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पिंगलादेवी गढ पर आज ‘अंबादेवी’ की खापरी

तपा हुआ मटका लेकर की जाएगी प्रदक्षिणा

  • भाविक श्रद्धालूओं की उमडेगी जबर्दस्त भीड

अमरावती/प्रतिनिधि दि.१२ – समिपस्त लेहेगांव के निकट नेर पिंगलाई में स्थित पिंगलादेवी के मंदिर को साढे तीन शाक्तिपीठों में से एक माना जाता है. जहां पर पूरे विधिविधान के साथ नवरात्रौत्सव मनाया जाता है. साथ ही यहां पर अपने आपमें अनुठी रहने वाली अंबादेवी की खापरी का विधान पूर्ण किया जाता है. यह विधान इस वर्ष 12 अक्तुबर की रात 12 बजे आयोजित होने का रहा है. जिससे लेकर समूचे विदर्भ क्षेत्र के भाविकों में उत्सूकता देखी जा रही है.
बता दें कि, मिट्टी से बने मटके को हवन में शुद्ध करने के बाद उसे अपने हाथों से अपने सिर पर धारण करते हुए मंदिर की 5 अथवा 11 ्रप्रदक्षिणा की जाती है. यह परंपरा विगत 200 वर्षों से चली आ रही है और इस समय 70 वर्षीय पूजारी नारायणराव शंकरराव मारुडकर अपने सिर पर पूरी तरह तपकर लाल हो चुके मटके को धारण कर खापरी की प्रक्रिया का निर्वहन करते है. विशेष उल्लेखनिय है कि, नारायणराव मारुडकर 14 वर्ष की आयू से खापरी की परंपरा का निर्वहन कर रहे है. साथ ही इस वर्ष भी वे अपने परिवार सहित नवरात्र महोत्सव में पिंगलादेवी की पूजा अर्चना, श्रृंगार व आराधना के लिए पिंगलादेवी गढ पर पहुंच चुके है.
धार्मिक मान्यता के मुताबिक देवी द्बारा भाविक श्रद्धालूओं के दुख दूर किये जाए, संकटों को टाला जाए तथा सभी भक्तों पर देवी का आशिर्वाद रहे. इस मंगल कामना के साथ खापरी में होम हवन किया जाता है. जिसके भितर अग्नि देवता को साक्षी मानकर कपूर का दीप प्रज्वलित किया जाता है. साथ ही यहा पर दुर्गा सप्तशति का पाठ होता है और 16 प्रकार की सामग्री के हवन के साथ ही घी की आहूति दी जाती है. 4 घंटे से अधिक समय तक यह हवन चलता है. जिसकी वजह से यह मटका पूरी तरह तपकर लाल हो जाता है. इसी मटके को अंबादेवी की खापरी कहा जाता है. जिसे पूजारी नारायणराव मारुडकर द्बारा अपनी हथेली व सिर पर धारण करते हुए मंदिर की प्रदक्षिणा की जाती है. इस समय मारुडकर परिवार के सदस्य अपने हाथों में जलती हुई मशाले लेकर नारायणराव के आगे आगे चलते है और नारायणराव द्बारा ढोल-ताशे एवं ताल-मृदंग तथा जयघोष के बीच पूरी रफ्तार के साथ देवी के मंदिर की 5 अथवा 11 प्रदक्षिणा की जाती है. यद्यपि यह दृष्य अपने आपमें बेहद लोमहर्षक रहता है. किंतु विगत 56 वर्षों से खापरी उठा रहे नारायणराव मारुडकर को आज तक कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. भाविक श्रद्धालूओं में विश्वास है कि, खापरी उठाते समय नारायणराव मारुडकर के साथ स्वयंभु दैवीय शक्ति होती है.
उल्लेखनिय है कि, विगत वर्ष कोविड संक्रमण के खतरे और लॉकडाउन के चलते सभी धार्मिक स्थलों को पूरी तरह से बंद रखा गया था. किंतु मंदिरों में पूजारियों को धार्मिक विधि विधान करने की अनुमति दी गई थी. ऐसे में विगत वर्ष भी खापरी की परंपरा में कोई खंड नहीं पडा. तथा मंदिर संस्थान के विश्वस्तों एवं अपने परिजनों की उपस्थिति के बीच नारायणराव मारुडकर ने खापरी को धारण करते हुए इस परंपरा का निर्वहन किया था. वहीं इस समय मंदिर में भीड-भाड को टालने हेतु पिंगलदेवी गढ के नीचे जिला ग्रामीण पुलिस की ओर से कडा बंदाबस्त लगाया गया था. किंतु इस वर्ष राज्य सरकार द्बारा घटस्थापना वाले दिन से सभी मंदिरों को खोलने की अनुमति दी गई और सभी मंदिरों में अब भाविक श्रद्धालूओं को प्रवेश दिया जा रहा है. ऐसे में आज रात खापरी की परंपरा एवं विधान को देखने के लिए पिंगलादेवी गढ पर दूरदराज के भाविक श्रद्धालूओं की उपस्थिति देखी जा सकती है.

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