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तिलगुड की मिठास के साथ मना संक्राति पर्व

 रंगबिरंगी पतंगों से आसमान हुआ रंगीन

अमरावती/प्रतिनिधि दि.14 – तिल और गुड की मिठास से सराबोर रहनेवाला मकरसंक्रांति का पर्व शहर सहित जिले में बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस पर्व पर पतंगबाजी की परंपरा रहने के चलते पतंगबाजी के शौकीन लोगोें ने विभिन्न आकार-प्रकारवाली रंग-बिरंगी पतंगे उडाने का आनंद लिया. जिसके चलते दिनभर शहर का आसमान रंगीन दिखाई दे रहा था. साथ ही पतंगों की पेंच लडने पर ‘वो मारा-वो काटा’ की गूंज भी सुनाई दे रही थी.
बता दें कि, मकरसंक्रांति के पर्व से भुवन भास्कर सूर्यदेवता के उत्तरायण की शुरूआत होती है और यह पर्व देश के विभिन्न प्रांतों व समाजों में अलग-अलग प्रकार से मनाया जाता है. जिसके तहत मकर संक्रांतवाले दिन सिख समाज द्वारा लोहेडी व दक्षिण भारतीय समाज द्वारा पोंगल एवं पुर्वोत्तरवाले राज्यों में बिहू के तौर पर इस पर्व को मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडरवाले नववर्ष का पहला त्यौहार रहने के चलते सभी लोगों में इस पर्व को लेकर जबर्दस्त उत्साह देखा गया. साथ ही हर ओर ‘तिळ गुळ घ्या-गोड गोड बोला’ का वाक्य भी सुनाई दिया. इसके साथ ही लगभग सभी घरों में तिल्ली व गुड से बने व्यंजनों को बनाने व खाने की धुम भी देखी गयी.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, आयुर्वेद के लिहाज से ठंडी व गरमी के ऋतु संक्रमण काल में तिल्ली व गुड के सेवन को बेहद लाभकारी माना जाता है और इस मिश्रण को स्वास्थ्य वर्धक भी कहा जाता है. संभवत: यहीं वजह रही कि, पुराने जमाने में ऋषिमुनियों ने मकर संक्रांत पर्व के साथ तिल्ली व गुड से बनी मिठाईयों व व्यंजनोें के सेवन की परंपरा को जोड दिया. ऐसे में अब ऋतु संक्रमण के साथ-साथ कोरोना संक्रमण काल को देखते हुए यह कहना जरूरी हो गया है कि, ‘तिल गुड लो, स्वस्थ व निरोगी रहो’.
तिल गुड के सेवन के साथ ही मकर संक्रांति के पर्व पर पतंगबाजी करने की भी परंपरा चल पडी है. विशेष तौर पर पतंगबाजी की परंपरा गुजरात प्रांत में बडे जोर-शोर से मनायी जाती है. जिसका चलन अब अन्य राज्यों में भी हो गया है. जिससे अमरावती शहर व जिला भी अछूता नहीं है. ऐसे में पतंग उडाने के शौकीन लोगोें ने कुछ दिन पहले ही पतंगों सहित मांजे व चकरी को तैयार कर लिया था और संक्रांतवाली सुबह से ही शहर के आसमान पर रंग-बिरंगी पतंगे इठलानी शुरू हो गयी थी. जिसके चलते आसमान काफी हद तक रंगीन नजर आ रहा था.

मंदिरों में उमडी भीड

मकर संक्रांतिवाले दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है. संक्रांति का पुण्यकाल इसी दिन रहता है. साथ ही इस दिन दान करना भी बेहद फलदायी माना जाता है. इस बात के मद्देनजर शहर सहित जिले के धार्मिक स्थलों पर मकर संक्रांतिवाले दिन भाविक श्रध्दालुओं की जबर्दस्त भीड देखी गयी तथा लोगोें ने अपने आप को धर्म-कर्म संबंधीत कामोें में व्यस्त रखने के साथ ही पुण्यलाभ अर्जीत करने की दृष्टि से दान आदि भी जमकर किया.

