कहीं कमजोर तो नहीं पड रहे हमारे मौजूदा जनप्रतिनिधि
अमरावती जिले के विकास की दशा व दिशा
अमरावती प्रतिनिधि/दि.७ – कोरोना संक्रमण की वजह से जारी शताब्दी में मानवी जीवन के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा था और इसी बीमारी के खतरे से जूझते हुए वर्ष 2020 जैसे-तैसे बीत गया, और अब नये वर्ष 2021 का प्रारंभ हुआ है. जिसके लिए मैं सर्वप्रथम अमरावती शहर व जिले के सभी नागरिकों को नववर्ष की शुभकामनाएं देता हूं. इस महामारी के प्रारंभिक दौर में देशसहित राज्य के सभी व्यवहार पूरी तरह से रूक गये थे और प्रारंभिक तीन-चार माह के कालखंड पश्चात राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार एवं राज्य स्तर पर राज्य सरकार द्वारा धीरे-धीरे अपने नियमित कामकाज की शुरूआत की गई. इस जरिये मानवी विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहनेवाले औद्योगिक, सामाजिक एवं मुलभूत सुविधाओं को निर्मित करने हेतु विभिन्न प्रकल्पों को नये सिरे से गतिमान किया गया है. किंतु अमरावती जिले के औद्योगिक, सामाजिक तथा नागरी सुख-सुविधाओं हेतु महत्वपूर्ण प्रकल्पों की स्थिति लगभग खंडित हुए जैसी ही है. शहर अथवा जिले में कोई नया प्रकल्प लाने के दृष्टिकोन से कोई विशेष प्रयास नहीं हुए है. यहां तक बात समझ में आती है, किंतु जो प्रकल्प 2020 से पहले मंजूर होने के साथ ही क्रियान्वित हुए थे, उन प्रकल्पों को आगे ले जाने हेतु आवश्यक रहनेवाली इच्छाशक्ति व सतत प्रयास सहित सरकार के स्तर पर अपनी पूरी ताकत लगाते हुए गतिमान करने की दृष्टि से जवाबदारी निभाने में भी हमारे जनप्रतिनिधि असफल साबित हुए है. यह एक निर्विवाद सत्य है. जनप्रतिनिधियों की अनास्था के चलते जिले व शहर के भविष्य से संबंधित कई प्रकल्पों की स्थिति चिंताजनक हो गयी है और यहीं परिस्थिति यदि कायम रहती है, तो उन प्रकल्पों को पूर्ण होने में कितना समय लगेगा, इसकी निश्चित तौर पर जानकारी नागरिकों को नहीं दी जा सकती. अमरावती यह संभागीय मुख्यालय रहनेवाला शहर है. महाराष्ट्र के अन्य संभागीय मुख्यालय रहनेवाले शहरों की तुलना में हमारी स्थिति कोई बहुत ठीक नहीं है. जिसे दुरूस्त करने हेतु इससे पहले सभी तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने सभागृह के भीतर व सभागृह के बाहर संघर्ष करते हुए कई महत्वपूर्ण प्रकल्प प्राप्त करने हेतु अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था, लेकिन मौजूदा जनप्रतिनिधियों की अनास्था व अकार्यक्षमता के चलते सभी प्रकल्पों में काम प्रलंबित पडा हुआ है. ऐसे में अमरावती जिले के विकास की दशा व दिशा भटक गयी है. इस आशय का कथन अमरावती के पूर्व विधायक डॉ. सुनील देशमुख द्वारा यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ती में किया गया है. साथ ही इस प्रेस विज्ञप्ती में उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान शुरू किये गये विभिन्न कार्य व प्रकल्पों की सिलसिलेवार जानकारी भी दी है.
