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नवनीत राणा मामले में अब भी काफी संभ्रम

कानून के जानकारों की राय में जनप्रतिनिधित्व कानून में स्थिति साफ नहीं

  • हाईकोर्ट में जाति प्रमाणपत्र खारिज होने के बाद भी लंबा खिंच सकता है मामला

  • अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर होंगे दोनों पक्ष, प्रक्रिया शुरू, कैवेट दाखिल

अमरावती/दि.9 – गत रोज मुंबई हाईकोर्ट द्वारा अमरावती जिले की सांसद नवनीतकौर राणा के जाति प्रमाणपत्र व जातिवैधता प्रमाणपत्र को खारिज कर दिया गया था और उन पर दो लाख रूपये का दंड लगाते हुए उन्हें जाति प्रमाणपत्र व जाति वैधता प्रमाणपत्र आगामी छह सप्ताह के भीतर जाति वैधता जांच समिती के समक्ष पेश करने का हुक्म दिया था. इस आदेश की वजह से नवनीत राणा की संसद सदस्यता खतरे में पडती दिखाई दे रही है, क्योेंकि मुंबई हाईकोर्ट में नवनीत राणा के जाति प्रमाणपत्र को चुनौती देनेवाले पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल द्वारा एक निर्वाचन याचिका नागपुर हाईकोर्ट में भी दायर की गई है. जिसके जरिये अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित अमरावती संसदीय सीट से फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नवनीत राणा द्वारा चुनाव लडने और सांसद निर्वाचित होने को चुनौती दी गई है. ऐसे में यह तय है कि मुंबई हाईकोर्ट के फैसले का असर नागपुर में खंडपीठ में दायर निर्वाचन याचिका की सुनवाई और फैसले पर भी पडना तय है. ऐसे में इस समय यद्यपि यह माना जा रहा है कि, मुंबई हाईकोर्ट द्वारा दिया गया फैसला नवनीत राणा के लिए काफी बडा धक्का है. किंतु कानून के जानकारों की राय में सांसद पद को लेकर जनप्रतिनिधित्व कानून में स्थिति पूरी तरह से साफ और स्पष्ट नहीं है. जिसका फायदा सांसद नवनीत राणा को मिल सकता है. साथ ही उनके पास सुप्रीम कोर्ट जाने का पर्याय खुला हुआ है और गत रोज ही खुद सांसद नवनीत राणा द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि, वे सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने जा रही है. इसके साथ ही अडसूल गुट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में आज बुधवार को ऑनलाईन तरीके से कैवेट की दाखिल कर दी गई. जिसका सीधा मतलब है कि, इस मामले को लेकर अदालती लडाई कुछ और लंबी खिंच सकती है.
समूचे देश की मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करनेवाले इस मामले को लेकर देश के बडे-बडे विधि विशेषज्ञों व कानून के जानकारों ने अलग-अलग स्तर पर विभिन्न माध्यमों के जरिये अपनी राय दी है. जिसे यहां पर एक साथ संकलित किया गया है. साथ ही इस मामले को लेकर आये फैसले और इसके भविष्य पर कुछ रोशनी पड सके.

सांसद पद को लेकर तत्काल कोई खतरा नहीं

हाईकोर्ट के फैसले की वजह से नवनीत राणा की लोकसभा सदस्यता को लेकर तत्काल कोई खतरा नहीं है. इस समय एक चुनावी याचिका हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ के सामने प्रलंबित है. इस याचिका पर क्या फैसला आता है, इस पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा. इसके अलावा राणा के पास अब भी सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प शेष है. जिसका वे निश्चित तौर पर प्रयोग भी करेगी.
– एस. सी. धर्माधिकारी
पूर्व न्यायमूर्ति, हाईकोर्ट

गेंद चुनाव आयोग के पाले में

हाईकोर्ट के फैसले के पश्चात नवनीत राणा के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार है. जहां पर मामले की सुनवाई पूरी होने तक शायद उनका कार्यकाल भी पूरा हो जायेगा. हालांकि इस दौरान उन्हें संसद में मतदान करने का अधिकार नहीं मिल सकता है. साथ ही यदि केंद्रीय निर्वाचन आयोग चाहे, तो इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए उनकी संसद सदस्यता को रद्द करने की दिशा में आवश्यक कदम उठा सकता है. लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति की जरूरत पडेगी.
– बी. जी. कोलसे पाटील
पूर्व न्यायमूर्ति, हाईकोर्ट

छह सप्ताह की अवधि का कोई मतलब नहीं

जहां तक जाति प्रमाणपत्र लौटाने के लिए नवनीत राणा को छह सप्ताह का समय दिये जाने की बात है, तो अब इसका कोई बहुत खास मतलब नहीं है. क्योंकि कोर्ट ने जाति प्रमाणपत्र को अवैध करार दे दिया है. ऐसे में इस हेतु अतिरिक्त समय मांगने का कोई अर्थ नहीं है और इसका इस केस पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा. साथ ही इस मामले में पुनर्विचार याचिका भी कारगर नहीं होगी. ऐसे में सांसद नवनीत राणा के पास फिलहाल केवल सुप्रीम कोर्ट में जाने का ही विकल्प उपलब्ध है.
– एड. श्रीहरी अणे
पूर्व महाधिवक्ता व संविधान विशेषज्ञ

