अमरावतीमुख्य समाचार

दो दुकानों को दो मर्तबा बेचने की चित्रकारी 

कृषि उत्पन्न बाजार समिति में 7 लाख का गबन

  • मंगेश को बचाने शांत आकरे और मुन्ना भरणे ने किए 7 लाख जमा

  • मंगेश भेटालू पर गबन का आरोप,विभागीय जांच शुरू

  • डेढ़ वर्ष बाद गबन की रकम मंडी सचिव पवन सारवे ने ‘ नगद ‘ जमा की

  • दुकान का एग्रीमेंट और अनामत राशि व्यवहार पहले ही हो चुका

अमरावती/दि. 19 – सन 2019 में लीज अनुबंध पर बेची गई दो दुकानों को पुनःबेचने की नई चित्रकारी कृषि मंडी में देखने को मिली है. स्थानीय कृषि उत्पन्न बाजार समिति में सब गोलमाल है.घोटाले ही घोटाले है.एक घोटाले को छिपाने के लिए बाजार समिति में अलग अलग प्रकार की चित्रकारी (पेंटिंग ) करनेवाले कई मालिदाखाऊ चित्रकार (पेंटर ) भी  मौजूद है.’गजानन की कृपा ‘ से पूरी बाजार समिति को हजम करने का दुष्चक्र आज भी जारी है.मुर्गी बाजार के पास, जुने मिर्ची आढ़त से लगकर,कथित गजानन बांधकाम इंजीनियर की देखरेख में आठ की बजाय नऊ दुकानों का बांधकाम किया गया था.इसमें की दो दुकानों को किन्ही दो महिलाओं के नाम पर डेढ़ वर्ष पूर्व ही स्थानांतरित किया गया.इसके लिए बाकायदा तत्कालीन सचिव व सभापति की कुर्सी के बाल मंगेश भेटालू ने संबंधित लीजधारक महिलाओं से 7 लाख रुपये नगद लिए और उन्हें अनुबंध (करारनामा ) कर दुकाने उनके ताबे में भी सौप दी थी.सन 2019 के मध्यकाल की यह घटना.करीब 7 लाख रुपये नगद दिए तहसील की प्रतिष्ठित महिलाओं ने.लेकिन वो रकम कल सोमवार 17 मई तक कृषि मंडी अचलपुर के बैंक खाते में अथवा तिजोरी में जमा नही हुई थी.कैशियर बनकर नगदी भी मंगेश ने ली और सचिव के रुप में एग्रीमेंट भी करके दे दिया.लोगो की जानकारी के लिए लगे हाथों यह भी बता दे कि ये वो ही मंगेश है जिन्हें कृषि उत्पन्न बाजार समिति के पद नियुक्ति (नोकर भर्ती )घोटाले में पुलिस ने मुख्य आरोपी नामजद किया है.
  इस दुकानों के करारनामे की रकम को हजम करने का काम कुछ डायरेक्टरों की मिलीभगत से होने की चर्चा जब मार्किट यार्ड से बाहर पहुंची तो रैय्यत नेता राहुल कडू ने इसकी जानकारी मांगी थी.डीडीआर और उपनिबंधक के निर्देश पर राहुल को एपीएमसी प्रशासन ने जवाब दिया.अपने जवाब में कृषि मंडी ने मान्य किया कि मंगेश को तीन सप्ताह में रकम जमा करने को कहां गया और मामले में मंगेश की मिलीभगत की विभागीय जांच शुरू कर दी गई. ‘अमरावतीं मंडल ‘ ने इस खबर को सर्वप्रथम विस्तृत रूप से 10 मई के अंक में प्रकाशित किया था.
 ताजा जानकारी अब यह है कि जिस मंगेश को पैसे जमा करने को कृषि मंडी प्रशासन ने तीन सप्ताह की मोहलत दी थी,उसने तो सीधे फूटी कौड़ी भी जमा नहीं करवाई लेकिन कल 17 मई ,सोमवार को दो सम्माननीय महिलाओं के नाम पर 7 लाख रुपये ‘नगदी ‘ जमा किये गए.नगदी यह शब्द महत्वपूर्ण है.महिलाओं के नाम पर इस रकम को मंडी सचिव पवन सारवे ने जमा किया है.एक महिला ने एक लाख व दूसरी ने 7 लाख रुपये जमा कर नगद रसीद भी ली.कृषि उत्पन्न बाजार समिति में आज भी लाखों रुपये के व्यवहार नगदी में ही हो रहे यह इसका एक बेहतरीन उदारहण कहा जा सकता.
    मंगेश को बचाने के लिए मुन्ना भरणे और शांत आकरे ने नगद आपूर्ति करने में सहयोग दिया.बाद में सम्बंधित प्रतिष्ठित गृहणियों के नाम पर रसीद ली गई.अब सवाल यह उठता है कि जब एग्रीमेंट डेढ़ वर्ष पूर्व हो गया, नगदी भी डेढ़ वर्ष पूर्व ही मिल गई तो अब उसी दोनों दुकानों की रकम क्यो जमा की गई और क्यो उसकी रसीद ली जा रही है.बताते है कि खेत मे सम्पन्न हुई कैबिनेट की मीटिंग में रकम की जुगाड़ करने पर चर्चा हुई  तब सुधीरदेव ने तो सीधे हाथ ही झटक लिए, वो बोले तुम ही देखो क्या है.बाद में गजानन एंड कंपनी ने यह जवाबदारी ली.शांत-अशांत, प्रशांत और मुन्ना से सहकारी सोसायटी की सेवा करने के लिए गणित बिठाया गया.कानून को गुमराह करने के लिए कल सोमवार को पुनः दोबारा रकम का भरना किया गया.मामले में ट्विस्ट है.चित्रकार गफलत में,हड़बड़ी में गलत सलत चित्र बनाकर पुलिस और सहकार विभाग की आंखों में मिर्ची डालने का प्रयास कर रहा.पीड़ित लोगों का कहना है कि भ्रष्ट्र आचरण में चूहे और दीमक भी किसान प्रेमी इन असहकारी बिलंदरो के सामने फेल है.
  • डीडीआर की मिलीभगत
कृषि उत्पन्न बाजार समिति में हुए दुकानों ,पद भर्ती के घोटाले में जिला निबंधक और उपनिबंधक कार्यालय की खासी मिलीभगत है.डीडीआर खुद इस चित्रकारी में पालतू बताया जाता है.यही वजह भी है कि डेढ़ वर्ष की अवधि में अभी तक कोई भी पुलिस शिकायत नहीं की गई.राहुल कडू की शिकायत के बाद भी सिर्फ जांच शुरू करने का नाटक भर किया जा रहा है.

