नागपुर/दि.10– नागपुर सहित राज्य के कई जिलों में सरपंच पद का आरक्षण 50 फीसद से उपर चला गया है. जिसके चलते इस संदर्भ में कानूनी कदम उठाने का निर्देश मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने राज्य सरकार को दिया. हलांकि चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाने के चलते ग्रामपंचायत चुनाव में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने की बात कही. साफ तौर पर इंकार कर दिया.
सरपंच पद के आरक्षण में संशोधन हो, इस बात के मद्देनजर सामाजिक कार्यकर्ता गुणवंत काले ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जिस पर सुनवाई करते हुए न्या. अतुल चांदुरकर व न्या. वृषाली जोशी की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया. साथ ही इस मामले में राज्य सरकार को आवश्यक कानूनी कदम उठाने का निर्देश देने के साथ ही निर्वाचन प्रक्रिया में कोई भी हस्तक्षेप करने से साफ तौर पर इंकार कर दिया.
बता दें कि, राज्य सरकार ने 5 मार्च 2020 को अधिसूचना जारी करते हुए सरपंच पद का आरक्षण घोषित किया था. जिसके बाद नागपुर के जिलाधीश ने आरक्षण के संदर्भ में 25 नवंबर 2020 को अधिसूचना जारी की थी. जिसके चलते नागपुर जिले में सरपंचों के कुल 768 में से 437 पद पिछडा वर्गीय हेतु आरक्षित हो गए है और पिछडा वर्गीयों का आरक्षण 50 फीसद से अधिक होने के साथ ही खुले प्रवर्ग में केवल 331 पद रिक्त बचे है. लगभग यहीं स्थिति राज्य के अन्य कई जिलों में भी है. परंतु सर्वोच्च न्यायालय द्बारा के. न्यायमूर्ति मामले में दिए गए फैसले के मुताबिक किसी भी चुनाव में 50 फीसद से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता. ऐसे में ग्रामपंचायत का चुनाव कराने से पहले आरक्षण की स्थिति में संशोधन किया जाए. ऐसी मांग याचिकाकर्ता द्बारा अदालत के समक्ष की गई. जिसके आधार पर अदालत ने भी राज्य सरकार को आवश्यक निर्देश जारी करते हुए याचिकाकर्ता की मांग की ओर ध्यान देने का निर्देश दिया है.