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बेलोरा विमानतल
महाराष्ट्र की 6 संभागीय मुख्यालयों में से अमरावती एकमात्र विभागीय मुख्यालयवाला शहर है. जहां पर नियमित हवाई सेवा की सुविधा उपलब्ध नहीं है. मैंने और तत्कालीन जनप्रतिनिधियों द्वारा सतत किये गये प्रयासों के चलते 13 जुलाई 2019 को महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेेंद्र फडणवीस के हाथोें 32 करोड रूपयों के विस्तारीकरण कामों का भुमिपूजन किया गया था. साथ ही दिसंबर 2020 तक यह विमानतल अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य करना शुरू कर देगा. इस बात को ध्यान में रखते हुए सभी कामों का नियोजन किया गया था. किंतु बीते एक वर्ष के दौरान मंजूर निधी के अलावा एक रूपये की भी अतिरिक्त निधी इस काम के लिए जारी आर्थिक वर्ष में उपलब्ध नहीं करायी गयी है. जिसकी वजह से पूरा काम ही ठप्प पड गया है. मेरे द्वारा प्राप्त की गई जानकारी के मुताबिक यहां पर रनवे का काम करनेवाली कंपनी द्वारा रनवे का निर्माण लगभग पूरा कर लिया गया है. किंतु उन्हेें उनके काम के बदले किये जानेवाले भुगतान में अब तक 3 करोड रूपये अदा नहीं किये गये है. जिसकी वजह से इस कंपनी ने काम बंद कर दिया है, और सरकार द्वारा 3 करोड रूपये की निधी नहीं दिये जाने की वजह से रनवे पर अब तक सिल्क कोट का अंतिम स्तर नहीं लगाया गया है. केवल इसी एक कारण के चलते विगत अनेक महिनों से रनवे का काम पूर्ण नहीं हो पाया है. पूरी क्षमता के साथ यात्री विमानों की उडान हेतु एटीसी टॉवर, प्रशासकीय इमारत व टर्मिनल बिल्डींग इत्यादी कामोें के लिए 35 करोड रूपयों की निविदा प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद भी महाराष्ट्र विमानतल विकास कंपनी ने केवल निधी नहीं रहने की वजह से इस काम की वर्क ऑर्डर विगत कई महिनों से रूकी पडी है. हकीकत में दिसंबर 2020 तक बेलोरा विमानतल से बडी आसानी के साथ यात्री विमानसेवा शुरू करना सहज ढंग से संभव हो सकता था. लेकिन अब ऐसा कब होगा, इसे लेकर जबर्दस्त अनिश्चितता है. महाराष्ट्र के विभागीय मुख्यालयों के अलावा लातूर, नांदेड, जलगांव, कोल्हापुर व शिर्डी जैसे जिला मुख्यालयवाले शहरों में भी विमानतलों का निर्माण होकर वहां से नियमित विमानसेवा भी शुरू हो गयी है. इस हेतु वहां के जनप्रतिनिधि सरकार से आर्थिक सहयोग प्राप्त करने में पूरी तरह सफल हुए. सोलापुर में विमानतल हेतु केवल भूसंपादन के लिए 40 करोड रूपयों की एकमुश्त निधी का प्रावधान वहां के स्थानीय जनप्रतिनिधि के दबाव या आग्रह के चलते उपमुख्यमंत्री अजीत पवार द्वारा उपलब्ध करायी गयी है. यह अनाकलनीय तो है ही, साथ ही अमरावती के जनप्रतिनिधियों को आईना दिखानेवाली बात है. इतना ही नहीं तो पुणे में पहले ही एक विमानतल उपलब्ध रहने के बावजूद दूसरे विमानतल के लिए निधि देने की तैयारी सरकारी स्तर पर शुरू हो गयी है, ऐसी जानकारी है. वहीं अमरावती शहर विगत लंबे समय से एक पूर्ण क्षमतावाले विमानतल के लिए तरस रहा है. जबकि अमरावती में औद्योगिक क्षेत्र को गतिमान करने हेतु यहां पर विमानतल के साथ ही नियमित हवाई सेवा शुरू करना बेहद जरूरी है.
