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यहां के बालाजी मंदिर गरुड स्तंभ पर चढ रहा है सोने का पतरा

1200 ग्राम पीवर गोल्ड का उपयोग, राजस्थान के कारागीर

* 40 साल बाद पुन: निर्माण हो रहा है गरुड स्तंभ का
* इन कैमरा और सुरक्षा घेरे में काम जारी
* ट्रस्टीयों की भक्तों में प्रशंसा
अमरावती /दि.24- नगर के तिरुपति बालाजी मंदिर में 1200 ग्राम शुद्ध सोने से गरुड स्तंभ का नवनिर्माण किया जा रहा है. कार्य आरंभ हो गया है. जयपुर से 7 और तमिलनाडु से जानकी हरिबाबू और उनके साथी यहां स्तंभ निर्माण में जुटे है. ऐसी जानकारी आज दोपहर श्री बालाजी मंदिर के वर्तमान न्यासी सर्वश्री जगदीश प्रसाद अग्रवाल, एड. रतनलालजी अटल, पंडित देवदत्त शर्मा, गोविंद दायमा, रमन दायमा ने दी. अमरावती मंडल के संपादक अनिल अग्रवाल, ट्रस्टी डॉ. गोविंद लाहोटी, राजेश हेडा, जगदीश राज छाबडा, विजय लढ्ढा विशेष रुप से उपस्थित थे.
* गरुड ध्वज स्तंभ का महत्व
श्री रमन रतनलाल दायमा ने बताया कि, गरुड ध्वज स्तंभ का बडा महत्व होता है. जहां गरुड ध्वज स्तंभ रहता है. उस स्थान को दिव्यदेश कहा जाता है. ब्रह्मोत्सव और भगवान बालाजी के सभी उत्सव गरुड ध्वज फहराकर ही आरंभ होते है. यह वैभव और तेज को दर्शाता है. इससे उर्जा प्राप्त होती है. अमरावती में पहले से ही गरुड स्तंभ है और नित्य इसकी विधिवत पूजा दोनों समय होती आयी है. भगवान के वाहन गरुड जी के स्तंभ से धर्म-प्रसार होता है.
* 1981 में बना था पहला गरुड स्तंभ
जगदीश प्रसाद जी अग्रवाल ने बताया कि, वसंत टॉकीज के पास तिरुपति बालाजी मंदिर की स्थापना 1979 में हुई थी. तत्कालीन न्यासी जुगलकिशोर जी सारडा सीए, संस्थापक रतनलाल जी दायमा, चम्पालालजी हेडा, स्वयं जगदीश प्रसाद अग्रवाल, आर्वी के शिवचंद चूडीवाला, डॉ. हरगोविंद जी नावंदर थे. पहले स्तंभ में 800 ग्राम सोने का उपयोग गरुड ध्वज स्तंभ में किया गया था.
* अफसर की मौजूदगी में कार्य
जगदीश प्रसाद जी ने बताया कि, उस समय 4 से 29 जनवरी तक स्तंभ निर्माण का कार्य चला. गोल्ड कंंट्रोल एक्ट रहने से सेंट्रल एक्साईज के अधिकारी इस निर्माण दौरान मौजूद रहते. कारीगर को उस दिन जितना सोना लगता, उतना ही दिया जाता. तब देश में मोरारजी देसाई की सरकार थी. 35 फीट लंबा लकडी का अखंड स्तंभ लाया गया. जिस पर तांबे की परत चढाकर उस पर सोने को मढा गया था.
* पुश्तैनी कारीगर कर रहे परिश्रम
शुद्ध सोने के पतरे बनाकर उसे 5 स्तर में तांबे पर पारे की सहायता से चढाया जाएगा. विशेष तौर पर जयपुर से मो. अजीज और उनके साथी गत सप्ताह भर से जुटे है और अगले 2 सप्ताह उनका कार्य चलना है. मो. अजीज ने अमरावती मंडल को बताया कि, कारीगर पूरी इमानदारी और कैमरे की निगरानी में असल सोने के पतरे बनाने के कार्य में जुटे हैं. बडा श्रमसाध्य कार्य है. जिसमें अजीज भाई को इमरान भाई, साबिर भाई, शादाब भाई, असरार भाई, नूर अहमद, शोएब भाई आदि सहयोग कर रहे हैं.
* ऐसे बनता है सोने का वर्क
अजीज भाई ने बताया कि, पीवर सोने के मशीन से पतरे की टिकली निकाली जाती है. फिर विदेशी जर्मन पेपर में रखकर और चमडे के पैकेट में वह पेपर का बंडल रखकर उसे ठोका जाता है. इसके लिए नीचे रखने के लिए लाल पत्थर रखे गये है. पतरे की टिकली थोडी बडी हो जाती है, फिर उसे दूसरी पेपर की बुक में रखकर फिर उसका साईज 3 से 4 गुणा बडा किया जाता है. प्रत्यक्ष तांबे के पतरे पर चढाते समय पारे और बटर पेपर का उपयोग होता है. एक के बाद एक 5 परत चढाई जाती है.
* 40 वर्ष से अधिक टिकाऊ
अजीज भाई ने बताया कि, सोने के परत चढाने पश्चात पारे को निकाल दिया जाता है. एक बार काम पूर्ण होने पर यह सोना 40-50 वर्षों तक चमक नहीं खोता. थोडा रखरखाव पर ध्यान देना होता है. मो. अजीज के अनुसार हरियाणा के पाडा माता मंदिर में 20 किलो सोने की परत हाल ही में चढाई गई है. ऐसे ही बडौदा के श्वेतांबर जैन मंदिर में 4 किलो गोल्ड परत वे कुछ वर्ष पहले लगा चुके हैं.
* तांबे का नया स्तंभ तैयार
गरुड ध्वज स्तंभ के लिए लकडी पर तांबे के स्तंभ को तैयार किया गया है. यह काम रोहित टिनकर और उनके 2 साथी महेंद्र जी और सीतारामजी ने किया है. 125 किलो तांबा इस स्तंभ में लगा है. वे भी जयपुर निवासी है. रोहित के अनुसार उनका यह पुश्तैनी काम है.
* 31 फीट का होगा स्तंभ
स्तंभ के लिए पीठम के निर्माण हेतु आंध्र-तमिलनाडु के कारीगरों को लेकर जानकी हरिबाबू की टीम आयी है. 7 फीट और 24 फीट मिलाकर 31 फीट का स्तंभ बनाया जा रहा है.

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