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सबकुछ निर्भर

हाईकोर्ट के इस फैसले से सांसद नवनीत राणा की सदस्यता सीधे रद्द नहीं होगी. बल्कि इसके लिए अलग से आवेदन करना पडेगा. वहीं राणा के पास अब केवल उपरी अदालत में जाने का विकल्प ही शेष बचा है. सर्वोच्च न्यायालय का फैसला ही अब इस मामले और राणा का भविष्य तय करेगा.
– एड. राजेंद्र रघुवंशी
पूर्व एडशिनल सॉलीसीटर जनरल

आगे की राह मुश्किल

वैसे तो जाति वैधता रद्द होने के साथ ही नवनीत राणा की संसद सदस्यता को भी खत्म माना जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर दो लाख रूपये जमा कराने और छह सप्ताह के भीतर अपना जाति वैधता प्रमाणपत्र सरेंडर करने का समय दिया है. ऐसे में उन्होंने खुद ही तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए. अन्यथा हाईकोर्ट उनसे पद खाली करवायेगा और सांसद रहते हुए उन्होंने जितने भी लाभ प्राप्त किये है, उन्हें धारा 10 व 11 के अंतर्गत वापिस लिया जा सकता है. ऐसे में अब यह देखना बाकी रहेगा कि, सुप्रीम कोर्ट से नवनीत राणा को क्या राहत मिलती है.
– एड. फिरदौस मिर्झा
वरिष्ठ अधिवक्ता

इस्तीफा नहीं देती है, तो भी पद जाना तय

यदि हाईकोर्ट द्वारा कुछ समय दिया जाता है तो ही नवनीत राणा सांसद पद पर बनी रह सकती है. अन्यथा यदि वे इस्तीफा नहीं भी देती है, तो भी उनका पद चला जायेगा. इसके लिए केंद्रीय निर्वाचन आयोग को इस संदर्भ में नोटिफिकेशन जारी करना होगा.
– एड. मुकेश समर्थ
वरिष्ठ अधिवक्ता

सुप्रीम कोर्ट पर पूरा मामला निर्भर

नवनीतकौर राणा को हाईकोर्ट द्वारा जाति वैधता प्रमाणपत्र सरेंडर करने के लिए छह सप्ताह का समय मिला है. इस बीच यदि वे सुप्रीम कोर्ट जाती है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे ऑर्डर दिया जाता है, तो उन्हें कुछ और समय मिल सकता है. साथ ही कोर्ट इस मामले में एक बार फिर जाति वैधता समिती के पास भेज सकता है. इस पर पूरा मामला निर्भर करेगा.
– एड. प्रदीप वाठोरे
वरिष्ठ अधिवक्ता

निर्वाचन आयोग को लेना होगा निर्णय

स्थानीय निकाय चुनाव के बारे में स्थिति एकदम साफ है कि यदि किसी विजेता उम्मीदवार का जाति प्रमाणपत्र अवैध पाया जाता है, तो दूसरे स्थान पर रहनेवाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है. लेकिन सांसद पद को लेकर जनप्रतिनिधित्व कानून में स्थिति साफ नहीं है. ऐसे में हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब निर्वाचन आयोग को इस बारे में फैसला लेना होगा. वहीं सांसद नवनीत राणा के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प भी है.
– एड. उदय वरूंजेकर
वरिष्ठ अधिवक्ता

प्रमाणपत्रों की जांच नहीं करता चुनाव आयोग

वहीं पूरे मामले को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक निर्वाचन आयोग द्वारा आरक्षित सीटों पर चुनाव लडनेवाले उम्मीदवारों के जाति प्रमाणपत्र की वैधता को अपने स्तर पर नहीं जांचा जाता और आयोग के पास जाति प्रमाणपत्रों की जांच करने की कोई प्रणाली भी नहीं है. ऐसे में यदि किसी को लगता है, किसी उम्मीदवार ने फर्जी तरीके से जाति प्रमाणपत्र बनवाया है, तो उसके प्रतिस्पर्धि उम्मीदवार अदालत में जा सकते है. इस अधिकारी के मुताबिक चुनाव लडते समय सभी उम्मीदवारों को हलफनामे के जरिये अपनी चल व अचल संपत्ति सहित कई बातों का ब्यौरा देना पडता है, लेकिन चुनाव आयोग के पास हलफनामे में दी गई जानकारी की वैधता को जांचने का भी कोई तंत्र नहीं है.

निर्वाचन याचिका को मिलेगा बल

मुंबई उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता व पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल की ओर से पैरवी करनेवाले एड. सचिन थोरात, एड. राघव कविमंडन व एड. संदीप चोपडे ने इस मामले और फैसले को लेकर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, हाईकोर्ट ने सांसद नवनीत राणा के मोची इस अनुसूचित जाति से संबंधित जाति वैधता प्रमाणपत्र को ही खारिज कर दिया है. ऐसे में उनके खिलाफ नागपुर खंडपीठ में प्रलंबित तीन निर्वाचन याचिकाओं को अपने आप ताकत मिल गई है, क्योेंकि इन निर्वाचन याचिकाओें में नवनीत राणा के अनुसूचित जाति से संबंधित रहने के हलफनामे पर ही आक्षेप लिया गया है. ये तीन याचिकाएं शिवसेना के पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल, शिवसेना कार्यकर्ता सुनील भालेराव तथा वंचित बहुजन आघाडी के नंदकुमार अंबाडकर द्वारा नागपुर खंडपीठ में दायर की गई है. ऐसे में नवनीत राणा का सांसद पद जाना अब पूरी तरह से तय है.

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