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सरकारी मेडिकल कॉलेज
अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरू करने हेतु सातत्यपूर्ण प्रयास किये गये. जिसकी अपडेटेड रिपोर्ट सरकार को भेजी जा चुकी है. जिसके आधार पर राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव पेश करना बेहद जरूरी है. लेकिन बीते एक वर्ष के दौरान इस विषय को लेकर कोई काम नहीं किया गया. अमरावती में एक की बजाय दो जगहोें पर सरकारी जमीन उपलब्ध है, जो सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए बडे सहज ढंग से उपलब्ध करायी जा सकती है. सरकारी मेडिकल कॉलेज के बाह्यरूग्ण विभाग हेतु आवश्यक रहनेवाली रूग्ण संख्या जिला सामान्य अस्पताल एवं सुपर स्पेशालीटी हॉस्पिटल की ओपीडी के जरिये सहज उपलब्ध है. साथ ही मुलभुत सुविधाओं को लेकर कम से कम खर्च में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरू करना सहज संभव है. लेकिन इसमें भी राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है. इससे उलट सातारा में सरकारी मेडिकल कॉलेज की जमीन हेतु केवल भूसंपादन के लिए वहां के विपक्षी विधायक शिवेंद्रराजे भोसले ने सातारा में उपमुख्यमंत्री से मुलाकात करते हुए अतिरिक्त 60 एकड जमीन के हस्तांतरण हेतु 61 करोड रूपयों का प्रावधान करवा लिया. ऐसी खबर हाल ही में सामने आयी है. वहीं अमरावती में यह मसला विगत लंबे समय से अधर में अटका पडा है.
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रेल्वे वैगन फैक्टरी
वर्ष 2009 के दौरान बडनेरा में रेल्वे वैगन फैक्टरी का भुमिपूजन हुआ था. लेकिन यह काम अब तक अधूरा ही पडा है. जबकि मार्च 2020 तक यहां पर कम से कम एक शेड का काम पूर्ण करते हुए उसे लोकार्पित करना अपेक्षित था. लेकिन अब तक इसका कोई अता-पता नहीं है. इसी तरह इस वैगन फैक्टरी के कर्मचारियों हेतु 128 निवासस्थानवाली इमारत का काम मुंबई की कॅनॉन कंपनी द्वारा किया जा रहा था, किंतु स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा इसमें दिक्कतें पैदा किये जाने की वजह से यह काम फिलहाल बंद है तथा काम कब शुरू होगा, इसे लेकर अनिश्चितता है. इससे उलट लातूर में रेलवे कोच निर्माण फैक्टरी का वर्ष 2018 में भुमिपूजन होने के बाद हाल ही में वहां पर पहले कोच का उत्पादन शुरू करते हुए इस प्रकल्प का लोकार्पण भी हो गया है.
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विस्तारित जलापूर्ति योजना का दूसरा चरण
मेरे कार्यकाल के दौरान वर्ष 2045 तक अमरावती की संभावित जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए पानी की जरूरत पूर्ण करने हेतु 114 करोड रूपयों की अमृत योजना कार्यान्वित की गई थी. इस महत्वाकांक्षी प्रकल्प का काम अक्तूबर 2019 तक करीब 82 फीसदी पूर्ण हो चुका था. जिसके तहत शहर के नये विस्तारित क्षेत्रोें में 10 नये जलकुंभ, 450 किमी लंबी पाईपलाईन तथा सिंभोरा स्थित जलाशय में 950 एचपी के 6 अत्याधुनिक मोटर पंपों सहित पंपिंग स्टेशन का काम सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया था. इस बेहद महत्वपूर्ण योजना में प्रशासन व ठेकेदार के बीच असमंजस्य व विसंवाद की वजह से कहीं कोई गडबडी न हो, इस हेतु प्रत्येक 15 दिनों अथवा एक माह में एक बार दीर्घ समीक्षा बैठक आयोजीत करते हुए आपसी समन्वय के साथ काम को पूर्णत्व की ओर बढाया गया. लेकिन अक्तूबर 2019 के बाद से अब तक इस काम में कोई प्रगती नहीं हुई. सबसे दु:ख की बात यह है कि, तपोवन में 56 एमएलडी क्षमतावाले विस्तारित जलशुध्दीकरण प्रकल्प का काम भी अब तक पूर्ण नहीं हो पाया है. जबकि अमरावतीवासियोें को रोजाना पर्याप्त मात्रा में जलापूर्ति करने हेतु इस प्रकल्प का काम पूर्ण होना बेहद जरूरी है. लेकिन जनप्रतिनिधियों की अनास्था के चलते इस प्रकल्प का काम कर रहे ठेकेदार अब प्रशासन के खिलाफ अदालत में चले गये है. ऐसे में अब इस प्रकल्प पर भी अनिश्चित काल के लिए प्रश्नचिन्ह लग गया है. प्रशासन एवं ठेकेदार के बीच समन्वय स्थापित करने और मामले को अदालत में न जाने देते हुए काम को पूर्णत्व की ओर आगे बढाने में स्थानीय जनप्रतिनिधि निश्चित तौर पर कम पड रहे है और जलशुध्दीकरण केंद्र के अभाव की वजह से अमरावतीवासियों को नियमित जलापूर्ति से वंचित रहना पड रहा है.
