पिता द्वारा मां से बच्चे का कब्जा लेना अपहरण नहीं!
हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
नागपुर/दि.3- सक्षम न्यायालय का कोई भी मनाई हुकूम लागू नहीं रहते समय हिंदू समुदाय से वास्ता रखने वाले पिता द्वारा मां के कब्जे में रहने वाले अपने नाबालिग बच्चे को जबरन अपने कब्जे में लेना यह कोई अपहरण वाला अपराध नहीं है. इस आशय का महत्वपूर्ण निर्णय मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ द्वारा सुनाते हुए बुलढाणा निवासी पिता को राहत दी गई है.
जानकारी के मुताबिक बुलढाणा निवासी व्यक्ति का विवाह अमरावती जिले में रहने वाली युवती के साथ हुआ था. इस दम्पति को तीन माह का एक बेटा है. परंतु आगे चलकर पारिवारिक मतभेदों के चलते बच्चे के माता-पिता अलग हो गए और तब से बच्चा अपनी मां के पास रह रहा था. परंतु 29 मार्च 2023 को बुलढाणा निवासी व्यक्ति ने बच्चे का कब्जा जबरन अपने पास लिया और वह उसे अपने साथ लेकर बुलढाणा चला गया. ऐसे में बच्चे की मां ने अमरावती स्थित गाडगे नगर पुलिस थाने में बच्चे के पिता के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करवाया. इसके बाद बच्चे के पिता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए अपने खिलाफ दर्ज याचिका को रद्द करने की मांग की. जहां पर इस मामले को लेकर न्या. विनय जोशी व न्या. वाल्मिकी मेनझेस की दो सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई और अदालत ने पूरे मामले की सुनवाई पश्चात विविध कानूनी पहलूओं को ध्यान में रखते हुए पिता के इस कृत्य को अपहरण जैसा अपराध मानने से इंकार करते हुए पिता के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आदेश जारी किया. इस मामले में याचिकाकर्ता पिता की ओर से एड. पवन दहाट व एड. आकाश मून ने पैरवी की.
* क्या कहा अदालत ने?
हिंदू अज्ञानत्व एवं पालकत्व कानून के अनुसार बच्चे के पिता को पहला नैसर्गिक अभिभावक माना जाता है. जिसके बाद मां का स्थान आता है. ऐसे में बच्चे को उसके कानूनी अभिभावक के कब्जे से जबरन ले जाना यह भारतीय दंड विधान के अनुसार अपहरण का अपराध होने की परिभाषा है. परंतु इस मामले में बच्चे को अपने साथ ले जाने वाला व्यक्ति उसका पिता यानि कानूनी तौर पर उसका प्रथम अभिभावक है. साथ ही बच्चा अपनी मां के ही कब्जे में रहेगा, ऐसा किसी सक्षम न्यायालय का आदेश भी नहीं है. जिसके चलते बच्चे के पिता के खिलाफ अपहरण की धारा के तहत एफआईआर दर्ज ही नहीं हो सकती, ऐसा हाईकोर्ट का कहना रहा.