सिख एवं पंजाबी समाज ने अलाव जलाकर मनायी लोहडी

मकर संक्रांतवाले पर्व के आसपास ही खेतों में पकी फसलों को काटकर घर लाया जाता है. जिससे हर्षित होकर पंजाब के किसानोें द्वारा लोहडी का पर्व मनाये जाने की परंपरा है. इसके तहत सिख एवं पंजाबी समाज द्वारा अलाव जलाकर नई फसल की बालियां अग्नि देवता को समर्पित की जाती है और अलाव के चारों ओर गीत-संगीत प्रस्तुत करते हुए खुशियां मनायी जाती है. इसी तरह पर अमरावती में रहनेवाले पंजाबी व सिख समाज द्वारा मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर अपने-अपने घर परिवार में बडे हर्षोल्लास के साथ लोहडी का पर्व मनाया गया.

अब शुरू होगी हलदी-कुमकुम की धुम

मकर संक्रांति पर्व के साथ ही महिलाओं द्वारा अपनी परिचित महिलाओें को अपने घर पर बुलाकर हलदी-कुमकुम का उत्सव मनाया जाता है, और एक-दूसरे का मुंह मीठा कराते हुए उन्हें उपहार प्रदान किये जाते है. साथ ही कई घरों में छोटे बच्चे रहने पर बाल-गोपाल मंडली के लिए लूट का भी आयोजन किया जाता है. ऐसे में इस समय शहर के बाजारों में वाण के तौर पर दिये जानेवाले उपहारों की खरीदी हेतु महिलाओं की अच्छीखासी भीड देखी जा रही है. साथ ही हलदी-कुमकुम के लिहाज से सजने-संवरने हेतु कॉस्मेटिक की दुकानों एवं ब्यूटीपार्लरों में भी महिलाओं की अच्छीखासी तादाद देखी जा रहीं है.

 पतंगवालों के यहां रही तौबा भीड

मकर संक्रांति पर्व के मद्देनजर पतंगबाजी को लेकर स्थानीय प्रशासन द्वारा कई तरह के दिशानिर्देश जारी किये गये थे. जिसमें पतंगबाजी के दौरान बरती जानेवाली सतर्कता की ओर ध्यान दिलाया गया था, ताकि कहीं पर भी पतंगबाजी के दौरान किसी तरह का कोई हादसा न हो. साथ ही चाईना नायलॉन मांजे की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया गया था. ऐसे में जहां एक ओर शहर के सभी पतंग एवं मांजा विक्रेताओं द्वारा इस बार चाईनीज मांजे की बिक्री नहीं की गई. वहीं दूसरी ओर पतंगबाजी के शौकीन लोग भी इस बार चाईनीज मांजे की खरीदी से कतराते दिखे. हालांकि सामान्य मांजे व सुत्तल के साथ ही पतंग, डग्गे व ढोल की जमकर बिक्री हुई.

तिल-गुड पर भी दिखा महंगाई का साया

इस बार पेट्रोलियम पदार्थों की दरें बढने की वजह से माल ढुलाई का खर्च बढ गया है. वहीं दूसरी ओर अतिवृष्टि की वजह से स्थानीय स्तर पर तिल्ली का उत्पादन भी काफी हद तक कम हुआ है. ऐसे में इस वर्ष तिल-गुल की मिठास पर काफी हद तक महंगाई का साया मंडराता दिखाई दे रहा है. बता दें कि, इस समय बाजार में तिल्ली करीब 140 से 160 रूपये प्रति किलो की दर से बिक रही है. वहीं गुड के दाम 40 से 80 रूपये प्रति किलो के आसपास है. ऐसे में तिल्ली और गुड की खरीदी पर करीब 40 फीसदी असर पडा है.

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