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भुमिगत गटर योजना
इसी तरह भुमिगत गटर योजना के लिए भी किये गये महत प्रयासों के चलते सरकार से 84 करोड रूपये मंजूर करवाये गये थे. शहर के दोनों विभागों में मुख्य मलवाहीनी के पूर्ण हो चुके कामोें में छूट चुकी 71 मलवाहिनीयों की गैप को जोडने और इन दोनोें विभागों में रहनेवाले 24 हजार संपत्तियों को सरकारी खर्च से भुमिगत गटर के साथ जोडते हुए नागरिकों को नि:शुल्क कनेक्शन करके देने के महत्वपूर्ण काम का समावेश था. इस काम के पूरा होने पर ही भुमिगत गटर योजना के तहत भविष्य में होनेवाले कामों की मंजूरी निर्भर करती है, लेकिन इस काम में भी समन्वय का अभाव रहने और जनप्रतिनिधि व प्रशासन की अनास्था के चलते संबंधित ठेकेदार न्यायालय में चला गया है. ऐसे में विगत पूरे सालभर यह काम करने की सुवर्णसंधी रहने के बावजूद इस योजना के तहत कोई काम नहीं किया जा सका. यह भी एक तरह से अमरावतीवासियों की प्रताडना करने जैसी बात है.
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भारत डायनामिक्स मिसाईल कारखाना
नांदगांव पेठ की पंचतारांकित एमआयडीसी में केंद्र सरकार पुरस्कृत भारत डायनामिक्स मिसाईल कारखाना बनाना प्रस्तावित है. इस हेतु उद्योग विकास महामंडल द्वारा जमीन हस्तांतरित की जा चुकी है, और उस जमीन पर चारों ओर सुरक्षा दीवार लगाने के अलावा अब तक कोई काम नहीं हो पाया है. इस काम को भी गतिमान किया जाना बेहद जरूरी है. इस संदर्भ में जानकारी लेने का प्रयास करने पर पता चला कि, इस कंपनी के अधिकांश अधिकारी दक्षिण भारतीय है, और वे विदर्भ में आने के लिए कोई खास उत्सूक नहीं है. ऐसे में इस समस्या का समाधान करते हुए इस महत्वाकांक्षी प्रकल्प का काम जल्द से जल्द पुर्ण करने हेतु स्थानीय जनप्रतिनिधि द्वारा प्रयास करना अपेक्षित है.
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अमरावती जिला स्त्री अस्पताल 400 बेडेड
संपूर्ण जिले में महिलाओं की स्वास्थ्य के दृष्टि से 400 बेडवाली अद्यावत हॉस्पिटल की इमारत हेतु 43 करोड रूपये व निविदा प्रक्रिया को मंजूर करते हुए काम की शुरूआत की गई है. किंतु बजट में प्रावधान रहने के बावजूद चार करोड रूपये अब भी अप्राप्त रहने के चलते अस्पताल की इमारत का निर्माण कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है. इस ओर बेहद गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया जाना जरूरी है.