 

  • सहकारी संस्था के ऑडीटर की भूमिका पर संदेह

 कृषि उत्पन्न बाजार समिति का लेखा परीक्षण करने कौन जायेगा यह श्रीमान डीडीआर तय करते है.लेखा परीक्षक की भूमिका हीसंदेहास्पद बताई जा रही.तभी तो 2020 के लेखा परीक्षण में 19 में गबन किये गए 7लाख पर आपत्ति नही ली गई.
2019 के कार्यकाल में इन आठ दुकानों का घोटाला किया गया.जानकारी के मुताबिक दुकानों की कोई खुली नीलामी नही की गई.अंधे को रेवड़ी मिली आपस मे बाट ली का मुहावरा सार्थक कर अपनेवालो को इन दुकानों का आवंटन कर कृषि मंडी को लाखों रुपये की चपत लगाई गई है.उक्त नऊ दुकानों में से तीन दुकाने अपने खास असंचालको को मात्र तीन-तीन लाख में देने की भी चर्चा है.सुना यह भी गया कि जब चिल्लापुकार मची तब इन्हीं पदाधिकारियों से तीन-तीन लाख और भी जमा करवाये गये.दो दुकानों के 7 लाख रोये तो 2019 से ही गायब है.2020 में सहकारी संस्थाओं का लेखा परीक्षण करने आये ऑडीटर को इतना बड़ा 7 लाख का घोटाला कैसे नजर नही आया,इस बारे में भी कही सवाल उपस्थित किये जा रहे.डीडीआर के समान ही सहकारी संस्थाओं के ऑडीटर को भी पालतू बना लिए जाने की बात सुनने को मिल रही है.
  • सहसचिव का प्रभार किसके पास

अस्थापना बिंदुवाली के अनुसार कृषि मंडी अचलपुर में सहायक सचिव के दो पद है,लेकिन दो-दो सहसचिव रहने से मलाई खाने का ‘आरक्षण ‘ ही खत्म हो जायेगा, सो आरक्षित सहसचिव का पद निरस्त कराया गया.अब मंगेश भेटालू निलंबित हो चुके,आज करीब पांच महीनों के बाद भी सहसचिव के पद का प्रभार किसी अन्य कर्मचारी को नही दिया गया.सहसचिव न होने से अति ईमानदार, कर्तव्यपरायण, निष्ठावान सचिव पवन सारवे को कम तनख्वाह में भी ज्यादा काम करना पड़ रहा.नियमानुसार सहसचिव का भार अन्य को क्यो नही दिया गया,इसका जवाब भी अनुत्तरित है.
  • महिलाओं के पास 7 लाख रुपये कहाँ से आये

जिन महिलाओं के नाम से सोमवार के दिन रसीद काटी गई,वो प्रतिष्ठित सामान्य गृहणियां है.उनके नाम पर 7 लाख रुपये लिए गए.यह मालूम करना होंगा की आखिर यह रकम किस व्यापार अथवा खेतीबाड़ी से अर्जित कर कृषि मंडी सचिव को जमा कराई गई.
कुलमिलाकर एक अजेय कुटुंब की रिश्तेदारी को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए कृषि मंडी को ही दाव पर लगाने का काम किया.अन्य से कोई लेनादेना नही है.ऐसे भी कई डायरेक्टर मिले है जिनसे उनके नजदीकी व्यक्ति को नोकरी देने के नाम पर 15 लाख रुपये वसुल किये गये. वहीं दूसरी ओर यदि कोई व्यक्ति इन्ही लोगो का रिश्तेदार है तो उसे संगणक लिपिक (कंप्यूटर ऑपरेटर) जैसी तकनीकी पोस्ट से सीधे बड़े ओहदे पर बिठा दिया जा रहा.
 तहसीलदार अचलपुर और थानेदार के आश्वासन के बाद राहुल कडू ने अस्थायी रूप से अपने अनशन को स्थगन दिया था.लेकिन पिक्चर अभी बाकी है मेरे किसान भाइयों…! राहुल कडू इस पूरी लड़ाई को एक निर्णायक मोड़ तक ले जाने की मानसिकता लिए बैठे है.दूसरी ओर किसान हित के नाम पर भ्रष्ट्राचार की चित्रकारी में लगे कथित नेताओ को गलतफहमी है कि उन्हें उपमुख्यमंत्री और असंख्य मंत्रियों का आशीर्वाद प्राप्त है, इसलिए राहुल जैसे लोग उनका कुछ भी नही उखाड़ सकते है.सहकार क्षेत्र की राजनीति के पाने-पेचकस और पेंचीस सभी के पास है.कौन किसकी और कैसे थूंक लगाकर मारेगा इसी पर सभी किसानों की नजर लगी हुई है.

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