गणेशमूर्ति बनाते वक्त मूर्तिकार स्नेहल वनकर की मौत
मूर्ति को अंतिम रूप देते समय पडा दिल का दौरा
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गणेश स्थापना पर्व पर छायी शोक की लहर
यवतमाल/प्रतिनिधि दि. 11 – गत रोज चहुंओर भगवान श्री गणेश के आगमन की धामधूम चल रही थी और हर तरफ काफी जल्लोषपूर्ण वातावरण था. इसी समय सुबह के वक्त अपनी चित्रशाला में क्षेत्र के ख्यातनाम मूर्तिकार स्नेहल वनकर एक सार्वजनिक मंडल की गणेश प्रतिमा को फाईनल टच देने के काम में मग्न थे, तभी अचानक उन्हें तीव्र हृदयाघात हुआ और वे गणेश प्रतिमा के चरणों पर लूढक गये. हृदयविकार का झटका इतना तीव्र था कि, मूतिकार वनकर की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना के चलते यवतमाल में गणेशोत्सव पर शोक की लहर छा गई.
बता दें कि, नारिंग नगर निवासी स्नेहल बंडू वनकर का पूरा परिवार मूर्तिकला के लिए समर्पित रहा है और वे सभी सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडलों के पसंदीदा मूर्तिकार रहे है. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी स्नेहल वनकर विगत एक माह से गणेश प्रतिमाओं के निर्माण में जुटे हुए थे और लिए गए ऑर्डर के मुताबिक सभी मूर्तियां भी लगभग तैयार हो गयी थी. पश्चात शुक्रवार की सुबह गणेश मंडलों के कार्यकर्ता मूर्ति ले जाने हेतु आने से पहले स्नेहल वनकर अपने द्वारा बनाई मूर्तियों को फाईनल टच दे रहे थे और एक मूर्ति पर वस्त्रालंकार चढा रहे थे. ठीक उसी समय उन्हें तीव्र हृदयाघात हुआ और वे एक गणेश प्रतिमा के सामने ही लुढक गये. पश्चात उन्हें तुरंत अस्पताल में भरती कराया गया. किंतु तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.
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गणेशोत्सव के साथ जुडा जन्म-मृत्यु का अनूठा योग
उल्लेखनीय है कि, 50 वर्षीय मूर्तिकार स्नेहल वनकर का जन्म अनंत चतुर्दशी यानी गणेश विसर्जनवाले दिन हुआ था. वहीं उनकी मृत्यु गणेश चतुर्थी यानी गणेश स्थापनावाले दिन गणेश प्रतिमा साकार करते समय हुई. साथ ही स्नेहल वनकर ने अपना पूरा जीवन गणेशोत्सव के दौरान गणेश प्रतिमाएं साकार करने में ही बिताया. ऐसे में उनके जन्म व मृत्यु के साथ ही जीवन के साथ गणेशोत्सव जुडा हुआ रहा. वहीं इसमें अजीबो-गरीब संयोग भी जुड गया.
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पिता व भाई की भी हुई थी हृदयाघात से मौत
कुछ वर्ष पूर्व मूर्तिकार स्नेहल वनकर के पिता बंडू वनकर व भाई सचिन वनकर की भी हृदयाघात के चलते अकस्मात मौत हुई थी. वहीं अब स्नेहल वनकर की भी उसी तरह से मौत हुई है. ऐसे में वनकर परिवार के चाहनेवालों में काफी शोक की लहर व्याप्त है. वर्ष 1995 में स्नेहल वनकर ने पहली गणेशमूर्ति साकार की थी और इस दौरान यवतमाल शहर व जिले सहित विदर्भ के अन्य कई जिलों में उनके द्वारा बनायी जानेवाली गणेशमूर्तियों व दुर्गा मूर्तियों की अच्छी-खासी मांग थी और उनके द्वारा बनाई जानेवाली मूर्तियों को खासा पसंद भी किया जाता था.