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16 वर्षों से अधर में लटका है नवाथे मल्टीप्लेक्स का मामला

  • गलतफहमी या गंदी राजनीति में से कौन जिम्मेदार

  • शहर के विकास की बातें केवल हवा-हवाई

  • कई मनपा अधिकारियों पर गिर सकती है कार्रवाई की गाज

अमरावती/प्रतिनिधि दि.2 – इसे अमरावती शहर के लिहाज से संयोग कहें या दुर्भाग्य कि अमरावती में विकास से संबंधित किसी योजना या प्रकल्प की घोषणा बडे जोर-शोर से होती है, लेकिन उसे मूर्त रूप से साकार होने में एक लंबा अरसा लग जाता है और कुछ योजनाएं कागजों पर ही दम तोड देती है. इसका ताजा उदाहरण नवाथे परिसर में बननेवाले मल्टीप्लेक्स को कहा जा सकता है. जो विगत 16 वर्षों से अधर में लटका पडा है और इन दिनों कानूनी पेचिदगियों का सामना कर रहा है.
बता दें कि, वर्ष 2005 में पहली बार नवाथे चौक के निकट राष्ट्रीय महामार्ग क्र. 6 व अमरावती-बडनेरा रेलवे लाईन के बीच खाली पडी जमीन पर मनपा द्वारा मल्टीप्लेक्स बनाने का निर्णय लिया गया था और निविदा प्रक्रिया को पूरा करते हुए इस काम का ठेका श्रीराम बुलीकॉन नामक कंपनी को दिया गया था. इस कंपनी के नाम वर्क ऑर्डर जारी करने के साथ ही इस काम हेतु किये गये करार में यह तय किया गया था कि, इस जमीन पर रहनेवाले अतिक्रमण को हटाने के साथ ही रेल महकमे व राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की एनओसी प्राप्त करने सहित गृहमंत्री की अनुमति हासिल करने का जिम्मा खुद महानगरपालिका का होगा, लेकिन इन तमाम कामों को पूरा करने में मनपा प्रशासन आज तक सफल नहीं हो पाया. वहीं इन अनुमतियों का अभाव रहने की वजह से ठेकेदार कंपनी को काम बंद करने का आदेश भी दिया गया. ऐसे में ठेकेदार कंपनी द्वारा नुकसान भरपाई व मानहानी के लिए हाईकोर्ट में अपील की गई. जिस पर हुई सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मनपा के तत्कालीन आयुक्त अरूण डोंगरे को ऑर्बिट्रेटर के तौर पर नियुक्त करते हुए मामले को सुलझाने व निर्णय लेने का अधिकार दिया. पश्चात ऑर्बिट्रेटर के रूप में निगमायुक्त अरूण डोंगरे ने इस काम में मनपा की ओर से हुई गलती को मानते हुए विकासक को किराये में 70 फीसदी वृध्दी करने के साथ काम शुरू करने का वर्कऑर्डर जारी किया. इस आदेश को भी श्रीराम बुलिकॉन कंपनी द्वारा स्वीकार किया गया.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, ऑर्बिट्रेटर के तौर पर तत्कालीन निगमायुक्त अरूण डोंगरे द्वारा जारी किया गया आदेश उनके पश्चात आनेवाले आयुक्तों पर भी लागू है और अगला कोई भी आयुक्त इसमें किसी तरह का कोई फेरबदल नहीं कर सकता है. किंतु मनपा के अगले आयुक्त चंद्रकांत गुडेवार के समय में पूर्व आयुक्त डोंगरे के आदेश में बदलाव किया गया. जिसके बारे में कहा जाता है कि, मनपा से जुडे कई लोगों ने आयुक्त गुडेवार को गलत जानकारी देने के साथ ही उनकी दिशाभूल की थी. जिसकी वजह से उस समय स्थायी समिती में पुराने प्रस्ताव को रद्द करने को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया था. इसे पूरी तरह गलत मानते हुए तत्कालीन स्थायी समिती सदस्य दिगंबर डहाके द्वारा मंत्रालय में शिकायत करते हुए इस मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी. ऐसे में तत्कालीन मनपा अधिकारियों ने खुद को बचाने के लिए और पूरे मामले का जिम्मा पार्षदों पर डालने के लिए कुछ पार्षदों के जरिये इस प्रस्ताव को आमसभा में पारित करवा लिया था.
