मनपा के ‘क्षितिज’ पर आखिर इतना हंगामा क्यों?
निविदा धारक का नाम खुलने से पहले ही घेरा जा रहा प्रशासन को
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लगातार दबाव की आखिर क्या है वजह
अमरावती/प्रतिनिधि दि.7 – विगत दो-तीन दिनों से मनपा के राजनीतिक व प्रशासनिक ‘क्षितिज’ पर जबर्दस्त हंगामे की स्थिति बनी हुई है और आउटसोर्सिंग पर मनुष्यबल की नियुक्ति करने हेतु किसी एजेन्सी का चयन करने के लिए शुरू की गई निविदा प्रक्रिया और एक अदद ठेके के लिए इस समय मनपा की सत्ता में शामिल एक घटक दल सहित समूचा विपक्ष ‘ऑल पार्टी कॉन्फ्रेंस’ बने हुए है तथा मनपा के सत्ता पक्ष सहित प्रशासन को जमकर घेरने के साथ ही अपने रसूख और राजनीतिक वजन का सहारा लेते हुए लगातार मनपा प्रशासन पर इस ठेके से संबंधित कामों को लेकर दबाव बनाया जा रहा है.
बता दें कि, स्थानीय महानगर पालिका में प्रतिमाह सेवानिवृत्तों की संख्या बढ रही है. वहीं दूसरी ओर नागरिकों को दी जानेवाली सेवाओं व सुविधाओं के लिए आवश्यक मनुष्यबल कम पड रहा है. ऐसे में प्रशासन द्वारा ‘आउट सोर्सिंग’ के जरिये आवश्यक मनुष्यबल भरती करने का निर्णय लिया गया है. जिसके लिए निविदा प्रक्रिया भी चलायी गयी. किंतु विगत एक माह के दौरान यह तय करने में समय बीत गया की आखिर यह ठेका किसे दिया जाये और अब यह निविदा प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है. साथ ही विश्वसनीय सूत्रोें से मिली जानकारी के मुताबिक निविदा की पहले ही तय शर्तों व नियमों के मुताबिक ‘स्कू्रटनी’ करते हुए कुल आठ निविदाधारकों में से पांच निविदाधारकों को इस ठेका प्रक्रिया की रेस से बाहर कर दिया गया है और अब फाईनल रेस में कुल तीन नाम बचे हुए है. जिसमें से किसी एक को आउटसोर्सिंग संबंधी काम का ठेका दिया जाना है.
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सवाल अब खुद सवालों के घेरे में
जानकारी के मुताबिक मनपा के प्रशासकीय विभाग, शिक्षा विभाग तथा झोन कार्यालय में विविध कामों हेतु 300 कर्मचारी ठेका पध्दति से नियुक्त किये जायेंगे, इसके तहत डॉक्टर व परिचारिका सहित लिपीक स्तर के पदों हेतु आवश्यक मनुष्यबल को आउटसोर्सिंग के जरिये नियुक्त किया जायेगा. जिसके लिए एक एजेन्सी का चयन किया जाना है. बता दें कि, विगत 3 मई 2021 को इस काम से संबंधित निविदा खोली गई थी. जिसमें 8 एजेंसियों द्वारा हिस्सा लिया गया था. किंतु मनपा प्रशासन द्वारा अब तक किसी भी एजेन्सी के नाम पर अंतिम मूहर नहीं लगायी गई है. इसके बावजूद जैसे ही कुछ लोगों को यह जानकारी मिली की मनपा प्रशासन द्वारा पांच इच्छुक एजेंसियों के निविदा प्रस्ताव खारिज कर दिये गये है और अब शेष तीन नामोें में से किसी एक नाम पर अंतिम मूहर लगेगी. वैसे ही विरोध और हंगामे की शुरूआत हो गई. यहीं से विरोध और हंगामे के स्वरों पर सवालिया निशान लगने शुरू होते है. सबसे बडा सवाल यह है कि, जब अभी यह निविदा प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है और ‘टॉप-3’ में से किसी एक नाम को फाईनल करना है, तो आखिर मनपा के सत्ता पक्ष में शामिल एक घटक दल सहित विपक्ष द्वारा एक साथ मिलकर और हाथों में हाथ मिलाकर आखिर विरोध व हंगामा किस बात का किया जा रहा है.
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इन शर्तों के आधार पर चल रही निविदा प्रक्रिया
यहां पर सबसे उल्लेखनीय व महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि, मनपा प्रशासन द्वारा आउटसोर्सिंग हेतु एजेन्सी का चयन करने के लिए जो निविदा प्रक्रिया शुरू की गई थी, उसमें कुछ नियम व शर्त भी जोडे गये थे. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण यह था कि, ठेकेदार का चयन करते समय स्थानीय यानी अमरावती शहर तथा जिले से वास्ता रखनेवाली एजेन्सी को पहला प्राधान्य दिया जायेगा. साथ ही निविदा की दरों में अपूर्णांक स्वीकार नहीं किये जायेंगे, बल्कि निविदा की दरें ‘राउंड फिगर’ में होनी चाहिए. इन्हीं मानकों के आधार पर पांच एजेंसियों की निविदा रेस से बाहर हो गयी. वहीं अब तीन एजेंसियों के नामों पर अंतिम विचार-विमर्श चल रहा है. लेकिन जैसी ही पांच नामों को रेस से बाहर करने की भनक लगी, वैसे ही अचानक सत्ता पक्ष व मनपा प्रशासन के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर हो गये. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह उठता है कि, जब अभी इस बात की जानकारी स्पष्ट तौर पर सामने ही नहीं आयी है कि कौनसी एजेन्सी रेस से बाहर हुई है और कौन सी एजेन्सी ‘टॉप-3’ में बनी हुई है, तो आखिर मनपा के ‘क्षितिज’ पर किसे लेकर और किस वजह से इतना हंगामा बरपा हुआ है.
