अमरावती प्रतिनिधि/दि.२८ – धीरे-धीरे कोरोना संक्रमण का प्रमाण अब कम होने लगा है और लोगबाग घरों से बाहर निकलने लगे है. इसमें भी अब तक घर पर रहकर विभिन्न बीमारियों व तकलीफों को सहन करनेवाले लोगबाग अपने इलाज के लिए डॉक्टरों के पास जा रहे है. जिनमें पाईल्स व फिशर से पीडित मरीजों की संख्या सर्वाधिक है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक लॉकडाउन काल के दौरान आराम तलब जीवनशैली, चटपटे व मसालेदार भोजन का सेवन इन बातों के साथ-साथ कोरोना से बचाव हेतु उठते-बैठते किसी की भी सलाह पर काढा का अतिसेवन करना अब लोगोें पर भारी पड रहा है, क्योंकि काढे का अतिसेवन करनेवाले लोगोें में पाईल्स व फीशर जैसी बीमारियों का प्रमाण सबसे अधिक देखा जा रहा है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना काल के प्रारंभ में चार माह के लॉकडाउन दौरान तथा इसके बाद पूरी तरह अनलॉक होने में लगे तीन माह ऐसे कुल सात माह तक अधिकांश लोगबाग अपने-अपने घरों पर ही थे और उनका अधिक से अधिक समय टीवी, लैपटॉप, कंप्यूटर व मोबाईल देखने में गया. साथ ही इस दौरान घर पर बैठकर आये दिन चटपटे व मसालेदार भोजन का आनंद लिया जा रहा था और हर कोई एक-दूसरे को कोरोना से बचाव हेतु काढा पीने की सलाह दे रहा था. जिसकी वजह से लोगों ने इस दौरान कई तरह के काढों का सेवन किया. जिसकी वजह से कई लोगों को अलग-अलग बीमारियों ने घेर लिया, लेकिन कोरोना संक्रमण के डर की वजह से लोगबाग डॉक्टरों के पास भी नहीं गये और अपने ही मन से दवाईयों का सेवन किया. जिसकी वजह से स्थिति और बिगड गयी. यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, मूलव्याध नामक बीमारी एक विशिष्ट आयु के बाद यानी अमूमन ४० वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन इन दिनों १८ से ३५ वर्ष आयु वर्गवाले महिलाओं व पुरूषों को यह बीमारी होने लगी है. ऐसे में सभी को इस बीमारी के प्रति सतर्क रहते हुए अपनी जीवनशैली एवं भोजन पध्दति में बदलाव करना आवश्यक है, ताकि पाचन संस्था सही ढंग से काम करे और पाईल्स व फिशर जैसी बीमारियां न हो.