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सुपर स्पेशालीटी अस्पताल
स्वास्थ्य व्यवस्था का सुदृढ व अद्यावत रहना कितना जरूरी है, यह बात कोरोना संक्रमण काल के दौरान सभी की समझ में आ गयी है. और अमरावती जिले के लिए सुपर स्पेशालीटी अस्पताल किस तरह से वरदान साबित हुआ है, यह भी हम सभी ने देखा है. अमरावती जिले ही नहीं बल्कि संपूर्ण पश्चिम विदर्भ के 6 जिलों सहित मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के नागरिकों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2004 से 2009 के दौरान मेरे पालकमंत्री पद पर रहने के दौरान अमरावती में विभागीय संदर्भ सेवा अस्पताल यानी सुपर स्पेशालीटी अस्पताल कार्यान्वित किया गया था. यहां की अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ आज तक हजारोें नागरिकोें द्वारा लिया गया है, और कोरोना काल के दौरान इस अस्पताल की भुमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण रही. इस अस्पताल की वजह से किडनी की जटिल शल्यक्रिया, छोटे बच्चों की जटिल शल्यक्रिया सहित विभिन्न महंगे उपचार गरीब जनता को नि:शुल्क मिलने लगे है. सुपर स्पेशालीटी अस्पताल में अब तक किडनी प्रत्यारोपण कि 15 शल्यक्रियाएं बेहद सफलतापूर्वक हुई है. यह अपने आप में एक यशोगाथा ही है. इसी श्रृंखला के तहत हृदयरोग, मेंदूरोग व कैन्सर से पीडित मरीजों के इलाज हेतु दूसरे चरण को क्रियान्वित करने हेतु 34 करोड रूपयों की निधी से काम पूरा करते हुए एक सुसज्जित इमारत तैयार करने के साथ ही इस अस्पताल हेतु पदमान्यता को मंजूर करवाने में भी सफलता प्राप्त हो चुकी है. इसके अलावा यहां पर कैथलैब व डिजीटल लिनीयर एक्सिलेटर जैसे अत्याधुनिक यंत्र सामग्री के लिए निधी उपलब्ध कराते हुए राज्य सरकार के अंगीकृत हाफकिन इन्स्टिट्यूट द्वारा निविदा प्रक्रिया भी शुरू करवायी गयी. लेकिन इतना सबकुछ करवा चुकने के बावजूद विगत आर्थिक वर्ष के दौरान इसमें कोई प्रगति नहीं हुई और काम जहां का वहीं रूका हुआ है. पदभरती के लिए भी कोई कदम नहीं उठाये गये. जिसकी वजह से यह बेहद महत्वपूर्ण अस्पताल कार्यान्वित नहीं हो सका.
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चिखलदरा विकास प्रारूप (सिडको)
समूचे विदर्भ क्षेत्र में ठंडी हवावाला एकमात्र स्थान चिखलदरा है. मैंने पालकमंत्री एवं विधायक होने के नाते लगातार प्रयास करते हुए सिडको के माध्यम से चिखलदरा में पर्यटन विकास की दृष्टिकोन से कई महत्वपूर्ण काम शुरू कराये थे. इस हेतु सिडको द्वारा प्रस्तावित 600 करोड रूपयों के प्रारूप को मान्यता दी गई थी. जिसके तहत चिखलदरा में वैश्विक स्तर का स्कायवॉक एवं यहां के सभी महत्वपूर्ण पॉइंटस् को जोडनेवाले सर्क्यूलर रोड के संदर्भ में नियोजन किया गया था. किंतु यह सभी काम फिलहाल ठंडे बस्ते में पडे है और विगत कुछ समय से इन कामों के बारे में सामान्य चर्चा भी सुनाई नहीं दी है. इसी तरह चिखलदरा पर्यटन स्थल में भविष्य की जनसंख्या एवं पर्यटन वृध्दि को ध्यान में रखते हुए शहर में पर्याप्त जलापूर्ति उपलब्ध करने के लिए सिंचाई विभाग के मार्फत लघु प्रकल्प का भी नियोजन किया गया था. इसेे भी गतिमान किया जाना बेहद जरूरी है.