* करीब 7 करोड के टेंडर का है मामला
जानकारी के मुताबिक अमरावती मनपा के विभिन्न विभागों में 300 से 350 कर्मचारियों की आउटसोर्सिंग से नियुक्ति हेतु चलाई जा रही इस निविदा प्रक्रिया के तहत करीब 7 करोड रूपये का ठेका दिया जाना है. अंदरूनी सुत्रोें के मुताबिक इस ठेके की धारक रहनेवाली एजेन्सी द्वारा नियुक्ति किये जानेवाले कर्मचारियों को मनपा के खाते से प्रति कर्मचारी करीब साढे 26 हजार रूपयों का वेतन अदा किया जाता है. यह वेतन मनपा द्वारा एजेन्सी के खाते में जमा किया जाता है और एजेन्सी द्वारा ‘काट-पीटकर’ कर्मचारियों को पेमेंट किया जाता है, जिसमें एजेन्सी की भी अच्छी-खासी कमाई होती है. सबसे खास बात यह है कि, इस एजेन्सी की आड में एजेन्सी के साथ ‘नजदीकी संबंध’ रखनेवाले राजनीतिज्ञों द्वारा अपने खास लोगों को मनपा की सेवा में शामिल किया जाता है और इसमें से कई लोग मनपा की सेवा करने की बजाय अपने ‘आकाओं’ की सेवा में ही लगे रहते है. जिसके लिए मनपा की तिजोरी से पैसा खर्च होता है.
* बिना परीक्षा व बिना चरित्र प्रमाणपत्र से होती है नियुक्ति
इस पडताल में यह भी पता चला कि, आउटसोर्सिंग का ठेका रहनेवाली एजेन्सी द्वारा कुशल व अकुशल मनुष्यबल की नियुक्ति करते समय मनपा की ओर से संबंधितों की कोई परीक्षा नहीं ली जाती. साथ ही मनपा की सेवा में आनेवाले इन ठेका नियुक्त कर्मचारियों का चरित्र प्रमाणपत्र भी नहीं लिया जाता. याद दिला दें कि, इससे पहले गत वर्ष मनपा में उजागर शौचालय निर्माण घोटाला मामले में ऐसे ही ठेका नियुक्त कर्मचारियों के नाम सर्वाधिक सामने आये थे. जिन्होंने आपसी मिलीभगत करते हुए इस घोटाले को अंजाम दिया था. ऐसे में इस बार मनपा प्रशासन द्वारा कई नियमों व शर्तों को काफी अधिक कडा करते हुए फूंक-फूंक कर कदम उठाया जा रहा है, ताकि भविष्य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति न हो. किंतु कुछ नेताओं द्वारा पूरजोर प्रयास किये जा रहे है कि, या तो ठेका उनकी ही अपनी एजेन्सी को मिले और यदि उनकी एजेन्सी रेस से बाहर हो गई है, तो उसे मनपा के ‘क्षितिज’ पर लाने हेतु निविदा प्रक्रिया को नये सिरे से शुरू किया जाये. जानकारों के मुताबिक इसी रि-टेंडरिंग के लिए विगत दो-तीन दिनों से मनपा में जबर्दस्त उठापटक और हंगामे का दौर चल रहा है.
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* ये आठ एजेंसियां है स्पर्धा में, पांच कटी, तीन बची
आउट सोर्सिंग के लिए आठ एजेंसियों द्वारा निविदा पेश की गई. जिनमें छत्रपति शिवाजी स्वयंरोजगार संस्था (नांदेड), जानकी सुशिक्षित संस्था (अमरावती), महात्मा फुले संस्था (परभणी), स्वस्तिक संस्था (अमरावती), क्षितीज सेवा सहकारी संस्था (अमरावती), इटकॉन्स ई-सोल्यूशन्स (नोएडा), एटल कॉन्ट्रैक्टर्स (नागपुर) तथा श्रीपाद अभियांत्रिकी (यवतमाल) का समावेश है. जिसमें से ‘स्कू्रटनी’ के बाद पांच एजेंसियां रेस से बाहर हो गई है और तीन एजेंसियां ‘टॉप-3’ में बची हुई है. हालांकि पूरी प्रक्रिया बेहद गोपनीय रहने के चलते फिलहाल यह पता नहीं चल पाया है कि, कौन-कौनसी पांच एजेंसियों के निविदा प्रस्ताव खारिज हो गये है और अंतिम तीन में कौनसी तीन एजेंसियां बची हुई है.