुए गर्भपात करवाने से मना किया. जिसके बाद उनकी मां ने अपना फैसला बदला और इसके बाद उन्हें इस दुनिया में आने का मौका मिला. सांसद नवनीत राणा के मुताबिक वे मुंबई में पैदा हुई और पली-बढी. साथ ही उन्हें इस बात का अभिमान है कि, वे ऐसे जिले में बहु बनकर आयी, जिसने देश को पहली महिला राष्ट्रपति दी है. साथ ही अमरावती जिले का संसद में अनेकों बार महिलाओं ने प्रतिनिधित्व किया है और आज वे उसी परंपरा का निर्वहन कर रही है.
इस बातचीत में सांसद नवनीत राणा ने यह भी बताया कि, महिला दिवस पर संसद में अपनी कहानी को विषद करने से पहले उन्होंने बाकायदा इस विषय पर अपने माता-पिता से बात करते हुए उनकी अनुमति ली थी. चूंकि यह कहानी किसी समय उनके माता-पिता और नानी ने ही उन्हें बतायी थी. अत: उन्होंने उन्हें इसकी अनुमति दी. साथ ही उन्होंने इस कहानी को संसद में इसलिए कथन किया, ताकि लोगबाग बेटियों को बोझ मानने की मानसिकता से बाहर आये. अपनी आंखे खोलकर देखे की आज देश की संसद में 78 महिला सांसद है. जिसमें से कई महिलाएं मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रही है. इस देश में महिलाएं राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी हुई है. साथ ही सेना, पुलिस, डॉक्टरी व वकालत सहित तमाम क्षेत्रों में महिलाएं सफलतापूर्वक अपना काम कर रही है. सांसद राणा के मुताबिक हिंदू धर्मशास्त्रोें में साफ लिखा गया है कि, बेटियां अपनी किस्मत अपने साथ लेकर पैदा होती है. वहीं बेटों को अपनी किस्मत बनानी पडती है. अत: समाज को चाहिए कि, बेटियों के जन्म को लेकर अपनी मानसिकता को बदले. साथ ही समाज को यह भी याद रखना होगा कि, अगर बेटियोें को पैदा नहीं होने देंगे, तो अपने बेटे के लिए बहु कहां से ढूंढोंगे. ऐसे में जीवन और समाज का संतुलन बनाये रखने हेतु यह बेहद जरूरी है कि, गर्भ में चाहे लडका हो या लडकी, उसे इस दुनिया में जन्म लेने का हक दिया जाये. क्योंकि किसी को भी किसी की गर्भ में ही जान लेने का अधिकार नहीं है.