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अति आत्मविश्वास ले डूबा महाआघाडी व भाजपा को

खामोशी से मेहनत करनेवाले सरनाईक की सफलता ने मचाया शोर

अमरावती प्रतिनिधि/दि.5 – कहा जाता है कि, मेहनत इतनी खामोशी से करो की सफलता शोर मचा दें. यह कहावत अमरावती के संभागीय शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में पूरी तरह से सत्य साबित हुई है, जब करीब एक माह चले चुनाव प्रचार के दौरान कहीं पर भी चर्चा में नहीं रहनेवाले निर्दलीय प्रत्याशी एड. किरण सरनाईक ने मतगणनावाले दिन न केवल पहले राउंड से बढत बनानी शुरू की. बल्कि अंतिम राउंड के बाद डंके की चोट पर इस चुनाव में जीत हासिल की. जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि, चुनाव से पहले अपनी-अपनी जीत को लेकर बडे-बडे दावे करनेवाली महाविकास आघाडी और भाजपा अपने ही अति आत्मविश्वास का शिकार हो गयी.
उल्लेखनीय है कि, जहां एक ओर सभी प्रत्याशियों द्वारा विभिन्न माध्यमों का सहारा लेते हुए अपनी जीत को लेकर बडे-बडे दावे किये जा रहे थे और लगातार चर्चा में बने रहने का प्रयास किया जा रहा था, ठीक उसी समय वाशिम जिला निवासी एड. किरण सरनाईक ने बडे शांतिपूर्ण और नियोजनबध्द ढंग से इस चुनाव की तैयारी करनी शुरू की तथा हर एक शिक्षक से व्यक्तिगत मुलाकात करते हुए उनका जीतना शिक्षकोें के लिए क्यों व कैसे फायदेमंद है, यह समझाना शुरू किया. यहीं पर राज्य का सत्तापक्ष यानी महाविकास आघाडी और प्रमुख विपक्षी दल यानी भाजपा चूक गये. महाविकास आघाडी इस सोच में रह गयी कि, हमारे पास सत्ता है और मतदाता सत्ता पक्ष का लाभ उठाने हेतु महाविकास आघाडी के प्रत्याशी को ही वोट करेंगे. वहीं दूसरी ओर भाजपा हमेशा की तरह अपने ‘अंडर करंट’ को लेकर आश्वस्त थी कि, लोगोें को नरेंद्र मोदी और देवेंद्र फडणवीस पसंद है. साथ ही भाजपाईयों की एक सोच यह भी थी कि, अमरावती केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडझवीस की ननीहाल है. ऐसे में इन दोनों नेताओं का अमरावती जिले से लगाव व जुडाव देखते हुए शिक्षक मतदाताओं द्वारा भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान किया जायेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भाजपा प्रत्याशी डॉ. नितीन धांडे सहित महाविकास आघाडी प्रत्याशी प्रा. श्रीकांत देशपांडे को इस चुनाव में हार का सामना करना पडा.