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फिशरीज हब व फिश मार्केट
अमरावती जिले में ही नहीं बल्कि समूचे पश्चिम विदर्भ में मीठे पानी के मत्स्यपालन व मच्छीमारी को गतिमान करने हेतु एवं उनका मूल्यवर्धन कर स्थानीय मच्छीमारों को अच्छा मोबदला प्राप्त हो, इस हेतु वर्ष 2018 में करीब 23 करोड रूपये की निधि राज्य सरकार से मंजूर करवाकर मनपा के पास जमा करा दी है. लेकिन अब भी फिशरीज हब व फिश मार्केट का निर्माण अपेक्षित तौर पर पूरा नहीं हो पाया है. इसे भी मौजूदा जनप्रतिनिधि की असफलता कहा जा सकता है.
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सिंचाई अनुशेष
वर्ष 2008 में मैंने जलसंपदा राज्यमंत्री रहते समय अमरावती जिले के बडे, मध्यम व लघु ऐसे करीब 39 एवं समूचे विदर्भ क्षेत्र के कई प्रकल्पों का सर्वेक्षण कर सरकार द्वारा उनकी प्रशासकीय मंजूरी लेकर प्रत्यक्ष काम शुरू किया गया था. पश्चात 2009 से 2015 के दौरान ये सभी काम लगभग पूरी तरह से बंद ही थे. इसके बाद सन 2017-18 के दौरान विदर्भ पाटबंधारे विकास महामंड के उपाध्यक्ष के तौर पर मेरी नियुक्ति होने के बाद अधिकांश प्रकल्पों की प्रलंबित पर्यावरण मान्यता व संशोधित मान्यता प्राप्त की गई. साथ ही कई प्रकल्पों के प्रलंबित भूसंपादन, पुनर्वसन एवं पुनर्वसित गांवोें में नागरी सुविधाओं के काम हेतु प्रशासन के साथ विभागीय स्तर पर बैठक करते हुए सभी कामों को गतिमान किया गया. इसमें से अधिकांश प्रकल्पों को एडवांस स्टेज में लाया गया. जिसमें निम्नपेढी व बोर्डीनाला का नाम प्रमुख तौर पर लिया जा सकता है. किंतु बडे महत प्रयासोें से शुरू किये गये इन प्रकल्पों का काम अब एक बार फिर सुस्त पडा हुआ है. क्योेंकि किसी भी मंत्री या विधायक द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा. जिसकी वजह से संबंधित अधिकारी सुस्त और मस्त हो गये है. भूसंपादन व पुनर्वास के कामों की गति थम जाने की वजह से लोगबाग त्रस्त हो गये है. साथ ही सभी प्रकल्पों को पूरा होने में अब अनिश्चितकालीन विलंब हो रहा है. जिसका सीधा परिणाम सिंचाई सुविधाओं पर पड रहा है. परिणामस्वरूप क्षेत्र में अब भी किसान आत्महत्याओं का सत्र जारी है.
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प्रशासकीय सेवा पूर्व प्रशिक्षण अकादमी
केवल अमरावती जिले के ही नहीं बल्कि संपूर्ण पश्चिम विदर्भ क्षेत्र के स्पर्धा परीक्षाओं के जरिये प्रशासकीय एवं सरकारी सेवाओें में जाने के इच्छूक विद्यार्थियों हेतु सुसज्जित प्री-आईएएस कोचिंग सेंटर विदर्भ महाविद्यालय परिसर में स्थापित करने हेतु मेरे कार्यकाल के दौरान ही काम शुरू हुआ. जिसके लिए 19 करोड रूपये की प्रशासकीय मंजुरी प्राप्त की गई. यहां पर प्रशासकीय इमारत व छात्रावास का प्रत्यक्ष काम शुरू हुआ और 50 फीसदी काम पूर्ण कर लिया गया है. किंतु 5 करोड रूपयों में से पहले मंजूर 2.5 करोड रूपयों की निधि के अलावा जारी आर्थिक वर्ष में अन्य कोई निधि मंजूर नहीं की गई. जिसकी वजह से अब इस काम की रफ्तार भी सुस्त हो गयी है.