वहीं दूसरी ओर पार्षद दिगंबर डहाके द्वारा की गई शिकायत के चलते मुंबई मंत्रालय द्वारा कार्रवाई शुरू की गई और संभागीय आयुक्त पीयुष सिंह के निर्देश पर जिलाधीश की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जांच समिती गठित की गई. जिसमें शहर पुलिस के तत्कालीन उपायुक्त चिन्मय पंडित सहित चिखलदरा नगर पालिका के मुख्याधिकारी व जिप के लेखाधिकारी का समावेश था. इस समिती द्वारा की गई जांच में मनपा के दो आयुक्तों चंद्रकांत गुडेवार व हेमंत पवार को इस मामले में दोषी माना था. जिसके बाद संभागीय आयुक्त पीयूष सिंह द्वारा सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा हलफनामा दायर करते हुए कहा गया था कि, इन दोनों अधिकारियों द्वारा हाईकोर्ट की अवमानना करने के साथ ही मनपा के नियमों का उल्लंघन किया गया है. ऐसे में हाईकोर्ट के समक्ष एक ही मामले को लेकर दो अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई हुई. जिसमें से हाईकोर्ट ने एक याचिका पर स्टे ऑर्डर देने के साथ ही दूसरी याचिका पर नया टेंडर जारी करने की अनुमति दी.
बता दें कि, इन दिनों नवाथे मल्टीप्लेक्स के प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कौन्सिल को लेकर लगातार चौथी बार नये सिरे से निविदा प्रक्रिया चलायी जा रही है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, मौजूदा आयुक्त प्रशांत रोडे को भी संभवत: इस पूरे मामले की सही जानकारी नहीं है. यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के तहत मनपा को अपने स्तर पर विभिन्न तरह के ना-हरकत प्रमाणपत्र व अनुमतियां हासिल करने का काम करना होता है. यह काम मनपा अपने खुद के लिए अपने खुद के अधिकारियों के जरिये भी करा सकती है. किंतु इसी काम के लिए मनपा द्वारा अपने पल्ले से पैसा खर्च करते हुए किसी बाहरी एजेन्सी का सहारा लिया जा रहा है. यानी जिस प्रोजेक्ट से मनपा को आय होनी चाहिए, उस प्रोजेक्ट के लिए मनपा द्वारा प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कन्सलटन्सी के नाम पर पैसा खर्च करने की तैयारी की जा रही है.
लेकिन इन सब के बीच मनपा द्वारा एक तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि, इन दिनों नवाथे मल्टीप्लेक्स के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई प्रलंबित है और जब तक वहां से कोई अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक मनपा द्वारा अपने स्तर पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता और यदि ऐसा किया जाता है, तो यह अदालत की अवमानना का एक और मामला बनेगा. वहीं यदि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ठेकेदार कंपनी के पक्ष में जाता है, तो मनपा के कई भुतपूर्व एवं मौजूदा अधिकारियों पर कार्रवाई की गाज गिरेगी, क्योेंकि जिस समय इस मामले को लेकर स्थायी समिती के सामने प्रस्ताव पेश किया गया था, तब स्थायी समिती के तत्कालीन सभापति विलास इंगोले द्वारा दी गई रूलिंग में साफ तौर पर कहा गया था कि, इस मामले के अंतिम परिणाम हेतु पूरी तरह से मनपा के अधिकारी ही जिम्मेदार होंगे. ऐसे में अब यह देखनेवाली बात होगी कि, करीब 85 हजार स्क्वेअर फीट में बननेवाले तीन मंजिला नवाथे मल्टीप्लेक्स को लेकर आनेवाले वक्त में यह मामला कौनसी नई करवट लेता है तथा यदि इस मामले में कोर्ट की अवमानना व नियमों के उल्लंघन का आरोप साबित हो जाता है, तो कौन-कौन से अधिकारी कार्रवाई के लपेटे में आते है. बता दें कि, ठेकेदार कंपनी द्वारा 2005-06 के दौरान अदालत में करीब साढे 12 करोड रूपयों का दावा पेश किया गया था. यदि यह दावा स्वीकृत हो जाता है, तो दावे की मूल राशि के साथ ही उस पर लगनेवाले ब्याज और दंड की राशि बढकर 25 करोड से अधिक हो सकती है. ऐसे में देखनेवाली बात यह भी होगी कि, मनपा प्रशासन द्वारा नवाथे मल्टीप्लेक्स की राह में अडंगा डालनेवाले किन-किन अधिकारियों व पार्षदों से इस राशि की वसूली की जायेगी.

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