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कागजों पर ही है निजी शालाओं की 15 फीसद शुल्क कटौती

 शाला प्रशासन द्वारा सख्ती से की जा रही वसूली

  • अभिभावकों को है सरकारी आदेश की प्रतीक्षा

अमरावती/प्रतिनिधि दि.7 – विगत दिनों राज्य की शालेय शिक्षा मंत्री एड. वर्षा गायकवाड द्वारा निजी शालाओं के शुल्क में 15 फीसद की कटौती किये जाने का निर्णय घोषित किया गया. किंतु शिक्षा विभाग ने इसे लेकर अब तक कोई अध्यादेश जारी नहीं किया है. ऐसे में शुल्क कटौती के निर्णय पर फिलहाल कोई अमल नहीं हो रहा. जिसकी वजह से निजी शालाओं द्वारा शालेय शुल्क की पूरी सख्ती के साथ वसूली की जा रही है. परिणामस्वरूप अभिभावकों में काफी रोष व संताप की लहर है.
ज्ञात रहें कि, कोविड संक्रमण के खतरे को देखते हुए विगत डेढ वर्ष से राज्य में सभी शालाएं बंद है और फिलहाल विद्यार्थियों को ऑनलाईन पध्दति से पढाया जा रहा है. ऐसे में शालाओं का खर्च कम हो गया है. इसके साथ ही विद्यार्थी इन दिनों शालाओं की ओर से दी जानेवाली विभिन्न सुविधाओं का लाभ भी नहीं ले रहे. ऐसे में संबंधित अभिभावकों द्वारा शैक्षणिक शुल्क कम किये जाने की मांग की जा रही है. जिसके चलते राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आधार लेते हुए शिक्षा शुल्क में कटौती की घोषणा की, लेकिन इससे अभिभावकों को कोई राहत नहीं मिली है.

  • जून माह में ही पूरी वसूली

विगत एक वर्ष के दौरान लॉकडाउन के चलते व्यापार-व्यवसाय व कामकाज ठप्प रहने की वजह से कई अभिभावकों का आर्थिक समीकरण पूरी तरह से गडबडा गया और अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों की स्कूली फीस नहीं भर पाये. ऐसे में नये शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ में शालाओं ने विद्यार्थियों की टीसी व अंकपत्रिका देने से इन्कार करने, ऑनलाईन क्लास बंद करने व अगली कक्षाओं में प्रवेश देने से इन्कार करने का काम शुरू करते हुए वार्षिक शिक्षा शुल्क का अधिकांश हिस्सा जून माह में ही वसूल कर लिया.

  •  विगत डेढ वर्ष में सर्वाधिक शिकायतेें

विगत डेढ वर्ष के दौरान शालाओं द्वारा अभिभावकों से शालेय शिक्षा शुल्क की जबरन वसूली किये जाने की शिकायतें बडे पैमाने पर सामने आयी है. विगत चार से पांच माह की अवधि के दौरान टीसी व गुणपत्रिका देने को लेकर शालाओं द्वारा अभिभावकों को अडाये जाने व सताये जाने से संबंधित कई शिकायतें अभिभावकों की ओर से शिक्षा विभाग को प्राप्त हुई है.

  •  संस्था चालकों को कटौती स्वीकार नहीं

इस बारे में शिक्षा संस्था संचालकोें का कहना है कि, शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का लॉकडाउन काल के बावजूद नियमित वेतन अदा किया गया. साथ ही शाला की इमारत के कर, देखभाल, दुरूस्ती, बिजली बिल, संपत्ति कर व सुरक्षा जैसे तमाम खर्च लागू रहे. भले ही विद्यार्थियों को ऑनलाईन तरीके से पढाया जा रहा था, किंतु शिक्षा संस्थाओं को तमाम खर्च पहले की तरह ही करने पड रहे थे. अत: स्कूल की फीस में कटौती बिल्कुल भी नहीं की जानी चाहिए.

  • अभिभावकों ने किया शुल्क कटौती के निर्णय का समर्थन

वहीं दूसरी ओर निजी शालाओं में पढनेवाले बच्चों के अभिभावक की शिकायत है कि, लॉकडाउन के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति गडबडा गई है. कई अभिभावकों का रोजगार चला गया है तथा कामकाज पूरी तरह से ठप्प हो गया है. किंतु शिक्षा संस्थाओं का इन तमाम बातों से कोई लेना-देना नहीं है और शिक्षा संस्था संचालक लगातार अपनी फीस वसूल करने के चक्कर में है. जिसके लिए अभिभावकों से बार-बार तगादा किया जा रहा है तथा शिक्षा शुल्क नहीं भरने पर विद्यार्थियों की ऑनलाईन कक्षाएं बंद की जा रही है तथा उनकी टीसी व अंक पत्रिका देने में आनाकानी की जा रही है.

  • जिले में कुल निजी शालाएं – 375
  • निजी शालाओं में विद्यार्थी संख्या -1 लाख 139

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