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यात्री रेल सेवा
कोरोना संक्रमण के संभावित खतरे को ध्यान रखते हुए 22 मार्च 2020 से सभी यात्री रेलगाडियों को बंद कर दिया गया था. पश्चात विगत कुछ समय के दौरान रेल विभाग ने दस फिसदी रेलगाडियों को दुबारा शुरू किया. लेकिन इसमें कौनसे मापदंड ध्यान में रखे गये, यह अनाकलनीय है. क्योंकि अमरावती-मुंबई अंबा एक्सप्रेस जैसी बेहद महत्वपूर्ण एवं आयएसओ मानांकन प्राप्त रेल गाडी फिलहाल बंद पडी है. इस ट्रेन में हमेशा ही 98 प्रतिशत यात्री संख्या हुआ करती थी, जो इस समय बंद है. इससे उलट केवल चार प्रतिशत यात्री संख्या रहनेवाली अमरावती-तिरूपती ट्रेन शुरू है. साथ ही जबलपुर-अमरावती ट्रेन को केवल जबलपुर से नागपुर तक चलाया जा रहा है और यह ट्रेन दिनभर नागपुर में खडी रहने के बाद वापिस जबलपुर के लिए रवाना होती है. इस ट्रेन को अमरावती तक क्यों शुरू नहीं किया जा रहा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. इसी तरह अमरावती शहर सहित जिले के कई युवा व कामकाजी लोग पुणे में रहते है. जिनके लिए अमरावती-पुणे के बीच नियमित ट्रेन व गरीब रथ के तौर पर नई ट्रेन शुरू करना बेहद जरूरी है. किंतु इस विषय को लेकर भी सभी जनप्रतिनिधि पूरी तरह से मौन है.
इसी तरह से कई उदाहरण प्रकल्पनिहाय दिये जा सकते है, जो सहज ही पूर्ण किये जा सकते थे, और जिनसे जिले के नागरिकों का जीवनस्तर उंचा उठाया जा सकता था, जो उनका मौलिक व संवैधानिक अधिकार भी है. लेकिन अफसोस है कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अनास्था एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव की वजह से ऐसा होना संभव नहीं हो पाया. जबकि सभी प्रकल्पों की शानदार पृष्ठभुमि तैयार है. इन सभी विषयों की तह तक जाने पर एक बात बडी प्रखरता के साथ ध्यान में आयी क्या यह पूरी स्थिति केवल कोरोना की वजह से उत्पन्न हुई. यदि इसे कुछ हद तक सच भी मान लिया जाये, तो कोरोना काल के पहले प्रस्तुत किये गये राज्य के बजट में विदर्भ, मराठवाडा एवं उत्तर महाराष्ट्र का क्या स्थान था. इसका अध्ययन करना जरूरी है. जिससे यह समझ में आता है कि, बजट में भी विदर्भ, विशेषकर पश्चिम विदर्भ के साथ सौतेला व्यवहार किया गया है, और इस क्षेत्र के प्रकल्पों को लेकर सरकारी स्तर पर काफी हद तक अनास्था दिखाई गई है. ऐसे में यह सवाल पूछा जा सकता है कि, इन सभी बातों का आकलन हमारे क्षेत्र के जनप्रतिनिधि क्यों नहीं कर पाते. और यदि वे आकलन कर पाते है, तो फिर इन कामों के लिए पूरी ताकत के साथ प्रयास क्यों नहीं करते. क्योेंकि उनके द्वारा समूचित प्रयास नहीं किये जाने की वजह से अमरावती के विकास की दशा व दिशा बिगड रही है, और भटक रही है. साथ ही विकास कार्यों व प्रकल्पों में विलंब होने का खामियाज अमरावतीवासियों को भविष्य में लंबे समय तक भुगतना पड सकता है. इस बात की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए.