* औरंगाबाद का भाषण चल रहा चर्चा में
औरंगाबाद/दि.17- मराठवाडा मुक्ति संग्राम की स्मृति में औरंगाबाद शहर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. जिनमें खुद मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने हिस्सा लिया. यहां पर औरंगाबाद जिला परिषद की ईमारत के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे द्वारा दिये गये भाषण के अनेकों राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे है और संभावना जतायी जा रही है कि, आनेवाले वक्त में भाजपा और शिवसेना एक बार फिर एकसाथ आ सकते है.
बता दें कि, औरंगाबाद जिप की ईमारत के उद्घाटन अवसर पर आयोजीत कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री रावसाहब दानवे तथा केंद्रीय राज्यमंत्री भागवत कराड भी उपस्थित थे. जिनकी ओर देखते हुए अपने संबोधन के प्रारंभ में सीएम उध्दव ठाकरे ने कहा कि, व्यासपीठ पर उपस्थित मेरे आजी-माजी यानी मौजूदा व पूर्व और यदि दुबारा एकसाथ आये, तो भावी सहकारी, इस एक वाक्य को लेकर कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे है. केंद्रीय मंत्री दानवे व केंद्रीय राज्यमंत्री कराड की ओर देखकर भावी सहयोगी शब्द का संबोधन सीएम उध्दव ठाकरे द्वारा क्यों किया गया. अब इसे लेकर जबर्दस्त चर्चा चल रही है. साथ ही यह कयास भी निकाला जा रहा है कि, कहीं सीएम उध्दव ठाकरे ने एक बार फिर भाजपा व शिवसेना के एकजूट होने का संकेत तो नहीं दिया है.
सीएम उध्दव ठाकरे ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि, इस समय सभी लोगों का राजनीति को परे रखते हुए जनहित में काम करना जरूरी है, अन्यथा यदि सभी लोग आपस में लडते-झगडते रहे तो मराठवाडा मुक्ति दिवस मनाने का कोई औचित्य ही नहीं है. यदि यहीं सब करना है, तो हमारी सरकार और निजामशाही में क्या फर्क रह जायेगा.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, गत रोज भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटील ने पुणे में एक निजी प्रतिष्ठान के उद्घाटन अवसर पर खुद को पूर्व मंत्री संबोधित किये जाने से रोकते हुए कहा था कि, आगामी दो-तीन दिनों में स्थिति पूरी तरह साफ हो जायेगी. ऐसे में पाटील के बयान के पश्चात अब सीएम उध्दव ठाकरे द्वारा दिये गये बयान को लेकर शिवसेना व भाजपा के एक साथ आने को लेकर चर्चा चल रही है.
वहीं दूसरी ओर विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष प्रवीण दरेकर ने ऐसी तमाम संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा कि, शायद सीएम उध्दव ठाकरे अपने इस बयान के जरिये शिवसेना के साथ सरकार में शामिल कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस को चेतावनी दे रहे थे, ताकि वे अडंगेवाली राजनीति न करे, अन्यथा शिवसेना के पास भाजपा के साथ जाने का पर्याय भी खुला है.