  • अनुदान व पेन्शन के मसले रहे निर्णायक

इस चुनाव में शिक्षकों के दो महत्वपूर्ण मसले पूरा समय चर्चा में रहे. जिन शालाओं को अनुदान नहीं मिलता है, उन शालाओं के शिक्षकों को वेतन भी प्राप्त नहीं होता है. विगत 15-20 वर्षों से अधिक समय से कई शिक्षक अपनी शालाओं को अनुदान व खुद को वेतन मिलने की आशा पर जी रहे है और कई शिक्षकों ने तो आर्थिक तंगी की वजह से त्रस्त होकर आत्महत्या भी की है. जानकारी के मुताबिक इस समय संभाग में करीब 4 हजार शिक्षक बिना वेतन की यातना को भुगत रहे है और अब तक संभाग के शिक्षक विधायक रहे प्रा. श्रीकांत देशपांडे ने पिछली व मौजूदा सरकार के समय सत्ता पक्ष के साथ नजदिकी रहने के बावजूद इस मसले को हल नहीं किया. इस बात को लेकर शिक्षकों मतदाताओं में काफी हद तक नाराजगी का माहौल था. चुनाव प्रचार के दौरान प्रा. श्रीकांत देशपांडे की ओर से जानेवाली फोन कॉल्स पर कई शिक्षकों ने बेहद तीखी प्रतिक्रियाएं दी थी. जिनकी सोशल मीडिया पर भी चर्चा हुई. दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मसला सन 2005 के बाद नियुक्त हुए शिक्षकों की पेन्शन बंद करने का था. जिसके बारे में शिक्षकों का कहना था कि, कोई भी सांसद या विधायक अगर एक बार ही निर्वाचित होता है तो उसे पूरी जिंदगी पेन्शन प्राप्त होती है. वहीं शिक्षकों द्वारा अपनी पूरी जिंदगी शिक्षा क्षेत्र में खपाने के बावजूद उन्हें पेन्शन से वंचित रखा जा रहा है. यह सीधे-सीधे शिक्षकों पर अन्याय है.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इस बार शिक्षक विधायक पद के चुनाव के समय शिक्षकों में काफी हद तक असंतोष व्याप्त था, और शिक्षकों ने अपने असंतोष को मतदान में तब्दील किया. यहीं वजह रही कि, इस बार रिकॉर्ड 89 फीसदी मतदान हुआ और शिक्षकों ने सत्ता पक्ष व विपक्ष के प्रभाव में आये बिना स्वतंत्र रूप से अपना प्रतिनिधी चुना, जो शिक्षक व पेन्शन जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर बिना किसी के प्रभाव में आये अनुदान व पेन्शन के मसले पर लड और झगड सके. जिसका नतीजा अब सब के सामने है.

  • बडे नेताओं की अपील भी काम नहीं कर पायी

उल्लेखनीय है कि, इस चुनाव में महाआघाडी की ओर से मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे, राकांपा के प्रदेशाध्यक्ष व मंत्री जयंत पाटील, उच्च व तंत्र शिक्षा मंत्री उदय सामंत, महिला व बाल विकास मंत्री एड. यशोमति ठाकुर, शालेय शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड, शिक्षा राज्यमंत्री बच्चु कडू तथा राकांपा विधायक रोहित पवार द्वारा आघाडी प्रत्याशी प्रा. श्रीकांत देशपांडे के लिए जमकर प्रचार किया गया. साथ ही राकांपा सुप्रीमो शरद पवार ने भी एक वीडियो संदेश प्रसारित करते हुए प्रा. श्रीकांत देशपांडे को अपना मानसपुत्र बताते हुए उनकी जीत के लिए आवाहन किया. इसके अलावा प्रा. श्रीकांत देशपांडे के प्रचार में लगे कई शिक्षकों ने शिक्षक मतदाताओं को घुम-घुमकर बताया कि, उन्होेंने प्रा. श्रीकांत देशपांडे को शिक्षकों की भलाई के लिए जमकर काम करते देखा है. किंतु ऐसे तमाम प्रयास शिक्षकों के गले नहीें उतरे. वहीं दूसरी ओर राज्य के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा द्वारा भी अमरावती संभागीय निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्याशी बनाये गये डॉ. नितीन धांडे के लिए जमकर ताकत झोंकी गयी, जिसके तहत खुद विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष व राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अमरावती आकर डॉ. नितीन धांडे के पक्ष में प्रचार किया व शिक्षकों से संवाद साधा. लेकिन इसका भी कोई खास फायदा नहीें हो पाया. इसके अलावा चुनाव प्रचार जारी रहते समय शिक्षक महासंघ के शेखर भोयर, शिक्षण संघर्ष संगठन की संगीता शिंदे, लोकभारती के दिलीप निंभोरकर एवं विदर्भ माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रकाश कालबांडे लगातार सूर्खियों में बने हुए थे. लेकिन ये सभी प्रत्याशी दूसरी पसंद के वोटों की गिनती के राउंड-दर-राउंड रेस से बाहर होते चले गये और पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कहीं पर भी चर्चा में नहीं रहनेवाले एड. किरण सरनाईक ने न केवल पहली पसंद के सर्वाधिक वोट हासिल किये, बल्कि दूसरी पसंद के वोटों में भी शुरूआत से बढत बनाये रखी और अंत में जीत हेतु आवश्यक वोटों का कोटा पूरा करते हुए संभाग के शिक्षक विधायक निर्वाचित होने का बहुमान भी हासिल किया.

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